आजादी के बाद 20 बार हुए चुनाव, 52% मुस्लिम वाले रामपुर ने पहली बार चुना हिंदू विधायक
Rampur By Election 2022: भगवान राम के नाम वाले रामपुर में पहली बार कोई हिंदू विधायक बना है। साल 1952 से चले आ रहे सिलसिलें में अब तक यहां 20 बार चुनाव हो चुके हैं। इनमें से 10 बार तो अकेले आजम खान चुनाव जीतकर विधायक बने। इस बार आकाश सक्सेना ने उनके गढ़ को चकनाचूक कर दिया है।
रामपुर में पहली बार बना हिंदू विधायक
हाइलाइट्सरामपुर उपचुनाव में बीजेपी ने सपा को हराया
आकाश सक्सेना रामपुर के पहले हिंदू विधायक
आकाश सक्सेना ने एसपी के आसिम रजा को हरायारामपुरः उत्तर प्रदेश के एक लोकसभा और दो विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के नतीजे आ गए हैं। मैनपुरी और खतौली की सीट जहां समाजवादी पार्टी के खाते में गई है। वहीं पार्टी के सबसे मजबूत किले के रूप में पहचानी जाने वाली रामपुर की विधानसभा सीट पर पहली बार भगवा लहराया है। भारतीय जनता पार्टी ने यहां समाजवादी पार्टी को आखिरकार पटखनी दे दी है। बीजेपी के आकाश सक्सेना ने इस जीत के साथ न सिर्फ पहली बार यूपी की विधानसभा में अपना मार्ग प्रशस्त किया है बल्कि भगवान राम के नाम वाले रामपुर में पहले हिंदू विधायक के तौर पर अपना नाम इतिहास में दर्ज करा लिया है। साल 1952 से रामपुर में हो रहे चुनाव में पहली बार किसी हिंदू प्रत्याशी को जीत मिली है।
रामपुर में आजम खान के प्रत्याशी आसिम रजा को हराने वाले आकाश सक्सेना वही शख्स हैं, जिन्होंने आजम खान के खिलाफ न सिर्फ कानूनी लड़ाई लड़ी बल्कि उन्हें इलाके की सत्ता से बेदखल करने में भी अहम भूमिका निभाई। रामपुर के नवाब परिवार से गहरी प्रतिद्वंदिता होने के बावजूद आजम खान को रामपुर में हराना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सा माना जाता था। हालांकि, अब भी यह पराजय सीधे तौर पर आजम खान की नहीं है। जब भी आजम खान यहां प्रत्याशी नहीं रहे हैं, तब-तब चुनाव में विपक्षी उम्मीदवारों का पक्ष ज्यादा मजबूत हुआ है।
52 प्रतिशत मुस्लिम आबादी
देश में सर्वाधिक मुस्लिम बहुल जिला रामपुर ही है जहां 52 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है और बाकी की आबादी हिंदूओं की अगड़ी और पिछड़ी जातियों में बंटी हुई है। यहां हिंदू समुदाय के लोग अल्पसंख्यकों में आते हैं। रामपुर को पूरे उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक मुस्लिम आबादी वाली जिला कहा जाता है, जो यहां के राजनीतिक मायनों को दिखाता है।
चुनाव आयोग पर उठे सवाल
चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, आकाश सक्सेना ने 33 हजार 702 मतों के अंतर से सपा के उम्मीदवार आसिम रजा को हराया है। चुनाव को लेकर सपा की ओर से प्रशासन पर कई गंभीर आरोप भी लगाए गए। रजा ने ही दावा किया था कि पुलिस के बल पर ढाई लाख लोगों को वोट नहीं देने दिया गया। इससे पहले आजम खान भी यह शिकायत कर चुके हैं कि रामपुर में चुनाव हो ही नहीं रहा है बल्कि प्रशासन पूरी तरह से बीजेपी को जीत दिलाने के अभियान पर काम कर रही है। उपचुनाव में बेहद कम वोटिंग के बाद सपा नेता रामगोपाल ने भी मतगणना से एक दिन पहले चुनाव आयोग से अपील की थी कि चुनाव रद्द कराकर दोबारा कराए जाएं। अखिलेश यादव ने मैनपुरी की जीत के बाद मीडिया से बात करते हुए कहा कि रामपुर में फेयर इलेक्शन होते तो वहां सपा की सबसे बड़ी जीत होती।
हालांकि, सपा के इन आरोपों को लेकर चुनाव आयोग की तरफ से कोई जवाब नहीं आया। आकाश सक्सेना रामपुर सीट से विजेता हैं। वह पहले हिंदू हैं जो इस सीट से विधायक बने हैं। मुस्लिम बहुल आबादी वाले रामपुर में मुसलमानों को साधने के लिए बीजेपी ने काफी कवायद की थी। पार्टी की पसमांदा नीति की सबसे बड़ी प्रयोगशाला के तौर पर भी रामपुर को माना गया। इससे पहले लोकसभा के लिए हुए उपचुनाव में इसी साल बीजेपी ने आजम के प्रत्याशी को हराया था और दावा किया था कि रामपुर में आजम खान का दबदबा खत्म हो गया है।
रामपुर में अब तक बने थे सिर्फ मुस्लिम विधायक
राम हिंदुओं के प्रमुख देवता के रूप में पूजे जाते हैं। हाल के कुछ दशकों से भगवान राम के राजनैतिक इस्तेमाल की परंपरा चली है। इन्हीं भगवान के नाम से जिस शहर का नाम रामपुर है, वहां अब तक कोई हिंदू विधायक नहीं बन पाया था। मुस्लिम बहुल आबादी थी तो यहां सबसे पहला चुनाव जीतने वाली कांग्रेस ने उम्मीदवार भी मुस्लिम फजलुल हक को बनाया। साल 1952 में वह यहां से विधायक बने। इसके बाद यहां की राजनीति में नवाब परिवार की भी एंट्री हुई और लंबे समय तक उनका भी दबदबा रहा।
