राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की सिफारिश और केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी के बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने महाराष्ट्र में सरकार न बनने की स्थिति देखने हुए राष्ट्रपति शासन लगा दिया है।
गृह मंत्रालय ने बताया कि राष्ट्रपति शासन फिलहाल 6 महीने के लिए लगाया गया है हालांकि इस दौरान अगर कोई भी पार्टी बहुमत साबित कर देती है तो सरकार बन सकती है।
हालांकि शिवसेना राष्ट्रपति शासन के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है। उधर एनसीपी-कांग्रेस ने भी राज्यपाल के इस फैसले की आलोचना की है।
एनसीपी का आरोप है कि उनके पास अभी सरकार बनाने के लिए 48 घंटे का समय था लेकिन राज्यपाल ने गृह मंत्रालय को लिखे पत्र में इसका ज़िक्र ही नहीं किया।
महाराष्ट्र में फिलहाल 6 महीने के लिए राष्ट्रपति शासन लागू हुआ है। अगर इस दौरान कोई पार्टी बहुमत साबित करती है तो राष्ट्रपति शासन हट जाएगा।
एनसीपी का कहना है कि हमने राज्यपाल से सरकार बनाने के लिए 3 दिन का समय मांगा था, लेकिन गवर्नर के अपनी रिपोर्ट में इसका जिक्र किया कि 15 दिन बीत गए है और सरकार बनने कि कोई संभावना नहीं दिखती है।
बयान में आगे कहा गया, ‘राज्यपाल ने बताया कि वह राज्य में सरकार के लिए सभी प्रयास कर चुके हैं लेकिन उन्हें कोई सफलता नहीं मिली।’ राज्यपाल इस बात से पूरी तरह संतुष्ट हैं कि महाराष्ट्र में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है कि यहां कोई स्थिर सरकार नहीं बनाई जा सकती है।
इसके बाद कांग्रेस प्रवक्ता सचिन सावंत ने अपने एक बयान में कहा कि मैं इस कार्रवाई की निंदा करता हूं, जो सभी विकल्प अपनाए बिना जल्दबाजी में की गई। यह राज्यपाल की निष्पक्षता पर सवाल उठाता है। इससे यह सवाल भी उठता है कि क्या राज्यपाल दबाव में काम कर रहे हैं।’
वहीं कांग्रेस के एक और वरिष्ठ नेता विजय वदेत्तीवार ने कहा राष्ट्रपति शासन सरकार गठन की राह में रोड़ा नहीं बनेगा।
उन्होंने कहा, जब तीनों दलों (कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना) ने यह दर्शा दिया था कि उनके पास 144 से अधिक विधायकों का समर्थन है तो राज्यपाल को हमें सरकार गठन का न्योता देना चाहिए था।
यही नहीं कांग्रेस के ही वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने भी इस तरह के विचार साझा करते हुए कहा है कि एक बार हमारे पास समर्थन के पत्र आ जाएं, तो राष्ट्रपति शासन हटा दिया जा सकता है।
इसी मामले में कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा कि राज्यपाल को हमारी पार्टी को सरकार बनाने की इच्छा और क्षमता दिखाने के लिए आमंत्रित करना चाहिए था।
गौरतलब है कि राष्ट्रपति शासन के दौरान कई परिवर्तन हो जाते हैं। जिसमें राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रीपरिषद को भंग कर देता है।
वहीं राष्ट्रपति, राज्य सरकार के कार्य अपने हाथ में ले लेता है और उसे राज्यपाल और अन्य कार्यकारी अधिकारियों की शक्तियां प्राप्त हो जातीं हैं।
इसके अलवा राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति के नाम पर राज्य सचिव की सहायता से अथवा राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त- किसी सलाहकार की सहायता से राज्य का शासन चलाता है। यही कारण है कि अनुच्छेद 356 के अंतर्गत की गई घोषणा को राष्ट्रपति शासन कहा जाता है।
राष्ट्रपति शासन के दौरान राष्ट्रपति, घोषणा कर सकता है कि राज्य विधायिका की शक्तियों का प्रयोग संसद करेगी। संसद, राज्य के विधेयक और बजट प्रस्ताव को पारित करती है।
यही नहीं, संसद को यह अधिकार है कि वह राज्य के लिए कानून बनाने की शक्ति, राष्ट्रपति अथवा उसके किसी नामित अधिकारी को दे सकती है। साथ ही जब संसद नहीं चल रही हो तो राष्ट्रपति, ‘अनुच्छेद 356 शासित राज्य’ के लिए कोई अध्यादेश जारी कर सकता है।
बता दें कि राष्ट्रपति को सम्बंधित प्रदेश के हाई कोर्ट की शक्तियां प्राप्त नहीं होती हैं और वह उनसे सम्बंधित प्रावधानों को निलंबित नहीं कर सकता है।
राष्ट्रपति अथवा संसद अथवा किसी अन्य विशेष प्राधिकारी द्वारा बनाया गया कानून, राष्ट्रपति शासन के हटने के बाद भी प्रभाव में रहेगा। लेकिन इसे राज्य विधायिका द्वारा संशोधित या पुनः लागू किया जा सकता है।