प्रशांत महासागर के छोटे से देश मालदीव ने चीन के हिंद महासागर विकास फोरम की बैठक में शामिल होने से इनकार कर दिया है। मालदीव की सरकार ने चीनी दूतावास को स्पष्ट कर दिया है कि वह इस फोरम में हिस्सा नहीं लेने जा रहा है। वैसे, चाइना इंटरनेशनल डेवलपमेंट को-ऑपरेशन एजेंसी ने कहा था कि चाइना इंडियन ओशन फोरम ऑन डिवेलपमेंट की 21 नवंबर की बैठक में मालदीव शामिल हुआ था। वहीं ऑस्ट्रेलिया ने भी इस फोरम में शामिल होने से इनकार कर दिया है। आपको बता दें कि मालदीव उन देशों में शामिल है जो चीनी कर्ज के जाल में फंसे हुए हैं, लेकिन फिर भी मालदीव ने चाइना- इंडियन ओशन फोरम में हिस्सा लेने से साफ मना कर दिया है। इसे भारत की कूटनीतिक जीत भी कहा जा रहा है।
भारत से मजबूत हुए रिश्ते
दरअसल भारत के साथ संबंध मजबूत होने के बाद अब मालदीव चीन से दूरी बनाने में जुटा है। वहीं श्रीलंका के हालत को देखते हुए तमाम एशियाई देश चीन की चाल को समझने लगे हैं। मालदीव और भारत के रिश्ते बीते कुछ सालों में काफी मजबूत हुए हैं। इब्राहिम मोहम्मद सोलेह के राष्ट्रपति बनने के बाद से दोनों देशों के रिश्ते में प्रगाढ़ता दिखने लगी है। इसी साल अगस्त में मालदीव के राष्ट्रपति सोलिह भारत आए थे और उन्होंने भारत के साथ कई सहयोग समझौतों पर हस्ताक्षर किये थे। जब से सोलिह ने राष्ट्रपति पद संभाला है, वह तीन बार भारत आ चुके हैं।
चीन के कर्ज तले दबा है मालदीव
आपको बता दें कि श्रीलंका, पाकिस्तान और मालदीव्स उन देशों में हैं जो चीन के कर्ज तले सबसे ज्यादा
दबे हैं। पाकिस्तान पर चीन का 77.3 अमेरिकी डॉलर का कर्ज है। वहीं मालदीव का कुल कर्ज 86 एमवीआर है जिसमें से 44 एमवीआर बाहरी है। मालदीव की मीडिया के मुताबिक 2022 तक मालदीव का कर्ज बढ़कर 99 एमवीआर हो गया है। यानी यह मालदीव की जीडीपी का 113 पर्सेंट है।