आईएएस अधिकारियों की तुनकमिजाजी और अहंकार से लगातार पीड़ित होते सूबे के पीसीएस अधिकारियों का गुस्सा अपने एसोशियेशन पर भी फूट रहा है। कानपुर में तैनात दो पीसीएस अधिकारियों के साथ हुई घटना ने इस संवर्ग के अधिकारीयों के सब्र का पैमाना छलका दिया है। घर से बेदखल पीडि़त कानपुर के पूर्व सी0डी0ओ0 राजेन्द्र सिंह यादव और गनर वापसी से आहत एवं क्षुब्ध नगर आयुक्त उमेश प्रताप सिंह दोनों ही इस सारे प्रकरण को यह देखकर जोड़ते हैं कि चूंकि इस वक्त उनका एसोसिएशन निष्क्रियता के चरम पर है, जिसके चलते आइएएस अफसर अपनी मनमानी करने से बाज नहीं आ रहे हैं।
दोनों ही इस घटना के लिए अपने पीसीएस एसोसिएशन को ही दोषी ठहरा रहे हैं। दोनों अधिकारीयों का यही कहना है कि उनका एसोसिएशन यदि आज एक्टिव होता तो ऐसी हिमाकत करने की किसी की हिम्मत न पड़ती। राजेन्द्र सिंह का तो यही कहना है कि आईएएस से सभी डरते हैं। उनके खिलाफ बोलने की किसी की हिम्मत नहीं है। राजेन्द्र सिंह कानपुर के जिलाधिकारी डॉ. रोशन जैकब द्वारा मकान खाली कराने के आदेश के संदर्भ में कहते हैं कि जिस तरह भारी फोर्स भेजकर मेरा सामान निकलवाया और जब्त करवाया गया वह कहीं से भी न्याय संगत और तर्क संगत नहीं है।
भारी फोर्स किस लिए भेजी गई थी? क्या मैं चोर, डकैत हूं या फिर कोई आतंकवादी? मेरे साथ इस तरह के सुलूक की आवश्यकता नहीं थी। मैंने तो अपना सामान पैक तक कर लिया था। अपने साथ हुई बर्बर और घिनौनी कार्रवाई के विरुद्घ मैं न्याय पाने और अपने को सही साबित करने का पूरा जोर लगाये बैठा हूं। मैं न्याय के साथ हूं, इसीलिए कानपुर से तबादले के बाद भी लड़ाई लड़ रहा हूं, मुझे किसी का डर नहीं है। मैं सत्य और सही के साथ हूं।
राजेन्द्र सिंह इस समय पंचायती राज विभाग में अपर निदेशक के पद पर कार्यरत है।
राजेन्द्र सिंह के इस मुहिम में कई वरिष्ठ पीसीएस अधिकारी एवं पीसीएस संघ के पूर्व अध्यक्ष भी उनके साथ हैं। सभी का यही कहना है कि यह लड़ाई तो उनके संवर्ग के मान-सम्मान की है। एक वरिष्ठ पीसीएस का तो यहां तक कहना है कि आज यदि संघ सक्रिय होता तो किसी भी अधिकारी के साथ ऐसी घटना नहीं घटती। संघ के पदाधिकारियों को कानपुर की इन दोनों घटनाओं ने एक चुनौती दे दी है। इन घटनाओं से सबक लेना चाहिए। या फिर उन्हें संघ छोड़ देना चाहिए।
उत्तर प्रदेश में बड़े और छोटे अधिकारी एक दुसरे के विरुद्ध इस कदर मोर्चा खोले हुए हैं कि बहस और विवाद का एक लम्बा सिलसिला चल निकला है यद्यपि जहाँ प्रशासनिक अधिकारीयों के बीच सहजता, सद्भाव और संवेदनशीलता का होना जरूरी होता है, वहीं ऐसा न होने से अप्रिय घटनाओं के चलते विकास कार्यों का बाधित होना लाजमी है।
राजेन्द्र सिंह यादव यहां बतौर मुख्य विकास अधिकारी अक्टूबर 2013 में नियुक्त हुए थे। इसी के साथ 19 अगस्त 2014 से उनके पास प्रबंध निदेशक हथकरघा एंव यूपिका का अतिरिक्त प्रभार भी मिला हुआ था। उन्हें मुख्य विकास अधिकारी से रूप में प्रशंसा भी शासन द्वारा मिली थी। लेकिन उनका मानना है कि कुछ ऐसे भी अधिकारी थे जिन्हें उनके विकास कार्यों में गहरी रूचि को लेकर एतराज था। ऐसे लोगों ने गोलबन्द होकर जिलाधिकारी