खंडवा : गुरु पूर्णिमा पर एमपी के खंडवा शहर स्थित दादाजी दरबार में आने वाले भक्तों का सिलसिला शुरू हो गया है। गुरु पूर्णिमा के दिन लाखों की संख्या में भक्त यहां पर दर्शन करने पहुंचते हैं। इसके लिए ये भक्त अपनी जान को खतरे में डालने से भी परहेज नहीं करते । दरअसल, गुरु पूर्णिमा के दिन दादाजी दरबार के दर्शन करने का विशेष महत्व है। मंगलवार को भी हजारों की संख्या में लोग ट्रेन से खंडवा पहुंचे ,रेल के डिब्बे में जगह नहीं होने से लोगों को अपनी जान जोखिम में डाल छत पर बैठ कर सफर करना पड़ा। करीब आधा दर्जन से ज्यादा ट्रेनों में भक्त जान जोखिम में डालकर गेट के किनारे और छत पर बैठे सफर करते नजर आए।
ऐसे में यदि किसी का जरा सा भी पैर फिसले तो उसकी जान पर बन सकती है। हैरानी की बात ये है कि हर साल आने वाले लाखों भक्तों के बारे में रेलवे को पहले से ही जानकारी थी, फिर भी लोगों को इस खतरनाक तरीके से यात्रा करने से नहीं रोका गया। खंडवा के इंदौर रोड पर दादाजी धूनी वाले की समाधि स्थित है। जहां उनके बगल में ही उनके शिष्य हरिहर जी की समाधि बनी हुई है। गुरु पूर्णिमा पर गुरु-शिष्य परम्परा के अंतर्गत यहां दोनों संतों की समाधि पर मत्था टेकने के लिए भक्त लाखों की संख्या में दरबार पहुंचते हैं।
खंडवा से महू और अकोला के बीच चलने वाली पैसेंजर ट्रेनों की हालत आप देख रहे है। यह ट्रेन ज्यादा लंबी दूरी का सफ़र तय नहीं करती लेकिन फिर भी इसमें बैठने वाले लोगों का जज्बा देखिए। जितने अंदर है उतने ही ऊपर। वह भी स्टाइल बताते हुए। दरववाजे से घुसने की ताकत नहीं है तो इमरजेंसी खिड़की से घुसने की कोशिश लगभग हर बोगी में हो रही है। यह सभी लोग गुरुपूर्णिमा पर खंडवा के दादाजी धूनीवाले के मंदिर में दर्शन करने आये थे। आते समय सुबह तो ट्रेन पर दबाव कम था लेकिन लौटते समय ट्रेनों की हालात ख़राब हो गई। जो बैठे थे उन्होंने रेलवे मंत्री को राय भी दी और सफ़र की स्थिति भी बताई।
खंडवा से महू के बीच 6 ट्रेन चलती है ,3 दिन में और 3 रात में। इन्ही में से 4 ट्रेन अकोला तक जाती है। दिन में चलने वाली सभी पैसेंजर ट्रेनों की लगभग यही हालात थी। खंडवा स्टेशन अधीक्षक (मीटर गेज) पी के सिंह ने बताया कि छोटी लाइन के ज्यादा डब्बे नहीं है और हमेशा इन ट्रेनों पर इतना दबाव नहीं रहता। इस पर्व के बारे में ज्यादा भीड़ आने की सूचना पहले ही हेड आफिस को भेज दी गई है लेकिन आगे से कोई व्यस्था नहीं हो सकी। पैसेंजर को आगाह करते है लेकिन वह भी मानते नहीं है।