नई दिल्ली- विश्व हिंदू परिषद के संरक्षक और अंतर्राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष अशोक सिंघल नहीं रहे। गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में उनका निधन हो गया। उन्हें पिछले गुरुवार को तबीयत बिगड़ने के बाद दोबारा गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
डॉक्टरों के अथक प्रयास के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका। 89 साल के अशोक सिंघल को सांस संबंधी परेशानी थी और 20 अक्टूबर को इलाहाबाद में तबीयत खराब होने के बाद मेदांता लाया गया था। उनसे मिलने के लिए बीजेपी के तमाम नेता अस्पताल पहुंचे। आज सुबह ही उनका हालचाल जानने के लिए बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी भी पहुंचे थे। पिछले गुरुवार को उन्हें अस्पताल से छुट्टी भी मिल गई थी लेकिन अचानक तबीयत बिगड़ने के बाद उन्हें फिर अस्पताल में भर्ती कराया गया था। सिंघल के बाद पूरे विश्व हिंदू परिषद में शोक का माहौल है।
सिंघल को देखने के लिए नेताओं का तांता लगा हुआ है इसी के चलते अस्पताल की सुरक्षा बढ़ा दी गई है। केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती, हरियाणा के राज्यपाल प्रो. कप्तान सिंह सोलंकी, श्रीराम जन्मभूमि न्यास बोर्ड के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास, विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष प्रवीण तोगड़िया, संगठन महामंत्री दिनेश चंद्र, संयुक्त महामंत्री विनायक राव देशपांडेय, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हरियाणा के सह प्रांत संघचालक पवन जिंदल एवं कथावाचक साध्वी ऋतंभरा मेदांता पहुंचे।
जब-जब राम मंदिर आंदोलन की बात होगी तब तब वीएचपी के संरक्षक अशोक सिंघल का नाम भी आएगा। अशोक सिंघल ही वो शख्सियत थे, जिन्होंने देश और विदेश में विश्व हिंदू परिषद को एक नई पहचान दिलाई। विश्व हिंदू परिषद में एक समय ऐसा आया कि संघ से प्रचारक के बाद वीएचपी में बतौर महासचिव आए अशोक सिंघल वीएचपी की पहचान बन गए।
अशोक सिंघल का जन्म 15 सितंबर 1926 को आगरा में हुआ था और उन्होंने हिंदू विश्व विद्यालय से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की, लेकिन अपने ग्रेजुएशन के समय ही संघल आरएसएस के संपर्क में आए और फिर प्रचारक बन गए। प्रचारक रहते हुए उन्होंने ने देश के कई प्रदेशों में संघ के लिए काम किया और प्रांत प्रचार के पद तक पहुंचे, लेकिन उन्हें साल 1981 में विश्व हिंदू परिषद में भेज दिया गया
समाज में दलितों के साथ तिरस्कार की भावना और उसके चलते हो रहे धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए भी अशोक सिंघल ने अहम भूमिका निभाई। अशोक सिंघल की पहल से ही दलितों के लिए अलग से 200 मंदिर बनाए गए और उन्हें हिंदू होने की अहमियत समझायी। देश में हिंदुत्व को फिर से मजबूत और एकजु करने के लिए 1984 में धर्मसंसद के आयोजन में अशोक सिंघल ने ही मुख्य भूमिका निभाई थी। और इसी धर्म संसद में साधु संतों की बैठक के बाद राम जन्म आंदोलन की नींव पड़ी थी।
राम मंदिर आंदोलन को भले ही बीजेपी के बड़े नेताओं से जोड़कर देखा जाता है, लेकिन असल में अशोक सिंघल के प्रयास के चलते ही राम मंदिर आंदोलन का विस्तार पूरे देश में हुआ। 1989 में अयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यास के बाद अशोक सिंघल ने राम मंदिर आंदोलन को हिंदुओं के सम्मान से जोड़ने में अहम भूमिका निभाई और देश भर में आंदोलन के लिए लोगों को एक जुट किया। अशोक सिंघल के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं कि वो उन्हें शास्त्रीय गायन के भी जानकार थे और उन्होंने पंडित ओमकार ठाकुर से हिंदुस्तानी संगीत की भी शिक्षा ली थी।-एजेंसी