ऋषियों-मुनियों,साधू-संतों,पीरों-फकीरों तथा अध्यात्मवादियों की धरती समझा जाने वाला हमारा भारतवर्ष अपनी इसी पहचान के चलते सहस्त्राब्दियों से पूरे विश्व की नज़रों में आदर व सम्मान का पात्र रहा है। भारतवर्ष ने अहिंसा परमो धर्म:,विश्व शांति तथा वसुधैव कुटंबकम का पाठ सारी दुनिया को पढ़ाया । सर्वे भवंतु सुखिन: की आवाज़ हमारे ही देश से पूरी दुनिया में बुलंद हुई। केवल सभी धर्मों व जातियों के लोगों को ही नहीं बल्कि पशु व पक्षियों सहित समस्त प्राणियों को आदर व सम्मान देने वाली इसी भारत भूमि की यह विशेषता दुनिया के दूसरे संतों,फकीरों व शासकों के लिए आकर्षण का कारण बनी। भले ही हमारा देश यहां के शासकों,राजनेताओं तथा यहां की भ्रष्ट व्यवस्था के चलते गरीबी का शिकार क्यों न रहा हो परंतु इसके बावजूद दुनिया की नज़रों में भारतवर्ष को सोने की चिडिय़ा ही समझा जाता रहा है। आज भी यह देश अपनी तमाम नाकामियों के बावजूद पूरे विश्व के पर्यट्कों के लिए आकर्षण का केंद्र बना रहता है। विदेशी लोग यहां के प्राकृतिक सौंदर्य तथा एकता में अनेकता जैसी यहां की सबसे बड़ी विशेषता को देखने के लिए पूरी दुनिया से यहां आते रहते हैं। ज़ाहिर है ऐसे में प्रत्येक भारतवासी को इस बात के लिए हमेशा गर्व रहा है और रहेगा कि उसने भारतवर्ष में जन्म लिया और वह भारत जैसे सम्मानित देश में पैदा होने वाला एक सौभाग्शाली भारतीय नागरिक है।
परंतु गत् मई माह में हमारे देश के माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने चीन,मंगोलिया व दक्षिण कोरिया की यात्रा के दौरान दक्षिण कोरिया में अप्रवासी भारतीयों को संबोधित करते हुए अपने जिस प्रकार के घटिया व निम्नस्तरीय विचार व्यक्त किए उसे सुनकर देश व दुनिया में रहने वाला प्रत्येक भारतवासी आश्चर्यचकित रह गया। वैसे तो नरेंद्र मोदी अपने भाषणों में गलत आंकड़े पेश करने,इतिहास का गलत बखान करने,गलत भूगोल प्रस्तुत करने,लंतरानी हांकने,अपने भाषणों में जनता को झूठ बोलकर वरगलाने जैसी अनेक बातों के लिए जाने जाते हैं। आत्ममुग्धता भी जिस हद तक नरेंद्र मोदी में देखने को मिलती है उतनी अब तक किसी नेता में नहीं देखी गई। परंतु दक्षिण कोरिया में अप्रवासी भारतीयों को संबोधित करते हुए उनके मुंह से मात्र अपनी आत्म प्रशंसा के लिए जो वाक्य निकले,देश के प्रधानमंत्री तो क्या किसी साधारण नागरिक से भी ऐसे वाक्य की उम्मीद नहीं की जा सकती थी। उन्होंने दक्षिण कोरिया में कहा कि-‘कभी लोग सोचा करते थे कि उन्होंने पिछली जि़ंदगी में क्या खराब काम किए जिसकी वजह से वे भारत में पैदा हुए। मोदी ने आगे कहा कि पहले लोग भारतीय होने पर शर्म महसूस करते थे लेकिन अब आपको देश का प्रतिनिधितव करते हुए गर्व होता है। मोदी के कहने का तात्पर्य यही था कि गत् एक वर्ष से यानी जब से उन्होंने देश की सत्ता संभाली है तब से भारत के लोग गर्व महसूस कर रहे हैं। जबकि उनके सत्ता में आने से पूर्व उन्हें भारतीय होने पर शर्म महसूस होती थी।
