सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) के कार्यकाल की कम अवधि का बुरा असर चुनाव सुधारों पर पड़ रहा है और इससे आयोग की स्वतंत्रता भी प्रभावित हुई है। 1950 से लेकर 1996 तक शुरुआती 46 वर्षों में देश में 10 निर्वाचन आयुक्त हुए। यानी इनका औसत कार्यकाल करीब साढ़े चार साल का निकलता है।
सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य चुनाव आयुक्त के कार्यकाल पर उठाए सवाल
26 साल में 15 मुख्य चुनाव आयुक्त, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
पिछले 24 वर्षों में भारत में 22 मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्ति हुई
नई दिल्ली: मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी इस वक्त चर्चा में है। सुप्रीम कोर्ट की ओर से कहा गया कि पिछले 26 वर्षों के दौरान 15 मुख्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति एक परेशान करने वाली प्रवृत्ति है। 26 साल में 15 मुख्य चुनाव आयुक्त तो एक नजर देश के मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्ति पर डालनी चाहिए। पिछले 24 वर्षों में भारत में 22 मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्ति हुई है। वहीं 1950 के बाद से 48 वर्षों में 28 सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस हुए।
चीफ जस्टिस बनने पर कार्यकाल कितने दिनों का होगा
1998 से CJI के नेतृत्व वाले कॉलेजियम ( जिसमें चार सबसे वरिष्ठ SC जज शामिल हैं) ने सुप्रीम कोर्ट में 111 सुप्रीम कोर्ट जजों की नियुक्ति की है। उनमें से जस्टिस आर सी लाहोटी 2004 में CJI बनने वाले पहले व्यक्ति थे और तब से 15 और शीर्ष न्यायिक पद पर पहुंचे हैं। SC जज के रूप में नियुक्ति के लिए सरकार को उम्मीदवारों के नामों की सिफारिश करते समय CJI और सुप्रीम कोर्ट के चार सबसे वरिष्ठ जज जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में प्रत्येक का कार्यकाल क्या होगा। साथ ही चीफ जस्टिस बनने पर उसका कार्यकाल कितने समय के लिए होगा।
चीफ जस्टिस के कार्यकाल को दिनों में गिना जा सकता है
2000 के बाद से देश में 22 चीफ जस्टिस हुए हैं जिनमें से कई का कार्यकाल दिनों में गिना जा सकता है। जस्टिस जी बी पटनायक (40 दिन), जस्टिस एस राजेंद्र बाबू (30 दिन) और न्यायमूर्ति यू यू ललित (74 दिन)। छोटे कार्यकाल वाले अन्य लोगों में जस्टिस अल्तमस कबीर और पी सदाशिवम (दोनों सीजेआई के रूप में नौ महीने से थोड़ा अधिक), जेएस खेहर (लगभग आठ महीने) और आर एम लोढ़ा (पांच महीने) का कार्यकाल रहा। चीफ जस्टिस के नेतृत्व वाले कॉलेजियम ने उन्हें SC जज के रूप में चुनने में क्या सोचा था, जिनका CJI के रूप में कार्यकाल छोटा होगा और न्यायपालिका में सुधारों की योजना बनाने के लिए अपर्याप्त होगा। साथ ही पिछले दो दशकों में पेंडिंग केसों की संख्या दोगुनी हो गई है।
CJI के कॉलेजियम सिस्टम पर उठ चुके हैं सवाल
दिलचस्प बात यह है कि जस्टिस जोसेफ की अगुवाई वाली 5-जजों की बेंच ने मंगलवार को कहा कार्यपालिका की सनक पर चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति उस बुनियाद का उल्लंघन करती है जिस पर इसे बनाया गया था। आयोग को कार्यकारी की एक शाखा बना दिया गया। क्या मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्तियों के लिए चयन पैनल में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की मौजूदी मेरिट में मदद करेगी और पारदर्शिता लाएगी? यदि ऐसा है, तो SC की संविधान पीठ ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग को रद्द क्यों कर दिया, जिसे संसद द्वारा सर्वसम्मति से बनाए गए कानून द्वारा स्थापित किया गया था। NJAC से पहले भी, CJI के नेतृत्व वाली कॉलेजियम सिस्टम के कामकाज को इसकी अपारदर्शिता और भाई-भतीजावाद के लिए लगातार आलोचना का सामना करना पड़ा था। प्रतिष्ठित महिला सुप्रीम कोर्ट जज रूमा पाल ने कहा था कि कॉलेजियम ‘तुम मेरी पीठ खुजलाओ और मैं तुम्हारी पीठ खुजलाता हूं’ के आधार पर काम करता है।