कोझिकोड- केरल हाईकोर्ट के जज जस्टिस बी कमाल पाशा ने धर्मगुरुओं की मंशा पर सवाल उठाते हुए पूछा कि अगर एक मुसलमान मर्द चार बीवियां रख सकता है, तो एक मुस्लिम महिला चार पति क्यों नहीं रख सकती?
कोझिकोड में महिलाओं के एक सेमिनार में जस्टिस बी कमाल पाशा ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में महिलाओं से जुड़े कई मुद्दों को लेकर भेदभाव है !
उन्होंने कहा कि ख़ासकर दहेज, तलाक़ और उत्तराधिकार के मामले पर भेदभाव होता है और ये इन मसलों में क़ुरान में कही बातों के ख़िलाफ़ हैं ! जज ने कहा, “ये भेदभाव है और जिन धार्मिक नेताओं ने ये हालात पैदा किए हैं, वे इससे पीछा छुड़ाकर नहीं भाग सकते !”
रविवार को कोझिकोड में महिला वकीलों के एनजीओ की ओर से आयोजित एक सेमिनार में जस्टिस पाशा ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ महिलाओं के खिलाफ कई नियमों से भरा पड़ा है। जस्टिश पाशा ने बहुविवाह के लिए मुस्लिम धार्मिक नेताओं को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि नाजुक मुद्दों पर आत्ममंथन की जरूरत है।
जस्टिस पाशा ने कहा कि मज़हबी नेताओं को आत्ममंथन करना चाहिए कि क्या वे एकतरफ़ा फैसला देने की योग्यता रखते हैं ! लोगों को भी ऐसे लोगों की योग्यता को ध्यान में रखना चाहिए जो इस तरह के फ़ैसले देते हैं ! जस्टिस पाशा ने कहा कि देश के सभी क़ानून अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 के दायरे में आते हैं जो क्रमश: समानता के अधिकार और जीवन के अधिकार की गारंटी देते हैं !
उन्होंने कहा, मुस्लिम पर्सनल लॉ के मुताबिक एक आदमी चार बार शादी कर सकता है। हालांकि कई मुस्लिम देशों में बहुविवाह पर पाबंदी लग चुकी है लेकिन भारत में ये जारी है। उन्होंने कहा कि कुरान में अधिकारों की स्पष्ट व्याख्या के बावजूद महिलाओं के अधिकारों से वंचित रखा जाता है।-एजेंसी