लघु बचत योजनाओं की ब्याज दरों में कटौती को सही ठहराते हुए वित्त मंत्री अरूण जेटली ने कहा है कि अर्थव्यवस्था को दुरूस्त करने के लिए ब्याज में कटौती करना जरूरी है। छोटी बचत योजनाओं का एक पुराना फाॅर्मूला है और यह कई वर्षों से चला आ रहा है। पिछली सरकार भी इसी आधार पर ब्याज दर तय करती थी।
ब्याज दर बाजार तय करता है और सरकार इसमें थोड़ी बहुत सब्सिडी देती है। पहले यह सालाना आधार पर तय होती थी, लेकिन अब तिमाही आधार पर होती है। बीच में ब्याज दरें बढ़ी तो सरकार पर बोझ पड़ा। बैंकों की ऋण दर में कमी आई है और वे जमा राशि पर अधिक ब्याज कैसे दे सकते हैं। अब भी लघु बचत योजनाओं में ब्याज दर दुनिया में सर्वाधिक है।
सरकार का कहना है कि ब्याज दरों में कटौती का सरकार का कदम गैर लोकप्रिय है, लेकिन अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए जरूरी था। 700 करोड़ रूपए का जो घाटा आम आदमी को होगा, वह पैसा सरकार के पास जमा होगा। इन छोटी बचत योजनाओं के दम पर सरकार के लगभग नौ लाख करोड़ रूपए का कारपस अमाउंट रहता है, जो देश की निर्माण कार्य में खर्च किया जाता है। सरकार के इस निर्णय से निष्चित ही यह कारपस घटेगा और बैंकों पर निर्भरता बढ़ेगी।
बैंकों की शिकायत रहती है कि छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दर अधिक होने के कारण उन्हें ब्याज दर ऊंची रखनी पड़ती है। अब बैंकों को सस्ता लोन देना पड़ेगा। उनकी नकदी भी बढ़ेगी। ब्याज दर घटने से परंपरागत निवेषक लघु बचत योजनाओं से परे सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं में निवेष करेंगे। रियल एस्टेट व अन्य सेक्टरों में बूम आएगा और नकदी का प्रवाह बढ़ेगा।
सरकार का कहना है कि ब्याज दर घटेगी तो मुद्रास्फीति घटेगी और वित्तीय घाटा भी कम होगा। सरकार की तरफ से मुद्रास्फीति की कमर तोड़ने और वित्त घाटे पर नियंत्रण लाने के लिए ब्याज खर्च का बोझ घटाने के सिवाय विकल्प नहीं है। इसके लिए उसने कुछ समय छोटी बचत की ब्याज दर को बाजार की दर से जोड़ा है। बाजार की ब्याज दर घटेगी तो बचत की ब्याज दर भी घटेगी।
केंद्र ने आम बजट में भले ही गांवों को करोड़ों रूपए की राहत देने का दावा किया है, लेकिन लघु बचत पर चली कैंची के कारण यह राहत ऊंट के मुंह में जीरा ही कही जा सकती है। हालांकि ब्याज दरों में कटौती की हर तीन माह में समीक्षा होना है, लेकिन रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया और वित्त मंत्री की ओर से बार-बार कम ब्याज आधारित अर्थव्यवस्था के संकेत के चलते कहीं आने वाले दिनों में ब्याज दर पर और कैंची चल जाए तो ताज्जुब नहीं होगा।
दूसरी ओर सरकार की विचार के ठीक विपरीत विषेषज्ञों की राय में ब्याज दर में कटौती वाला सरकार का कदम देष की अर्थव्यवस्था के लिए घातक हो सकता है, क्योंकि इससे लोगों में लंबे समय से चली आ रही निवेष की आदत में कमी आएगी। वैसे भी जिन देशो की बचत दर कम हैं, वहां के बैंक सबसे ज्यादा दिवालिया हुए हैं। लेखक @ नरेन्द्र देवांगन