बड़े आश्चर्य की बात है कि अपनी आत्ममुग्धता तथा स्वयं अपनी पीठ थपथपाने हेतु उनके मुंह से इतना गैरजि़म्मेदाराना व तथ्यहीन वाक्य निकला। और वह भी दूसरे देश की धरती पर? उनके इस स्तरहीन ‘उद्गार’ ने एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि देश के लोगों को भारतीय होने पर कब-कब गर्व महसूस हुआ और कब और किन कारणों से उन्हें शर्म का एहसास हुआ? हम भारतवासियों को इस बात पर हमेशा गर्व रहेगा कि हम भगवान राम,कृष्ण,नानक,चिश्ती,फरीद,गुरू गोबिंद सिंह तथा गौतम बुद्ध की धरती पर जन्म लेने वाले नागरिक हैं। आगे चलकर हमें फिर गर्व का एहसास उस समय होता है जब हम अपने देश में सम्राट अशोक,अकबर महान,महाराणा प्रताप,शिवाजी,टीपू सुल्तान तथा पृथ्वीराज चौहान जैसे शासकों की भूमि पर स्वयं को पैदा हुआ देखते हैं। उसके आगे चलकर हमें हमारे देश में सत्य व अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी,महान स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस,भगत सिंह,चंद्रशेखर आज़ाद,राम प्रसाद बिस्मिल,अशफक उल्ला खां तथा राजगुरु जैसे शहीद इस पावन भूमि पर पैदा हुए दिखाई देते हैं। हमे गर्व होता है कि हम एपीजे अब्दुल कलाम तथा मदर टेरेसा जैसी महान विभूतियों की कर्मस्थली में पैदा हुए हैं। ऐसे सैकड़ों नाम हैं जिन्हें भारत का सपूत पाकर प्रत्येक भारतवासी का सिर गर्व से हमेशा ऊंचा होता रहता है। परंतु निश्चित रूप से कुछ समय व कुछ घटनाएं इस देश में ऐसी भी घटीं जिनके कारण भारतवासियों को दुनिया के सामने शर्म ज़रूर महसूस करनी पड़ी। परंतु इन घटनाओं के बावजूद उन्होंने भारतवासी होने पर या भारत में पैदा होने पर शर्म कभी महसूस नहीं की जैसाकि मोदी जी ने दक्षिण कोरिया में अपने ‘मुखारविंद’ से फरमाया।
देश को सबसे पहले शर्मिंदगी व शर्म का सामना उस समय करना पड़ा था जबकि दुनिया में पूजनीय समझे जाने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को इसी देश के एक नागरिक नाथू राम गोडसे ने दिल्ली के एक मंदिर के प्रांगण में शहीद कर दिया था। शर्म उस समय महसूस हुई थी जब 2002 के गुजरात दंगों के बाद देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने यह कहा था कि-‘मैं विदेश यात्रा पर जाने वाला हूं और मेरी समझ में नहीं आता कि मैं दुनिया को क्या मुंह दिखाऊंगा’? भारत के प्रधानमंत्री का इस प्रकार असहाय होकर मीडिया के समक्ष अपने ‘मन की बात’ कहना वास्तव में भारतवासियों के लिए शर्म की बात थी? हम भारतवासियों को उस समय भी बहुत शर्म महसूस हुई थी जबकि लगभग 10 वर्षों तक अमेरिका ने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में काम कर रहे नरेंद्र मोदी को अपने देश में प्रतिबंधित कर रखा था।
शर्म हमें आज भी उस समय महसूस होती है जबकि अपनी धर्मपत्नी को त्यागने वाला व्यक्ति देश के लोगों को ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ की सीख देता है? देश को लोगों को शर्म यह सोचकर भी महसूस होती है कि देश की शरीफ व भोली-भाली जनता को किस प्रकार छलकर तथा झूठ बोल कर सत्ता तक पहुंचने का रास्ता बनाया जाता है? शर्म की बात तो यह है कि देश में सांप्रदायिकता फैलाकर तथा बहुसंख्य मतों की राजनीति कर देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को हिलाने की कोशिश की जाती है? आज देश में मोदी सरकार को बने एक वर्ष से अधिक का समय हो चुका है। देश की जनता को सब्ज़बाग दिखाए गए थे कि एक वर्ष में भारतीय संसद अपराधी पृष्ठभूमि के सांसदों से मुक्त कर दी जाएगी। वादा किया गया था कि सौ दिनों में काला धन देश में वापस ले आया जाएगा। मंहगाई व भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जाएगा। देश के लोगों को यह सोचकर शर्म आती है कि ऐसे सुनहरे सपने दिखाकर नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री का पद भी हासिल कर लिया और विदेश यात्राओं की झड़ी भी लगा दी। परंतु जनता से किए गए वादों को पूरी तरह भुला दिया गया। शर्म की बातें तो यह हैं?
