नई दिल्ली – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले हफ्ते वित्त मंत्री अरुण जेटली की उस योजना पर पानी फेर दिया, जिसमें वह आरबीआई की शक्ति को कम करना चाहते थे। सूत्रों ने कहा कि इस मामले में पीएम ने नया रुख अपनाया है और उन्होंने आरबीआई के मार्केट में प्रभाव को स्वीकार्यता दी है। मोदी के सत्ता में आने से महज एक साल पहले रघुराम राजन को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का गवर्नर बनाया गया था। इनकी नियुक्ति तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने की थी। ऐसे में राजन के भविष्य को लेकर संदेह की स्थिति बनी हुई थी।
पीएम मोदी की भारतीय जनता पार्टी के सीनियर सहयोगी हमेशा राजन को लेकर हमलावर रहे हैं। ब्याज दरों के प्रति राजन के रवैये से बीजेपी के कई नेताओं ने असहमति जताई है। राजन ने ब्याज दरों के मामले में प्रधानमंत्री की तरफ से इकनॉमिक ग्रोथ के संकल्प अधूरे रहने की चेतावनी दी थी। वहीं राजन ने मोदी सरकार की नीति ‘मेक इन इंडिया’ को लेकर भी आशंका जाहिर की थी। मोदी इस नीति के तहत निर्यात को बढ़ावा देना चाहते हैं।
पीएम मोदी के सबसे करीबी सहयोगी वित्त मंत्री अरुण जेटली सरकारी बॉन्ड मार्केट और पब्लिक कर्ज को मैनेज करने की शक्ति रिजर्व बैंक से छीनना चाहते थे। सरकार से जुड़े सीनियर सूत्रों का कहना है कि गुरुवार को इस योजना से जेटली को पीछे हटना पड़ा। सूत्रों का कहना है कि यह फैसला टॉप लेबल पर हुआ है। बीजेपी में सीनियर लोगों ने इस बात की पुष्टि की है कि मोदी ने जेटली और रघुराम राजन के मामले में हस्तक्षेप किया है। यहां मोदी ने राजन का पक्ष लिया। इस मसले पर प्रधानमंत्री ऑफिस और वित्त मंत्री ने कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।
अब जेटली इस मसले पर आरबीआई के साथ सलाह कर इस मुद्दे पर रोडमैप तैयार करना चाहते हैं। अधिकारियों का कहना है कि इस प्रक्रिया में कम से कम एक साल का वक्त लग सकता है। पिछले महीने ही इस बात का संकेत मिला था कि 52 साल के रघुराम राजन और 64 वर्षीय पीएम मोदी के रिश्तों में बदलाव के साथ गति आई है। प्रधानमंत्री ने रघुराम राजन की सार्वजनिक रूप से तारीफ भी की थी। पीएम ने कहा कि कठिन से कठिन आर्थिक मुद्दों पर राजन नियमित तौर पर अलग-अलग मीटिंग कर रहे हैं। पिछले हफ्ते इस मामले में मोदी के हस्तक्षेप के ठोस सबूत मिले हैं।
यूरेशिया ग्रुप कन्सल्टन्सी के डायरेक्टर किलबिंदर दोसांझ ने कहा, ‘वित्त मंत्रालय आरबीआई और उसके बॉस की शक्ति में कटौती करना चहता है। मंत्रालय इस शक्ति को खुद लेना चाहता है।’
ध्यान रहे कि रघुराम राजन कोई पहचान के मोहताज नहीं हैं। इनकी दुनिया भर में प्रतिष्ठा है। वह इंटरनैशनल मॉनिटरी फंड (आईएमएफ) में चीफ इकनॉमिस्ट रहे हैं। इनके पास इंस्टिट्यूशन चलाने का अनुभव है। इकनॉमिस्ट इंदिरा राजारमन ने कहा, ‘हमें आरबीआई के संचालन में सतर्क रहने की जरूरत है। एक इंस्टिट्यूशन के रूप में इसने खुद को साबित किया है ऐसे में हमें इसे चोट पहुंचाने वाली कोई हरकत नहीं करनी चाहिए।’ आरबीआई के सेंट्रल बोर्ड में डायरेक्टर इंदिरा राजारमन ने वित्त मंत्रालय की इस योजना की आलोचना की थी।
भारत निवेशकों को प्रभावित करने की जरूरत महसूस कर रहा है। इस मामले में आरबीआई को अनुकूल बनाना चाहता है। विदेशी निवेशक पहले से ही इंडियन टैक्स डिपार्टमेंट से नाराज हैं। सरकार निवेश के मामले में टैक्स को लेकर लचर रवैया को तरजीह देना चाह रही है। इंडियन शेयर और बॉन्ड मार्केट में बिकावली को प्रेरित करने का भी प्रयास किया जा रहा है। सरकार के सूत्रों का कहना है कि कमजोर मॉनसून की आशंका, उच्च यूएस ब्याज दरों के बीच सरकार बैंक के पर को नहीं करतना चाहती क्योंकि इससे निवेशकों के बीच ठीक संदेश नहीं जाएगा। :- एजेंसी