लोगों के बीच एक धारणा बनी हुई है कि संघ स्वयंसेवक होना किसी प्रोफेशनल डिग्री लेने से भी आसान है। हालांकि सच यह है कि आरएसएस में स्वयंसेवक बनने के लिए कड़ी ट्रेनिंग से गुजरना होता है।
आरएसएस की चार दिवसीय मीटिंग में स्वयंसेवकों की ट्रेनिंग पर जोर दिया गया। यह मीटिंग प्रयागराज से करीब 25 किमी दूर गौहनिया में बुधवार को खत्म हुई। लोगों के बीच एक धारणा बनी हुई है कि संघ स्वयंसेवक होना किसी प्रोफेशनल डिग्री लेने से भी आसान है। हालांकि सच यह है कि स्वयंसेवक बनने के लिए कड़ी ट्रेनिंग से गुजरना होता है। आमतौर पर प्रोफेशनल कोर्सेज पूरा करने की समय-सीमा दो साल होती हैं, लेकिन संघ द्वारा दी जाने वाली ट्रेनिंग पूरी जिंदगी चलती है। कुछ नियमित अंतराल पर स्वयंसेवकों को ट्रेनिंग दी जाती है
कठिन अनुशासन का करना होता है पालन
प्रयागराज में हुई मीटिंग के दौरान स्वयंसेवकों के कार्य व्यवहार की भी कड़ी समीक्षा की गई। एक वरिष्ठ आरएसएस पदाधिकारी ने इस बात की जानकारी दी। संघ की परंपरा के मुताबिक निजी और आम जीवन में कठिन अनुशासन का परिचय देना सभी स्वयंसेवकों के लिए अनिवार्य है। आरएसएस के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार हमेशा ट्रेनिंग पर जोर देते रहे हैं। उनका मानना था है कि ट्रेनिंग से स्वयंसेवक संघ के विजन को समाज में विस्तृत रूप से लेकर जा सकते हैं। इस ट्रेनिंग के दौरान स्वयंसेवकों को पढ़ाई-लिखाई और पर्सनैलिटी डेवलमपेंट पर जोर देने के लिए उत्साहित किया जाता है। ट्रेनिंग कैंप चार लेवल पर होते हैं और इनकी समय-सीमा 7 दिन से लेकर 25 दिनों तक होती है।
ऐसे चलता है ट्रेनिंग कैंप
सात दिन का बेसिक ट्रेनिंग कैंप प्राथमिक शिक्षा वर्ग के तहत आता है। आमतौर पर यह स्थानीय स्तर पर आयोजित किया जाता है। इसके बाद प्रथम वर्ष शिक्षा वर्ग की बारी आती है। 15 दिन के इस कैंप को फर्स्ट ईयर ट्रेनिंग कैंप कहा जाता है। द्वितीय वर्ष शिक्षा वर्ग, सेकंड ईयर ट्रेनिंग कैंप होता है और इसकी अवधि 20 से 22 दिन की होती है। यह क्षेत्रीय स्तर पर आयोजित होती है। इसके बाद तृतीय वर्ष शिक्षा वर्ग या थर्ड ईयर ट्रेनिंग कैंप का आयोजन होता है। यह सबसे उच्च स्तर का ट्रेनिंग कैंप होता है। 21 दिन के इस कैंप में बहुत चुनिंदा स्वयंसेवक ही पहुंच पाते हैं। एक अन्य आरएसएस पदाधिकारी ने बताया यह कैंप राष्ट्रीय स्तर पर नागपुर स्थित संघ मुख्यालय में आयोजित होता है। उन्होंने बताया कि जनरल वॉलंटियर्स के लिए जिला या ब्लॉक लेवल पर होने वाले दो दिवसीय कैंप में हिस्सा लेना अनिवार्य होता है। यह कैंप दो साल में एक बार होते हैं।
क्या होता है ट्रेनिंग कैंप में
कैंप में शारीरिक और बौद्धिक दोनों तरह की ट्रेनिंग दी जाती है। शारीरिक ट्रेनिंग में दंड युद्ध, नियुद्ध, समता, योगासन और अन्य शारीरिक खेल सिखाए जाते हैं। वहीं बौद्धिक ट्रेनिंग में लेक्चर्स और ग्रुप डिस्कशंस का आयोजन होता है। गौरतलब है कि आरएसएस में कोई फॉर्मल मेंबरशिप नहीं होती है, इसे केवल नजदीकी शाखा में जाकर ही ज्वॉइन किया जा सकता है। मार्च 2022 तक देशभर में संघ की कुल 60,929 शाखाएं 38,390 जगहों पर संचालित हो रही थीं।
प्रचारक होना और भी कठिन
आरएसएस प्रचारक होना और भी कठिन है। संघ ज्वॉइन करने के लिए छोटी-छोटी जिम्मेदारियां दी जाती हैं। अगर वह इन जिम्मेदारियों को पूरी तरह से निभा ले जाते हैं तो इसके बाद उन्हें 10 दिन की खास ट्रेनिंग दी जाती है। एक साल बाद उनका मूल्यांकन किया जाता है और फिर उन्हें प्रचारक घोषित कर दिया जाता है। प्रचारकों के सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर भी प्रतिबंध है। सिर्फ इतना ही नहीं, वह फोटो और सेल्फी भी नहीं खींच सकते हैं। प्रचारक बन जाने के बाद उसी साल उन्हें पांच दिन की ट्रेनिंग दी जाती है। तीन साल के बाद फिर से रिव्यू होता है। इसके बाद पंच साल के बाद पुनर्मूल्यांकन होता है, तब कहीं जाकर तय होता है कि वह प्रचारक के रूप में काम करते रहेंगे। वॉलंटियर्स के मूल्यांकन और कुछ खास जिम्मेदारियों को केवल वरिष्ठ और अनुभवी सदस्यों को दिया जाता है।