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जानें क्या होता है कार्बन निगेटिव देश
जब किसी भी देश में कच्चे तेल, कोयले, जीवाश्म ईंधन के अत्यधिक उपयोग के कारण कार्बन उत्सर्जन बढ़ता है तो कार्बन डाइ ऑक्साइड के साथ-साथ अन्य ग्रीन हाउस गैसों का प्रभाव बढ़ जाता है। ये ग्रीन हाउस गैस ही ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार होती है। ऐसे में कोई देश या कोई व्यक्ति जितना कार्बन उत्सर्जन करता है, उस मात्रा को कार्बन फुटप्रिंट कहा जाता है। वहीं दूसरी ओर यदि कोई व्यक्ति या देश कार्बन का शून्य उत्सर्जन करके विकास करता है तो ऐसे देश को कार्बन निगेटिव देश कहा जाता है।
भूटान ने जंगलों को लेकर बना सख्त कानून
भूटान ने कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए सख्त कानून बनाया है। भूटान में हर साल करीब 40 लाख टन कार्बन उत्सर्जित होता है और भूटान के जंगल उन्हें पूरी तरह से सोखने में सक्षम है। भूटान के कानून के मुताबिक देश में कम से कम 60 फीसदी जंगलों का होना अनिवार्य है। फिलहाल भूटान की 72 फीसदी भूमि पर जंगल मौजूद है। भूटान में बिजली बनाने के लिए कोयले का बिल्कुल भी उपयोग नहीं किया जाता है। यहां हाइड्रो पावर के जरिए ही बिजली बनाई जाती है। भूटान कार्बन उत्सर्जन को रोकने में 100 फीसदी सफल हुआ है। भूटान की अर्थव्यवस्था भी पूरी तरह से टूरिज्म पर निर्भर है।
सूरीनाम में भी 97 फीसदी हिस्से में जंगल
नेपाल के समान ही दक्षिण अमेरिकी देश सूरीनाम में भी 97 फीसदी जमीन पर जंगल मौजूद हैं। सूरीनाम की सेना, सरकार के साथ-साथ जनता ने जंगलों की सुरक्षा के लिए कई सख्त कदम उठाए हैं। सूरीनाम की पूरी अर्थव्यवस्था उद्योगों पर केंद्रित न होकर में खेती-किसानी, सोना, बॉक्साइट और पेट्रोकेमिकल पर आधारित है। सूरीनाम कार्बन निगेटिव देश में इसलिए शामिल हो पाया क्योंकि यहां सरकार और सेना के साथ जनता भी मिलकर काम कर रही है।
जंगल का क्षेत्रफल बढ़ा रहा पनामा
कार्बन उत्सर्जन घटाने का लक्ष्य तय करने के लिए पनामा ने भी सख्त कदम उठाए हैं। पनामा में कोयले को ईंधन के रूप में इस्तेमाल में काफी कटौती की गई है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की एक रिपोर्ट के अनुसार मध्य अमेरिकी देश पनामा प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है। इस देश में 57 फीसदी पर पहाड़ और जंगल हैं। पनामा ने जंगलों का क्षेत्रफल बढ़ाने के लिए सख्त कानून बनाया है। पनामा ने 2050 तक 50 हजार हेक्टेयर जमीन को जंगलों में बदलने का भी संकल्प लिया है।
भारत के सामने है कठिन चुनौती
भारत तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था वाला देश है और ऐसे में आने वाले कुछ सालों में यहां तेज विकास प्रक्रिया के मद्देनजर कार्बन उत्सर्जन में तेजी की आशंका भी जताई रही है। यही कारण है भारत में सतत टिकाऊ विकास पर जोर दिया जा रहा है। भारत में फिलहाल प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन 1.92 टन है, जो एशियाई महाद्वीप के 4.48 टन औसत है। फिलहाल भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जक बन गया है। भारत को कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए सौर ऊर्जा और हाइड्रो पॉवर के क्षेत्र में ज्यादा निवेश बढ़ाना होगा।