डॉ. रोशन जैकब के कान भरने शुरू कर दिए उनके बहकावे में आकर जिलाधिकारी ने शासन को यह लिख भेजा कि राजेन्द्र सिंह हथकरघा विभाग के दायित्वों का बहाना बनाकर प्राय: जनपद से बाहर रहते हैं, जिसके चलते विकास कार्य बाधित हो रहे हैं, यह शिकायत ऐसे समय की गई जब विकास कार्यों में कानपुर नगर पूरे प्रदेश में आठवें नम्बर पर था। इस परिचय में उनके मुख्य विकास अधिकारी का चार्ज लेकर 21 जनवरी 2015 को आईएएस अधिकारी शम्भू कुमार की नियुक्ति हो गयी। शम्भू कुमार को वहीं बंगला एलाट कर दिया गया जिसमें राजेन्द्र सिंह रहते थे। राजेन्द्र सिंह को यूपिका से प्रबंध निदेशक के पद पर रहने के चलते रावतपुर स्थित आफीसर्स कालोनी में आवास आवंटित कर दिया गया। लेकिन पूर्व सीडीओ ने यह बंगला यह कहकर खाली नहीं किया कि मेरी बड़ी बेटी की 10 मार्च 2015 से वार्षिक परीक्षाएं होनी है।
इसके बाद तेजी से बदलते घटनाक्रम में पहले सिटी मजिस्ट्रेट ने और फिर नाजिर आादि ने उन्हें सूचित किया कि जिलाधिकरी चाहती है कि नये मुख्य विकास अधिकारी का सामान रखने के लिए दो कमरे खाली कर दें लेकिन इस पर भी राजेन्द्र सिंह की असमर्थता ने जिलाधिकारी का पारा गरम कर दिया।
फिर नतीजा यह निकला कि प्रतिदिन कोई न कोई आकर यह भी होमगार्ड एंव चपरासी आकर उन्हें बंगला खाली करने की धमकी देने लगे थे। इन कृत्यों से परेशान होकर उन्होंने हाईकोर्ट की शरण ले ली। हाईकोर्ट ने उन्हें 23 मार्च 2015 तक इस बंगले में रहने की इजाजत दे दी थी। लेकिन राजेन्द्र सिंह बच्चों की परीक्षा में व्यस्तता के चलते उक्त तारीख को अपना सामान नहीं हटा सके थे।
अपनी विवश्ता के लिए उन्होंने सिविय मिस. मोडीफिकेशन एप्लीकेशन नं. 09038 उच्च न्यायालय में दाखिल कर दिया और यह अनुरोध भी किया कि फाइनल शिफ्टिंग के लिए थोड़ा और समय दिया जाए। इसकी जानकारी भी उन्होंने जिलाधिकारी, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक एंव प्रभारी अधिकारी आवास-एसीमए-6 को दे दी। इसके बाद राजेन्द्र सिंह ने काफी भागदौड़ कर लखनऊ में मकान भी खोज लिया तथा परिवार को भी लखनऊ शिफ्ट कर दिया। वह अपना सामान शिफ्ट कर चुके थे और जल्द ही बंगला भी खाली करने वाले थे। इस बीच 08/04/2015 को प्रमुख सचिव हथकरघा एंव वस्त्रोद्योग ने लखनऊ में एक मीटिंग बुला ली और वह इसमें भाग लेने राजधानी चले आए, लेकिन जिलाधिकारी को न जाने क्या सूझा कि उन्होंने डीडीओ सिटी मजिस्ट्रेट एसीएम-6 एंव सीओ कोतवाली सहित भारी फोर्स उनके बंगले पर भेजकर जबरदस्ती सामान बाहर करवा दिया।
जिलाधिकारी के आदेश का पालन करते हुए न केवल अधिकारियों ने उनका सामान बंगल से बाहर ही कराया बल्कि शम्भू सिंह का सामान भी बंगले में शिफ्ट करा दिया। गार्ड और नौकर की बात माने तो उन्हें बंगले में ही एक तरह से बंधक ना दिया गया था। इसकी सूचना नौकर गुड्डू और गार्ड उमेश पाठक ने अपने परिजनों को देते हुए कहा कि वे बंगले मे फंसे हुए हैं, उन्हें यहां से निकालने में मदद करें। इस दौरान इन लोगों से सादे कागज पर हस्ताक्षर भी करा लिया गया। इस पूरे घटनाक्रम के बाद जब राजेन्द्र सिंह कानपुर लौटे तो उनका गुस्सा सातवें आसमान पर था क्योंकि वह अपने को पूरी तरह बेइज्जत महसूस कर रहे थे। वह अपना सामान भी चाहते थे लेकिन कोई सक्षम अधिकारी न होने से वह अपना सामान भी नहीं ले पाये।
