चंडीगढ़ – कांग्रेस हाईकमान पर मजबूत पकड़ रखने वाले एक दशक तक मुख्यमंत्री रहे भूपेंद्र सिंह हुड्डा, जो कभी राजनीतिक विरोधियों को पटकनी देने में सफल रहे थे, वर्तमान में स्वयं पटकनी की चपेट में आ गए है। स्व. भजनलाल जैसे कांग्रेसी दिग्गज को कांग्रेस से अलविदाई करवाने वाले भूपेंद्र हुड्डा स्वयं अलविदाई की तैयारी करते दिखाई देने लगे है। हरियाणा में कांग्रेस के 15 विधायकों में से 14 हुड्डा के साथ है, मगर फिर भी कांग्रेस विधायक दल की नेता किरण चौधरी बनी हुई है, जिनका अक्सर हुड्डा से छत्तीस का आंकड़ा रहा है।
इसी प्रकार कांग्रेस प्रधान अशोक तंवर भी हुड्डा से छत्तीस का आंकड़ा रखते है, मगर वह पार्टी प्रधान है। इस प्रकार भूपेंद्र हुड्डा के राजनीतिक सितारे गर्दिश में है और उनके समर्थकों का उन पर निरंतर दवाब बढ़ रहा है कि घुट-घुट कर जीने की बजाए अपनी अलग पार्टी हुड्डा कांग्रेस गठित कर ली जाए, जिसमें विनोद शर्मा की जनचेतना व गोपाल कांडा की हलोपा का विलय करवाकर कांग्रेस हाईकमान द्वारा दिखाए गए आईने का जवाब दिया जा सके।
हरियाणा में तंवर और किरण कार्यकर्ताओं का राय जानने के लिए डुगडुगी बजाए हुए है, भले ही इस डुगडुगी की आवाज हुड्डा समर्थकों के बढ़ते विरोध में दबकर रह गई है। प्रदेश में आज भी हुड्डा समर्थकों की संख्या काफी है।
समर्थकों के बढ़ते दवाब के बावजूद भी हुड्डा कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहते, क्योंकि इससे पूर्व कांग्रेस से अलग होकर अपनी अलग पार्टी बनाने वाले स्व. बंसीलाल, स्व. ओ पी जिंदल, स्व. भजनलाल, विनोद शर्मा को हरियाणवी मतदाताओं ने स्वीकार नहीं किया है।
बंसीलाल की हविपा दम तोड़ चुकी है, भजनलाल की हजकां अंतिम सांसे ले रही है और विनोद मेहता की जनचेतना पार्टी का खाता हीं नहीं खुल पाया, जबकि स्व. जिंदल की क्षेत्रीय पार्टी भी जन्म से पूर्व ही गर्भपात की चपेट में चली गई थी। हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा अपनी अलग डफली बजाएंगे या नहीं, इस प्रश्र का उत्तर तो प्रश्र के गर्भ में है, मगर यदि हुड्डा अपने समर्थकों मुताबिक कोई निर्णय नहीं ले पाते, तो उन्हें अपनों से भी दूरी बनानी पड़ सकती है। ब्यूरो