आखा तीज के नाम से जानी जाने वाली अक्षय तृतीया के दिन से सतयुग और त्रेतायुग का प्रारम्भ माना जाता है। जप, तप, दान आदि आज के दिन अक्षय रहते हैं। अर्थात किसी भी तरह का धार्मिक क्रिया-कलाप विशेष फलकारक सिद्ध होता है। शुभ कार्याें की यह अति उत्तम तिथि मानी गयी है। गंगा स्नान का भी इस दिन बेहद धार्मिक महत्व है। धर्मशास्त्रों मे कहा गया है कि आज ही के दिन गंगा की उत्पत्ति हुयी थी। यही वजह है कि गंगा स्नान करने वाले समस्त प्राणी सभी पापों से मुक्त हो जाते हैं।
पितरो तथा स्वर्गीय आत्माओं की प्यास बुझाने का यह सर्वोत्तम दिन है। कहा जाता है कि पितरों के निमित्त पंखा, छाता, चावल, घड़ी, कलश, दाल, नमक, घी, फल वस्त्र, सत्तू, ककड़ी, खरबूजा और यथाशक्ति दक्षिणा ब्राम्हणों को देकर प्रसन्न करना चाहिए। ताकि पितर भी आपसे प्रसन्न होकर आपको आर्शीवाद दें । पितरों को तर्पण, जलदान आदि भी करना चाहिये ताकि पितरों की अनन्तकाल तक तृप्ति बरकरार रह सके।
अक्षय तृतीया को ही समस्त धामों मे प्रमुख श्री बद्रीनरायण जी के पट खुलते हैं। वैशाख मास मे गर्मी अधिक होने के कारण ही शीतल जल तथा प्याऊ लगाने की परम्परा है ताकि आज के दिन कोई प्यासा न रहे। यही धार्मिक धारणा है आज ही के पवित्र दिन को नर नारायण का अवतार हुआ था। इसी दिन गौरी व्रत की समाप्ति हेतु गौर माता का पूजन भी विधि-विधान से किया जाता है। वृन्दावन के धार्मिक स्थल पर बांके बिहारी के चरण दर्शन की धार्मिक परम्परा है।
क्या है आवश्यक मुहूर्तः-
वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया दिन सोमवार को पावन पर्व अक्षय तृतीया है। 09 मई 2016 को तृतीया तिथि सायंकाल 06 बजकर 23 मिनट तक है। रोहिणी नक्षत्र का छय होकर मृगसिरा नक्षत्र का सम्पूर्ण दिवा तथा रात्रिशेष 04 बजकर 02 मिनट तक भोगकाल है। 09 मई को दिन मे 04 बजकर 32 मिनट तक चन्द्रमा वृष राशि अर्थात् अपनी उच्च राशि में है। धार्मिक शास्त्रों में सोमवार को अक्षय तृतीया को बेहद महत्व माना गया है। रोहिणी नक्षत्र का छय भी है तथा 02 मई 2016 को पूर्व दिशा मे शुक्रास्त का प्रारम्भ है।
ग्रहों की चाल की दृष्टि से देखें तो शुक्रास्त वैवाहिक कार्याें में पूर्ण रुप से बाधक है। बृहस्पति भी सिंह राशि के 19 अंशो पर है। यह भी बृद्धत्व की ओर अग्रसर है। यही कारण है कि वैवाहिक कार्यों से जुडे़ समस्त कार्य 01 जुलाई 2016 के उपरान्त शुक्रोदय से प्रारम्भ होंगे। वैसे तो कुछ आवश्यक मुहूर्त हैं, नामकरण, गर्भाधान, जातकर्म, अन्प्रासन, व्यापार, वृक्षारोपरण, धान्यरोपण आदि कार्य किये जा सकते हैं। किसी विशेष कार्य को विजय योग अर्थात् दिन में 11 बजकर 02 मिनट से 11 बजकर 50 मिनट के अन्दर किया जा सकता है। यह समय अवश्य ही बेहतर फल कारक सिद्ध होगा।
अक्षय तृतीया को क्या करेंः-
1. जप, तप आदि पूर्ण मनोयोग से करें।
2. किसी पात्र व्यक्ति को कुछ न कुछ अवश्य दान दें।
3. किसी पात्र व्यक्ति को जल पिलायें।
4. यदि सम्भव हो तो इस दिन गंगा स्नान अवश्य करें।
5. पितरों की निमित्त कुछ न कुछ अवश्य दान करें ताकि पितरों का आर्शीवाद आपको अवश्य मिले।
लेखक – पंडित आनन्द अवस्थी
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