केंद्र में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की मुखिया भारतीय जनता पार्टी ने आगामी लोकसभा के लिए अपना घोषणा -पत्र जारी कर दिया है। इसे ‘संकल्पित भारत ‘सशक्त भारत नाम दिया गया है। भाजपा की घोषणा- पत्र समिति के अध्यक्ष केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह थे। राजनाथ ने ही गत लोकसभा चुनाव में अध्यक्ष की हैसियत से घोषणा -पत्र जारी किया था। उस समय मंच पर उनके आलावा प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ,पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी उपस्थित थे।
पांच सालों के बाद स्थितियां इस तरह बदली हुई है कि 2019 के लिए जब भाजपा का घोषणा -पत्र जारी हुआ तो मंच पर केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह ही मौजूद रहे। आडवाणी एवं जोशी पूरी तरह से नदारद थे। भाजपा के इन दोनों वरिष्ठ नेताओं को 75 पार के फार्मूले के तहत टिकिट से वंचित किया गया है। उन्हें अब मार्गदर्शक भी नहीं बल्कि तटस्थ दर्शक की भूमिका स्वीकार करने के लिए विवश होना पड़ा है। कुल मिलाकर अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ही भाजपा की पहचान बन गए है।
भाजपा का घोषणा -पत्र जारी करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि यह घोषणा -पत्र तीन चीजों पर आधारित है-राष्ट्रवाद हमारी प्रेरणा, अंत्योदय हमारा दर्शन और सुशासन हमारा मंत्र। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने मोदी सरकार की पांच वर्ष की उपलब्धियों को स्वर्ण अक्षरों में अंकित किए जाने योग्य बताया। उन्होंने यह भी जोड़ा की पीएम मोदी ने इन पांच वर्षों में देश का मान भी बढ़ाया है।
मोदी सरकार ने आजादी की पचहत्तरवीं वर्षगांठ तक नए भारत के निर्माण का जो संकल्प व्यक्त किया है ,उसे फोकस में रखकर घोषणा पत्र में 75 संकल्पों को प्रस्तुत किया गया है। संकल्पों में पार्टी ने अयोध्या में राम के निर्माण ,जम्मू कश्मीर में धारा 370 को खत्म करने एवं 35 अ को हटाने की प्रतिबद्धता ,2022 तक किसानों की आय को दुगुनी करना ,महिलाओं के लिए संसद एवं विधानसभाओं में 33 फीसदी आरक्षण सुनिश्चित करना ,मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक जैसी कुप्रथा से छुटकारा दिलाने हेतु कानून बनाने की प्रतिबद्धता ,व्यापारियों के हितों की रक्षा के लिए राष्ट्रीय व्यापारी कल्याण बोर्ड के गठन का प्रस्ताव आदि को प्रमुखता से शामिल किया गया है।
इधर लोकसभा चुनाव को देखते हुए कांग्रेस जिस तरह से किसानों को सम्मोहित करने के लिए लोक लुभावनी घोषणाएं कर रही है ,उसके जवाब में भाजपा के संकल्प पत्र में छोटे एवं सीमांत किसानों को 60 साल की आयु के बाद पेंशन की सुविधा एवं एक लाख तक के किसान क्रेडिट कार्ड ऋण को पांच साल वर्षों में ब्याज मुक्त करने का वादा किया गया है।
देश की अर्थव्यवस्था से जुड़े 22 बड़े क्षेत्रों में रोजगार के अधिकाधिक अवसर पैदा करने के लिए सरकार की और से पर्याप्त मदद का वादा किया गया है। स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार करने के लिए 1400 लोगो पर एक डॉक्टर की व्यवस्था करने के वादे के साथ ही 75 नए मेडिकल कॉलेज खोलने एवं 2022 तक हर गरीब के घर तक प्राथमिक चिकित्सा सुविधा के पहुंचाने एवं आयुष्मान योजना के विस्तार का संकल्प भी भाजपा के घोषणा पत्र का अहम् हिस्सा है।
