आदिवासीयो ने यह तय किया कि जंगल में बसे सान्वालीगढ़ जैसे तीर्थ स्थल और उनके राजाओ के किले ही जंगल पर उनके हक़ और उनके यहाँ के मूल नागरिक होने का असली सबूत है. और, वो ना तो जंगल जमीन पर अपने हक़ को लेकर और ना ही अपनी नागरिकता को लेकर सरकार को कोई भी कागजी सबूत दिखाएँगे; इस कागजी सबूत के जाल के नाम पर ही अंग्रेजो से लेकर आजतक उन्हें जंगल और जमीन से दूर किया गया. वहां आदिवासीयो ने नारा दिया: “पुरखो से नाता जोड़ेंगे- जंगल-जमीन नहीं छोड़ेंगे”.
बैतूल: इस समय देश में CAA , NRC और लोगो के अपने हक के मुद्दे को लेकर अनेक तरह के विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. बैतूल और हरदा जिले के आदिवासीयो ने एक अनोखा तरीका निकाला. इन दोनों जिले के आदिवासीयो ने यह तय किया कि जंगल, जमीन पर अपने हक़ और अपनी नागरिकता को साबित करने के लिए वो सरकार के सामने कोई भी कागजी सबूत पेश नहीं करंगे. इसकी जगह, वो एक अभियान के तहत जंगल में बसे आदिवासीयो के अलग-अलग तीर्थ-स्थल और राजाओ के किले पर जाकर अपने पुरखो को याद करेंगे और सरकार से आव्हान करेंगे कि वो यहाँ आकर जिंदा सबूत देखे. श्रमिक आदिवासी संगठन और समाजवादी जन परिषद के राजेन्द्र गढ़वाल ने बताया कि इसी अभियान की पहली कड़ी के रूप में सान्वालीगढ़ किले को चुना. इस कड़ाके की ठंड में भी इन दोनों जिलो के 15 गाँव के 100 आदिवासी प्रतिनिधी इन दोनों जिलो की सीमा पर स्थित आदिवासी राजा के किले और आदिवासीयो के तीर्थ-स्थल सान्वालीगढ़ पर 3 फरवरी दोपहर से 4 फरवरी दोपहर तक जुड़े.
यहाँ लम्बी चर्चा के बाद आदिवासीयो ने यह तय किया कि जंगल में बसे सान्वालीगढ़ जैसे तीर्थ स्थल और उनके राजाओ के किले ही जंगल पर उनके हक़ और उनके यहाँ के मूल नागरिक होने का असली सबूत है. और, वो ना तो जंगल जमीन पर अपने हक़ को लेकर और ना ही अपनी नागरिकता को लेकर सरकार को कोई भी कागजी सबूत दिखाएँगे; इस कागजी सबूत के जाल के नाम पर ही अंग्रेजो से लेकर आजतक उन्हें जंगल और जमीन से दूर किया गया. वहां आदिवासीयो ने नारा दिया: “पुरखो से नाता जोड़ेंगे- जंगल-जमीन नहीं छोड़ेंगे”. इसके बाद, उन्होंने अपने पुरखो को याद किया और परम्परागत आदिवासी झंडा चढ़ाकर वहां देव स्थान पर पूजा-पाठ की और यह एलान किया कि जंगल में बसे उनके देव और उनके राजाओ के स्थान ही जंगल, जमीन पर उनके हक़ और उनकी नागरिकता का असली सबूत है. जिस सरकार को सबूत चाहिए वो यहाँ उनके देव स्थान और राजाओ के किले पर आकर उनसे बात करे.
हरदा जिले के रबांग गाँव के पूर्व जनपद सदस्य रामदीन ने कहा कि जिस जंगल में उनके पुरखो के हाड़-मॉस गड़े है है वहा सरकार वहा सरकार उनसे एक बाद एक स्कूल में एडमिशन से लेकर और जंगल जमीन पर हक़ को लेकर कागजी सबूत मांगती है. और अब तो आदिवासी होने और अपनी नागरिकता का सबूत भी देना होगा. बैतूल जिले के मालीखेडा गाँव के निवासी और पूर्व सरपंच रमेश ने बताया कि सान्वालीगढ़ का किला और वहां उनके देव स्थान इस बात का सबूत है कि आदिवासी अंग्रेजो और आज़ाद भारत की सरकार के पहले से यहाँ है. अब इससे बड़ा सबूत वो क्या दे. जंगल , जमीन पर उनके हक़ और पीढीयो स इस धरती के भूमिपुत्र होने का अपना दावा सिद्ध करने के लिए उन्होंने अपने आदिवासी तीर्थ स्थल और राजाओं के राजाओं के किले पर जुड़ने का यह अभियान चलाया है.
अनुराग मोदी ने कहा कि यह अभियान आगे भी जारी रहेगा. सरकार एक तरफ आदिवासीयो को उनके जंगल, जमीन और संस्कृती से अलग कर रही है और दूसरी तरफ उनसे नित्य-नित्य कागजी सबूत मांगकर उन्हें कागजो के जाल में फसा रही है. उन्होंने बताया कि जिस गौंडवाना में कभी आदिवासी का राज था आज वो उस से पहले जंगल पर हक़ और अब नागरिकता का हक़ माँगा जा रहा है. आदिवासीयो ने इस कार्यक्रम के लिए सान्वालीगढ़ का किला इसलिए चुना क्योंकि अंग्रेजो के आने तक यहाँ के राजा का राज बैतूल जिले के चीरापाटला से लेकर रहटगांव तक था. यह बात होशंगाबाद जिले की सेटेलमेंट रिपोर्ट में दर्ज है. दूसरा, यह इस इलाके के आदिवासीयो का तीर्थ-स्थल है.