खंडवा – अपराध की एक बड़ी घटना पर एक फ़िल्म आई थी “नो वन किल्ड जेसिका” अब शायद खण्डवा पुलिस इसी तर्ज पर एक नई पटकथा लिखने जा रही है ” नो मोटिव फ़ॉर मर्डर ऑफ हफ़ीज़ ”
हाँ, इसकी पुष्टि आज पुलिस कन्ट्रोल रूम में हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में हुई । अमूमन किसी भी संगीन हत्या के पीछे कोई गंभीर वज़ह होती है पुरानी रंजिश, सम्पत्ति का विवाद, व्यावसायिक स्पर्धा ,लूट का इरादा,प्रेम प्रसंग या अनैतिक संबंध या फिर कोई साम्प्रदायिक विवाद… कल दोपहर दिन दहाड़े घासपुरा स्थित मालगोदाम में हुई उम्रदराज़ हफ़ीज़ की हत्या के पीछे इनमें से कोई भी कारण नहीं था । आप हैरान हो जाएंगे कि मृतक औऱ हत्यारे एक दूसरे को जानते भी नही थे ? तो क्या किसी औऱ को मारने के इरादे से हत्यारे आये थे और गफ़लत में हफ़ीज़ की हत्या हो गई ? नही, ऐसा भी नहीं है… पुलिस तो यही कहती है ।
आप खण्डवा के पुलिस अधीक्षक विवेक सिंह की बात सुनकर समझ ही नही पाएंगे कि शहर में इतनी जघन्य हत्या आखिर क्यों हुई ??
घटनास्थल पर बड़ी संख्या में लोग उस दौरान मौजूद थे ,चूंकि यह शहर का व्यस्ततम क्षेत्र है और घटना भी दोपहर बारह बजे के करीब की थी । प्रत्यक्षदर्शियों ने ही बताया कि दो अज्ञात युवकों ने हफ़ीज़ को पहले सीने में गोली मारी फिर उसके गिरने के बाद चाकुओं से वार किया । जब उन्हें लगा कि वे उसका काम तमाम कर चुके है तब मोटरसाइकिल से फ़रार हो गए । सीसीटीवी में उनके फ़ुटेज भी मिले जिसके आधार पर उनकी तलाश हुई । अन्ततः पुलिस ने दोनों आरोपियों को 24 घंटे में गिरफ्तार करने में सफलता पाई । इनकी पहचान संजयनगर निवासी 19 वर्षीय निगम पंढरी पटेल और आनन्द संतोष पाराशर के रूप में की गई । इन्हें पुलिस ने उज्जैन से गिरफ्तार करना बताया ।
सबसे अहम सवाल था कि हत्या क्यों की गईं ? इसे लेकर शायद आरोपियों से कहीं ज्यादा पुलिस कंफ्यूज है । पुलिस ने अपने प्रेस नोट में लिखा है कि “घूमने की बात को लेकर विवाद होने पर दोनों आरोपियों द्वारा अब्दुल हफ़ीज़ की हत्या करना बताया”
अब क्या बिना कारण कोई घासपुरा मालगोदाम में घूमने जाता है ? वह भी दोपहर 12 बजे ? कोई घूमने जाये तो क्या साथ मे चाकू और पिस्टल लेकर चलता है ? अपरिचित व्यक्ति से आखिर ऐसा क्या विवाद हो सकता है कि ये युवक अपने पिता की उम्र के व्यक्ति की जान लेने पर आमादा हो जाये ? यदि विवाद हुआ तो इसे प्रत्यक्षदर्शियों ने नही देखा ? देखा तो सुलझाने की कोई कोशिश किसी ने भी नही की ? हैरानी की बात यह है कि कोरोना के कारण जिलों की तमाम सीमाओं पर हर आने जाने वालों की चेकिंग हो रही है तब हत्यारे उज्जैन कैसे पहुंच गये ? पुलिस ने कुछ अहम बात छुपाने के चक्कर मे इतने सवाल खुद ही खड़े कर दिए है कि जिसके जवाब उसे अब ढूंढे नही मिल रहे है ।
क्या वाकई पुलिस सच नही जानती या जानना नही चाहती ? या जानती है तो बताना नही चाहती ? क्या बीमारी को छुपाकर उसका ईलाज संभव है ? अकारण हत्या निमाड़ के आपराधिक इतिहास में देखने को नही मिलते । यहां मामूली विवाद में हत्या भी नही होती भिण्ड मुरैना की तरह …तो क्या निमाड़ की तासीर बदल रही है ? यदि ऐसा है तो यह निमाड़ की शांति व्यवस्था के लिए एक नया और ज्यादा बड़ा खतरा है…
जय नागड़ा