राजेन्द्र सिंह का तो खुला आरोप है कि जिलाधिकरी ने मेरे साथ खुन्नस निकाली है क्योंकि भेदभावपूर्ण तरीके से मेरे विरुद्घ कार्रवाई किए जाने को लेकर १४ बिन्दुओं पर मुख्य सचिव सहित तमाम आला अधिकारियों को सूचना भी दे दी है। राजेन्द्र सिंह अपने साथ हुई ज्यादती को लेकर इस कदर डरे और सहमे हुए हैं कि वह अपना सामान भी नहीं ले पा रहे हैं। उनका कहना है कि सामान दिलाने के लिए कोई सक्षम अधिकारी नियुक्त किया जाए। फिलहाल मुझे न तो मेरा सामान ही दिया जा रहा है और न ही इसाके बारे में कुछ बताया ही जा रहा है। 1997 बैच के राजेन्द्र सिंह ने पीसीएस एसोसिएशन के अध्यक्ष को भी इस पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी, लेकिन अध्यक्ष द्वारा उदासीनता ओर उपेक्षापूर्ण रवैये से वह काफी आहत है।
कानपुर से नगर आयुक्त उमेश प्रताप सिंह भी राजेन्द्र सिंह की ही तरह अपमानित हुए हैं। उनसे तो उनका गनर ही छीन लिया गया है। इसके चलते दुखी और निराश उमेश प्रताप सिंह ने भी अपने एसोसिएशन से कुछ करने की गुहार लगायी लेकिन उन्हें भी निराशा का सामना करना पड़ा। उमेश प्रताप सिंह का तो कहना है कि गनर यदि वापस लेना ही था तेा एक महीने बाद यह कार्रवाई होती तो मुझे कोई एतराज न होता, लेकिन विगत १५ मई को आयुक्त, कानपुर मण्डल की अध्यक्षता में कानपुर समग्र विकास योजना की आयोजित बैठक के दौरान जब मैंने ए टू जेड व उनके प्रतिनिधियों के विरुद्घ प्राथमिकी दर्ज न होने के संबंध में जिलाधिकरी एवं वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से चर्चा की तो इसके बाद ही 16 मई को भले ही प्राथमिकी दर्ज हो सकी, लेकिन बदले की नियत से 20 मई को मेरी सुरक्षा में तैनात गनर को पुलिस प्रशासन द्वारा वापस बुला लिया गया। उमेश प्रताप सिंह का कहना है कि फोर्स के लिए मैं वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के दरवाजे पर चक्कर नहीं लगाऊंगा। लेकिन मैंने जब अपने एसोसिएशन के अध्यक्ष से अपने साथ हुई ज्यादती का हवाला दिया तो उन्होंने व्यक्तिगत मतभेद बताकर पल्ला झाड़ लिया।
उमेश प्रताप सिंह तो अपने एसोसिएशन से इस कदर खफा हैं कि उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि एसोसिएशन की मरणासन्नता एवं निष्क्रियता से कैडर का कोइ गांव सम्मान नहीं रह गया है। अब तो हर पीसीएस को अपनी लड़ाई खुद ही लडऩे के लिए तैयार रहना होगा लेकिन एसोसिएशन का नया चुनाव हो ताकि लड़ाकू और जागरूक अधिकारी चुने जाएं। यदि शीघ्र एसोसिएशन की बैठक नही हुई तो कानूनी कार्रवाई करने से भी मैं पीछे नहीं हटूंगा। इस एसोसिएशन के प्रति मेरा पूरा विरेध है क्योंकि यह केवल कागजों तक सिमटा हुआ है मैं तो नोटिस देकर चुनाव की मांग करता हूं और यदि निकट भविष्य में संवैधानिक तरीके से चुनाव नहीं हुए तो मैं सीधा कोर्ट चला जाऊंगा उस एसोसिएशन का क्या फायदा जिसमें कभी कभार होने वाली बैठकों में चार आदमी भी कायदे के न जुटते हों।
साभार: टी.पी. सिंह, संपादक- मीडिया मंच