मंडला – आदिवासी बाहुल्य मंडला जिले में विज्ञान के इस आधुनिक युग में अन्धविश्वास की जड़े कितनी गहरी है इसकी बानगी अक्सर देखने सुनने को मिलती रहती है। अन्धविश्वास भी ऐसा की चिकित्सकों को छोड़कर भोले भाले ग्रामीण झाड़ फूंक के चक्कर में फसकर तांत्रिकों और पंडों से अपना इलाज करते नज़र आ जाते है। ग्रामीण क्षेत्रों में सर्प दंश के मरीजों को तो अक्सर झाड़ फूंक कराते देखा जाता है लेकिन अब टीबी, कैंसर, मिर्गी जैसी गंभीर बीमारियों का अवैज्ञानिक और अनूठे तरीके से इलाज किया जा रहा है।
नर्मदा तट पर अनोखे तरीके से नर्मदा को प्रसन्न करने पूजन – अर्चन कर उससे फल मांगते है और मरीजों को नर्मदा की पूजन अर्चन करने के बाद लौटते हुए नर्मदा तट पर पहुंचकर उफनती नदी में डुबकी लगाने को कहा जाता है। इसी डुबकी के जरिये असाध्य रोगों के इलाज का दावा किया जा रहा है। बड़े तो बड़े छोटे – छोटे बच्चों को भी यहाँ काफी दूर से नर्मद तट तक लुढ़काते हुए नर्मदा नदी में डुबकी लगवाई जाती है। ये बच्चे खुद नहीं लोट पाते तो उन्हें हाथों से गेंद की तरह अमानवीय तरीके से लुढ़काया जाता है।
मंडला जिले में झाड़ फूंक और तंत्र क्रियाओं की बाते आम है। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में लोग भूत – प्रेत के किससे सुनाते आसानी से मिल जाएंगे। छोटी बड़ी बीमारी होने पर इसे प्रेत बाधा मानते हुए झाड़ फूंक करने और कराने वालों की भी यहाँ कोई कमी नहीं है। सर्प दंश के मामलों का हाल तो यह है कि लोग मरीज की जान को जोखिम में डालते हुए उसको अस्पताल लाने के पहले झाड़ – फूंक वालों के पास लेकर पहुँच जाते है।
लेकिन आज हम आपको इससे भी हटकर नये और अनोखे तरीके से ऐसे असाध्य रोगों के उपचार के बारे में बता रहे है जो आसानी से चिकित्सीय विज्ञान में भी साध्य नहीं है। मंडला जिला मुख्यालय से करीब 25 किमी दूर स्थित भावामाल ग्राम पंचायत के भावाजर गांव में लगता है ऐसे ही असाध्य रोगों को दूर करने अन्धविश्वास का मेला। इलाज के लिए दो दिनों तक नर्मदा की आराधना होती है। हर माह होने वाली इस ख़ास तंत्र – क्रियाओं से एक दिन नहीं बल्कि दो दिनों तक इलाज चलता है। पहले दिन दोपहर में मरीजों को नर्मदा की पूजन अर्चन करने के बाद लौटते हुए नर्मदा तट पर पहुंचकर डुबकी लगाने को कहा जाता है जिसे सिद्धि यात्रा कहा जाता है। इसी सिद्धि के दम पर इलाज का दावा किया जाता है।
दूसरे दिन सुबह करीब 6 बजे फिर नर्मदा का पूजन – अर्चन कर मरीजों को लौटते हुए नर्मदा में डुबकी लगवाई जाती है। इस बार इस क्रिया को दण्ड यात्रा कहा जाता है। बताया जा रहा है कि दण्ड यात्रा के जरिये बीमारी पकड़ में आती है और नर्मदा में डुबकी लगते ही बीमारी गायब हो जाती है और व्यक्ति पूरी तरह स्वस्थ हो जाता है। बड़े तो बड़े छोटे – छोटे बच्चों को भी यहाँ काफी दूर से नर्मद तट तक लुढ़काते हुए नर्मदा नदी में डुबकी लगवाई जाती है। ये बच्चे खुद नहीं लोट पाते तो उन्हें हाथों से गेंद की तरह अमानवीय तरीके से लुढ़काया जाता है। इस दौरान बच्चे जोर जोर से रोते है चीखते है लेकिन इलाज के नाम पर उनपर अत्याचार का सिलसिला चलता रहता है। इस दौरान बच्चों की सांस भी रुक सकती और दम भी घुट सकता है लेकिन इन सब से बेपरवाह इन बच्चों के माता पिता इलाज और आस्था के नाम सब कुछ ख़ामोशी से देखते रहते है।
नर्मदा के पूजन आर्च और उसमे दुनकी के जरिये यह इलाज और कोई नहीं बल्कि भावामाल ग्राम पंचायत का सरपंच पूरनसिंह सरोते और उसके गुरु झनक मसराम करते है। तांत्रिक झनक मसराम का कहना है कि उनका एक्सीडेंट हो गया था उन्होंने कई तांत्रिकों और डॉक्टर्स से अपना चेकअप कराया लेकिन वो ठीक नहीं हुए। इसके बाद उन्होंने धूमा नामक एक जगह के बंजर टोला में जाकर कठिन तपस्या की और सिद्धि प्राप्त की। इसी सिद्धि के दम पर वो रात भर नर्मदा की आराधना करते है और नर्मदा में डुबकी लगवाकर पीड़ितों का इलाज करते है। यहाँ कोई छोटी – मोटी या सामान्य बीमारियों का इलाज नहीं होता। दावा है कि यहाँ तंत्र – क्रियाओं के जरिये टीबी, कैंसर, मिर्गी जैसी अन्य गंभीर बीमारियों का इलाज नर्मदा नदी में डुबकी लगा कर होता है।
मंडला में अंधविश्वास की जेड कितनी मजबूत इसका अंदाजा नर्मदा तट पर इलाज और आस्था के नाम पर लग रहे अन्धविश्वास के इस मेले से सहज ही लगाया जा सकता है। जिले के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. के सी मसराम भी मानते है कि जिले में जागरूकता के अभाव के चलते अन्धविश्वास की जड़े काफी मजबूत है। लोग इलाज के लिए चिकित्सकों के पास आने से पहले तांत्रिकों और पंडो के पास जाकर मरीज की जान से खिलवाड़ करते है। लेकिन इन सबको रोकने उनके पास भी कोई कारगर उपाए नहीं है। वे मीटिंग्स में अपने अधीनस्थ स्वास्थ कार्यकर्ताओं को गाँवों में जागरूकता लाने की नसीहतें देकर अपना कर्तव्य पूरा कर लेते है।
डॉ. के सी मसराम, मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, मंडला
रिपोर्ट- @सैयद जावेद अली