वैसे तो भारत में पैदा होने पर शर्म महसूस करने जैसे बेहूदा बयान पर पूरे देश के लोगों ने अपनी तीखी व कड़ी प्रतिक्रिया दी। परंतु अपनी विवादास्पद टिप्पणीयों के लिए सु$िर्खयों में रहने वाले प्रेस कौंसिल ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने तो मोदी के इस बयान से दु:खी होकर यह तक कह डाला कि हमारे देश के ज़्यादातर नेता गोली मार देने के लायक हैं। कभी इस बात की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी कि राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ की पृष्ठभूमि से आने वाले तथा स्वयं को सांस्कृतिक राष्ट्रवादी बताने वाले और दीनदयाल उपाध्याय व श्यामा प्रसाद मुखर्जी की विरासत को आगे बढ़ाने का दावा करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इतनी हल्की व स्तरहीन बात कहकर अपने देश को विदेश की धरती पर बदनाम करने की कोशिश की जाएगी। नरेंद्र मोदी पहले भी अपने विदेशी दौरे के दौरान अपने मुंह मिया मिट्ठू बनने के चक्कर में यूपीए सरकार के शासनकाल को कोस चुके हैं। एक बार प्रधानमंत्री रहते हुए अटल बिहारी वाजपेयी से उनकी विदेश यात्रा के दौरान एक विदेशी पत्रकार ने कांग्रेस पार्टी के संबंध में एक प्रश्न पूछा था। वाजपेयी ने इसके उत्तर में यह कहा था कि इस सवाल का जवाब मैं भारत पहुंचने पर ही दूंगा।
हमारे देश में शर्म करने के लायक निश्चित रूप से बहुत सारी बातें हैं। जैसे इस देश में फैली सांप्रदायिकता व जातपात ,यहां की रग-रग में समाया भ्रष्टाचार,गरीबी,बेरोज़गारी,महिलाओं पर बढ़ते अत्याचार तथा महिला उत्पीडऩ,अंधविश्वास तथा इन सबसे अधिक नफरत करने के योग्य वह नेता तथा शासक जिनके चलते आज देश इस बदहाली का शिकार हो रहा है। नफरत करने के लायक है राजनीति का वह तौर-तरीका व रंग-ढंग जिसके अंतर्गत प्रत्येक नेता को झूठ बोलने,एक-दूसरे पर लांछन लगाने,सांप्रदायिकता व जातिवाद की सरेआम डुगडुगी पीटने तथा जनता के पैसों पर ऐश करने की पूरी आज़ादी है। यदि किसी भारवासी को आज शर्म आती है तो इन्हीं बातों पर आती है। परंतु अफसोस है कि नरेंद्र मोदी को दक्षिण कोरिया में अपना ऐसा घटिया बयान देते हुए शर्म महसूस नहीं हुई?
:-तनवीर जाफरी
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