नई दिल्ली – दिल्ली हाई कोर्ट में विश्व हिन्दू परिषद (वीएचपी) की याचिका के बाद राष्ट्रीय राजधानी में मुख्य जगहों की 123 संपत्तियां दिल्ली वक्फ बोर्ड को सौंपे जाने की जांच केंद्र सरकार ने शुरू कर दी है। ये संपत्तियां यूपीए शासनकाल के अंतिम दिनों में आनन-फानन में दिल्ली वक्फ बोर्ड को सौंप दी गई थीं।
शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू ने एक अंग्रेजी अखबार को बताया, ‘सलमान खुर्शीद के पदमुक्त होने के समय उनके खिलाफ एक प्रतिनिधिमंडल पिछले साल मुझसे मिला था। वोट बैंक को ध्यान में रखते हुए उन्होंने इन संपत्तियों के हस्तांतरण में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी।’
जनवरी 2014 में तत्कालीन यूपीए सरकार के शहरी विकास मंत्रालय ने 123 संपत्तियों को डिनोटिफाई करके वक्फ बोर्ड को सौंपने का कैबिनेट नोट तैयार किया था। मार्च, 2014 में आम चुनाव के लिए आदर्श आचार संहिता लागू होने से ठीक एक दिन पहले इन संपत्तियों को वक्फ बोर्ड को सौंप दिया गया। इन संभी संपत्तियों का 1911 से 1915 के दौरान ब्रिटिश शासनकाल में अधिग्रहण किया गया था।
शहरी विकास मंत्रालय के एक सीनियर अधिकारी ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘हस्तांतरण की अधिसूचना काफी जल्दी में जारी की गई थी। हमने इस मामले में कानून मंत्रालय को लिखा है और उससे राय मांगी है। इस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका दायर है और हम जानना चाहते हैं कि संपत्तियों का हस्तांतरण गैरकानूनी तो नहीं है।’
पिछले साल 22 मई को दिल्ली हाई कोर्ट में दायर याचिका में वीएचपी ने कहा, ‘सरकार द्वारा अधिगृहीत होने और कब्जे में लिए जाने के बाद जमीन अधिग्रहण कानून की धारा 48 के तहत इसे डिनोटिफाई या रिलीज नहीं किया जा सकता है।’
ज्यादातर डिनोटिफाई की गईं संपत्तियां कनॉट प्लेस, मथुरा रोड, लोधी रोड, मानसिंह रोड, पंडारा रोड, अशोक रोड, जनपथ, संसद भवन, करोल बाग, सदर बाजार, दरियागंज और जंगपुरा के आसपास हैं। सभी जगहों पर मस्जिदें हैं और कुछ पर दुकान और घर भी बने हुए हैं।
इन संपत्तियों में से 61 पर जमीन एवं विकास विभाग और बाकी पर डीडीए का मालिकाना हक है। दोनों ही विभाग शहरी विकास मंत्रालय के अधीन काम करते हैं। केंद्रीय वक्फ काउंसिल की बैठक की अध्यक्षता करते हुए तत्कालनी अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री सलमान खुर्शीद ने सितंबर 2012 में कहा था कि संपत्तियों से जुड़े विवाद जल्द सुलझा लिए जाएंगे।
हाई कोर्ट ने सरकार से इस विवाद को सुलझाने को कहा था और जनवरी 2013 में तत्कालीन अटर्नी जनरल जी ई वाहनवती ने सरकार को सलाह देते हुए कहा था, ‘संपत्तियों को ट्रांसफर करने का प्रस्ताव कानूनी रूप से संभव नहीं है।’ इसके बाद अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने सेंट्रल वक्फ काउंसिल के नेतृत्व में विशेषज्ञों की समिति बना दी, जिसने संपत्तियों को ट्रांसफर करने का समर्थन किया और अटर्नी जनरल भी मान गए।