भाजपा के घोषणा -पत्र के पूर्व कांग्रेस ने भी अपना घोषणा -पत्र जारी किया है। इसका मुख्य आकर्षण उनकी न्याय योजना है। इसमें देश के 20 फीसदी गरीब परिवारों को सालाना 72 हजार रुपए देने का वादा किया गया है। राहुल गांधी ने कहा है कि इस योजना को लागु करने के लिए जितनी राशि की आवश्यकता होगी उसे जुटाने के लिए माध्यम वर्ग पर आर्थिक बोझ नहीं डाला जाएगा। हालांकि यह बात समझ से परे है कि इस योजना को लागु करने के लिए जो भारी भरकम राशि की आवश्यकता होगी ,उसे कहा से जुटाया जाएगा। कांग्रेस ने किसानों का हितैषी बनने के लिए अलग से किसान बजट बनाने जैसे लुभावने वादे भी किए है।
किसानो द्वारा कर्ज न चूका पाने की स्थिति में आपराधिक की बजाय सिविल केस चलाने का वादा किया गया है। बेरोजगार युवाओं को रिझाने के लिए 22 लाख रिक्त पदों को भरने की बात कई गई है। 2013 के यौन उत्पीड़न कानून की समीक्षा के साथ केंद्र सरकार की नौकरियों में 33 फीसदी पद महिलाओं के लिए आरक्षित करने का वादा कर उनके हितैषी बनने की कोशिश की गई है। हालांकि कांग्रेस को घोषण पत्र में सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून संसोधन एवं राजद्रोह कानून को रद्द करने प्रस्ताव को लेकर आलोचना का भी शिकार होना पड़ा है।
भाजपा ने इस पर तीखा हमला करते हुए कहा है कि कांग्रेस इससे सेना का मनोबल कम करना चाहती है। इसके साथ ही राजद्रोह कानून को समाप्त करने का प्रस्ताव देश को तोड़ने वालों के मसूबों को मदद ही पहुंचाएगा। दरअसल चुनाव घोषणा -पत्र में कोई भी राजनीतिक दल जो भी वादे करता है तो उसकी प्रतिबद्धता पर तब सवाल उठने लगते है, जब सत्ता में आने के बाद उसपर अमल करने में कोताही बरती जाती हो।
आश्चर्य की बात यह है कि अपना कार्यकाल पूरा करने के पश्चात कोई भी दल जब अगले चुनाव के लिए अपना घोषणा पत्र जारी करता है ,तो वह यह दावा कभी नहीं करता है कि उसने अपने पिछले घोषणा पत्र के सभी वादे पुरे कर लिए हो। सारे वादे पूर्ण करने का दावा करने वाली पार्टी जब चुनाव में हार जाती है तब भी वह यह स्वीकार नहीं करती है कि वादों एवं दावों में अंतर को समझने की शक्ति जनता के पास भली भांति मौजूद है।
कांग्रेस ने अपने चुनाव घोषणापत्र में लोक लुभावने वादे अवश्य कर दिए है ,लेकिन पार्टी को यह अच्छी तरह मालूम है कि आगामी लोकसभा चुनाव में केंद्र से राजग की विदाई कराना फिलहाल उसके लिए कितना कठिन है। राष्ट्र की सुरक्षा संबंधी जो वादे वह अपने घोषणा पत्र में कर रही है जनता को वह रास नहीं आ रहे है। भाजपा ने तो इस मुद्दे पर कांग्रेस को पूरी तरह बैकफुट पर ला दिया है।
इधर मोदी सरकार ने विगत चुनावों के घोषणा पत्र में किए वादों को पूरा करने के लिए पूरी ईमानदारी बरती है। यह बात अवश्य है कि धारा 370 को हटाने एवं अनुच्छेद 35 अ समाप्त करने के वादे को पूरा नहीं कर सकी है। यह मामला इतना संवेदनशील है जिसे एकदम भी सुलझाया नहीं जा सकता है। अब मोदी सरकार पर यह भरोसा करना होगा कि दुबारा मौका मिलने पर वह इस पर कार्यवाही करने से हिचकेगी नहीं। कुल मिलाकर कांग्रेस एवं भाजपा का घोषणा -पत्र जनता के सामने है। अब देखना है कि जनता की नजरो में किसकी विश्वनीयता अधिक साबित होती है।
कृष्णमोहन झा/
(लेखक IFWJ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और डिज़ियाना मीडिया समूह के राजनैतिक संपादक है)