सुप्रीम कोर्ट की ओर से जीएसटी (GST) चोरी के एक मामले में गिरफ्तारी और हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराए जाने के बाद से इसे लेकर करोबारियों में घबराहट है। लेकिन जीएसटी एक्सपर्ट्स का कहना है कि गिरफ्तारी के प्रावधान छोटे डीलर्स पर लागू नहीं होते, क्योंकि कानून में 2 करोड़ से ज्यादा टैक्स चोरी पर ही गिरफ्तारी हो सकती है। 5 करोड़ से कम के मामलों में बिना अरेस्ट वॉरंट के गिरफ्तारी नहीं हो सकती।
जीएसटी ऐक्ट के सेक्शन 69 और 132 के तहत चार तरह के टैक्स अपराधों में हो सकती है गिरफ्तारी
1. अगर कोई डीलर टैक्स चोरी के मकसद से बिना बिल के माल या सेवाओं की सप्लाई करता है।
2. बिना सप्लाई के चालान जारी करता है, जिसके कारण गलत तरीके से इनपुट क्रेडिट या रिफंड लिया जा सकता है।
3. बिना माल या सेवाओं की सप्लाई के कोई डीलर गलत तरीके से इनपुट क्रेडिट या रिफंड लेता है।
4. कोई डीलर खरीदार से टैक्स तो काटता है, लेकिन तीन महीने के भीतर सरकारी खाते में जमा नहीं कराता।
जीएसटी कंसल्टेंट सुधीर हालाखंडी कहते हैं, ‘इन सभी मामलों में गिरफ्तारी के लिए चोरी या रेवेन्यू लॉस की रकम का 2 करोड़ से ज्यादा होना जरूरी है। सरकार ने अब तक जीएसटी कंप्लायंस के कई पैमानों पर 1.5 करोड़ रुपये तक टर्नओवर वालों को छोटा कारोबारी माना है।
ऐसे कारोबारियों की ओर से 2 करोड़ से ज्यादा की टैक्स चोरी संभव नहीं, ऐसे में छोटे कारोबारियों को गिरफ्तारी प्रावधानों से बिल्कुल डरने की जरूरत नहीं है।’
दोबारा किया घपला तो सीधे गिरफ्तारी
हालांकि, इन धाराओं में पहले गिरफ्तार हो चुके कारोबारियों के दोबारा टैक्स चोरी पर 2 करोड़ रुपये की सीमा की अनदेखी की जा सकती है, लेकिन वहां भी 1 करोड़ से कम की चोरी पर गिरफ्तारी नहीं हो सकती।
5 करोड़ से ज्यादा की चोरी गैर जमानती अपराध
लिटिगेशन एक्सपर्ट अशोक बत्रा का कहना है कि जीएसटी कानून में भी टैक्स चोरी से जुड़े अपराधों को संज्ञेय और असंज्ञेय श्रेणियों में रखा गया है। 5 करोड़ से ज्यादा टैक्स चोरी को संज्ञेय अपराध माना गया है, जहां गिरफ्तारी के लिए अरेस्ट वॉरंट की जरूरत नहीं होती और जमानत भी नहीं मिलती।
2-5 करोड़ की चोरी जमानती अपराध
हालांकि, 2 से 5 करोड़ तक की रकम के मामलों में बिना वॉरंट गिरफ्तारी नहीं हो सकती और आरोपी को जमानत पर रिहा किया जा सकता है। हालांकि, दोनों ही मामलों में सक्षम प्राधिकारी की मंजूरी भी जरूरी होती है।
किसी भी कारोबारी को गिरफ्तार करने के लिए निर्देश जीएसटी कमिश्नर ही दे सकता है और किसी कारोबारी परिसर की छानबीन के लिए भी ज्वाइंट कमिश्नर रैंक के अधिकारी से निर्देश जरूरी होता है। छोटे अधिकारी इस बारे में अपने आप निर्णय नहीं ले सकते।