साल 1957 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर असलम खान रामपुर से विधायक बने। कांग्रेस ने 1962 में इस सीट पर वापसी की तो बेगम किश्वर आरा विधायक बनीं। 1967 में यह सीट स्वतंत्र पार्टी के खाते में रही। अख्तर अली खां ने पार्टी के टिकट पर जीत दर्ज की। इसके बाद कांग्रेस ने जबर्दस्त वापसी की और मंजूर अली खान के नेतृत्व में 1969, 1974 और 1977 में भी चुनाव जीत लिया। 1977 का चुनाव आपातकाल के बाद कांग्रेस विरोधी सियासी माहौल में लड़ा गया था। ऐसे में मंजूर अली खां की इस सीट पर पकड़ का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि ऐसी परिस्थिति में भी वह चुनाव कांग्रेस के टिकट पर जीते। जिस प्रत्याशी को उन्होंने हराया था, वह भी कोई आम शख्स नहीं था।
1877 में शुरू हुआ आजम युग
साल 1977 में आपातकाल विरोधी आंदोलन में जेल गए आजम खान एक मामूली हैसियत के प्रत्याशी थे, जिनके सामने मंजूर अली खां जैसी कद्दावर शख्सियत थी। वह चुनाव हार गए लेकिन साल 1980 में जनता पार्टी (एस) से चुनाव लड़ते हुए आजम ने रामपुर में पहली बार जीत हासिल की। इस जीत से इलाके में उनके दबदबे की कहानी शुरू होती है। इसके बाद पार्टियां बदलीं लेकिन रामपुर का विधायक नहीं बदला। साल 1985 में लोकदल, 1989 में जनता दल, 1991 में जनता पार्टी और 1993 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर आजम ने ताल ठोकी और लगातार विधायक बनते रहे।
साल 1996 में इस सीट पर कांग्रेस ने आजम की जीत का सिलसिला तोड़ा। अफरोज अली खां चुनाव जीते और विधायक बने। 2002 में आजम ने वापसी की और सपा के टिकट पर साल 2017 तक लगातार विधायक बने रहे। 2019 में लोकसभा में जाने के बाद उन्होंने अपनी पत्नी तंजीन फात्मा को रामपुर से विधानसभा का चुनाव लड़वाया और वह भी चुनाव जीतीं। साल 2022 में आजम फिर अपनी सीट पर वापस आ गए लेकिन एमपी-एमएल कोर्ट ने उन्हें भड़काऊ भाषण के एक मामले में दोषी करार दे दिया, जिसके बाद उनकी विधायकी चली गई। उपचुनाव हुए और रामपुर में आजम युग को एक बड़ा धक्का लगा। बीजेपी ने पहली बार इस सीट पर जीत दर्ज की। पहली बार कोई हिंदू (आकाश सक्सेना) रामपुर से विधायक बना।
भगवान राम के नाम पर बसा है रामपुर?
रामपुर के नाम में भगवान राम का नाम आता है। रामायण की कोई कहानी इस जगह से नहीं जुड़ती। राम से रामपुर के सिर्फ दो ही कनेक्शन हैं। एक यह कि उसके नाम में राम आता है। दूसरा यह कि दुनिया की अकेली रामायण की किताब रामपुर की रजा लाइब्रेरी में है, जिसकी शुरुआत पवित्र कुरआन की पहली आयत से होती है। इस किताब को 300 साल पहले सुमेर चंद ने लिखा था, जो वाल्मीकि रामायण का फारसी में अनुवाद है। इस फारसी रामायण की शुरुआत बिल्मिल्लाह-उर-रहमान-ओ-रहीम से होती है। बाद में प्रोफेसर शाह अब्दुस्सलाम और वकारुल हसन ने इस रामयाण का हिंदी अनुवाद भी किया।
क्यों कहते हैं इसे रामपुर
रामपुर रियासत के राजनैतिक इसिहास के बारे में प्रमाणिक जानकारी कम ही है। कहा जाता है कि नवाब फैजुल्ला खां रामपुर रियासत का पहला शासक था लेकिन इससे पहले यहां कठेरिया वंश के राजा राम सिंह की रियासत थी। साल 1626 के आसपास पूजा करते हुए धोखे से राजा राम सिंह की हत्या कर दी गई थी। इसके बाद यह रियासत तत्कालीन मुगल बादशाह शाहजहां के सेनापति रुस्तम खां के हाथ में आ गई। रुस्तम खां ने इस जीते हुए नगर का नाम अपने नाम पर रुस्तम नगर रख दिया था लेकिन जब वह शाहजहां के दरबार में पेश हुए तो खुशामद में उसने जीती हुई रियासत को उनके बेटे मुराद के नाम पर मुरादाबाद बता दिया।
अनुमान है कि बाद में यह मुरादाबाद रियासत युद्ध आदि में छिन्न भिन्न हो गई और इसका एक हिस्सा तो मुरादाबाद के रूप में बरकरार रहा लेकिन जिस इलाके में राजा राम सिंह का शासन रहा था, उसे रामपुर के नाम से जाना जाने लगा। बाद में जब अफगान लड़ाकों का इस रियासत पर कब्जा हुआ तो उन्होंने इसका नाम बदलने की कोशिश की लेकिन रामपुर अपनी लोकप्रियता में इतना मजबूत हो गया था कि इसमें बदलाव संभव नहीं हो सका। तबसे यह रामपुर के नाम से ही जाना जाता है।