अमेठी– बच्चों के रहस्यमय ढंग लापता होने को लेकर प्रशासन के प्रति परिजनों का गुस्सा यूं नहीं है। इतने गंभीर मसले के बावजूद शासन-प्रशासन द्वारा कार्य नहीं किये जा रहे हैं। हालत यह है कि अमेठी में नाबालिग बच्चे महफूज नहीं हैं।
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पुलिस की तरफ से कोई ठोस प्रयास नहीं किये जा रहे हैं। बच्चे कहां जा रहे हैं, पुलिस इससे बेखबर है। सभी मामलों में गुमशुदगी दर्ज कर पुलिस कुंडली मार कर बैठ जा रही है। कई मामलों में केस दर्ज नहीं हो पाते हैं।
सीनियर सिटीजन के साथ जहां अमेठी में लगातार अपराधिक घटनाएं दस्तक दे रहीं है, तो वहीं बच्चे भी सुरक्षित नजर नहीं आते दिख रहे है। आलम यह है कि कई थाना क्षेत्रों से बच्चे गायब हो चुके है जिनमें जामो थाना अंतर्गत कमालपुर निवासी चन्द्र प्रकाश की तो शनिवार को लाश भी मिल गई है इसके बाद मित्र पुलिस मुकदमा दर्ज कर खानपूर्ति करने में तुली हुई है।
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परिजनों का कहना है कि जब शव मिल जाता है तभी पुलिस कार्यवाही करती है। बताते चले कि बीते माह से जनपद में ताबड़तोड़ अपराधिक घटनाओं का अंजाम दिया जा रहा है। कहीं बलात्कार के चलते हत्याएं हो रही है तो कहीं दुश्मनी के इरादे से किशोरों को मौत के घाट उतारा जा रहा है और पुलिस अभी तक किशोर की मौत की गुथ्थी नही सुलझा पायी ।
अभी नही मिला नाबालिग विकास-
बीते मंगलवार को मुसाफिरखाना कोतवाली क्षेत्र के भनौली निवासी केशव मौर्य का बेटा विकास उम्र लगभग 13 वर्ष खेलते खेलते लापता हो गया। जिसकी सूचना परिजनों ने पुलिस को दी। लेकिन पुलिस परिजनों को ही ढूढने की सलाह दे डाली। किशोरों के गायब होने से पुलिस प्रशासन पर सवालिया निशान लग रहा है हो भी क्यों न संबंधित थाना पुलिस केवल धारा 363 के तहत मुकदमा दर्ज कर खानापूर्ति कर रही है। जिससे परिजनों पर पुलिस के खिलाफ आक्रोश व्याप्त है।
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पीड़ित परिजनों का कहना है कि पुलिस हमारे बच्चों के शवों का इंतजार कर रही है, जिसके बाद ही पुलिस कार्यवाही करेगी। इसके साथ ही परिजनों को यह भी आशंका हो रही है कि कहीं अनहोनी के लिए तो नहीं हमारे बच्चों का अपहरण किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट के सख्त आदेश के बाद भी गाइड लाइन पर काम नहीं हो रहा है। हकीकत यह है कि गुमशुदगी के मामले में पुलिस सिर्फ हाइ प्रोफाइल केस में तेजी दिखाती है। आम परिवारों के बच्चे नहीं तलाशे जा रहे हैं। दूसरी तरफ पुलिस गुमशुदगी के मामलों में सनहा दर्ज कर खामोश हो जा रही है। उससे नाबालिगों के साथ अनहोनी की आशंका बढ़ती दिख रही है।
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वहीं थानों व अधिकारियों के दफ्तर का चक्कर लगाने के बावजूद बच्चों को खो चुके परिजनों के हाथ निराशा ही लग रही है। इस पर कई बार कोर्ट ने चिंता जतायी है। गुमशुदा बच्चे की जानकारी नहीं मिलने पर 72 घंटे बाद अपहरण का केस दर्ज होना चाहिए। गुमशुदगी से अपहरण में तब्दील हुए मामले की मॉनीटरिंग आइजी व डीआइजी स्तर से होनी चाहिए ।
रिपोर्ट- @राम मिश्रा