बकरीद या ईदुल अजहा के पीछे पेगंम्बर हज़रत इब्राहिम अलै. का वह जज़्बा है जो अल्लाह की मर्ज़ी से अपने बेटे की क़ुर्बानी देने तक से नहीं हिचकता। बकरीद के जरिये अल्लाह मुसलमानों को न्याय, क़ुर्बानी. त्याग व हमदर्दी के साथ सच्चाई के सहारे तरक़्क़ी के रास्ते पर चलने का हुक़्म देता है।
आज से करीब 1407 ई.पूर्व इस्लाम के पैगंम्बर हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने अपने बेटे हजरत इस्माइल अलैहिस्सलाम को अल्लाह के नाम पर कुर्बान कर दिया था, तभी करिश्माई तरीके से वह बच जाते हैं और उनकी जगह एक दुम्बा [भेड़] जिबाह [कट जाना] हो जाता है। तभी से ईदुल अजहा यानी बकरा ईद का त्योंहार मनाया जाता है। जब काफी उम्र बीत जाने के बाद भी हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम को कोई औलाद नही हुई, तो बैतूल मुक़्क़दस यानी खाना-ए काबा की और से आपकी दुआ पूरी हुई, आपके घर में एक बेटे ने जन्म लिया जिसका नाम हज़रत ईस्माईल रखा गया |
आपको एक दिन ख़्वाब आया की अपनी सबसे चहेती वस्तु अल्लाह की राह में क़ुर्बान करो, आपने सौ ऊंट क़ुर्बान कर दिए, लेकिन फिर भी ख़्वाबों का सिलसिला थमा नहीं, ख़्वाबों में यही आता कि अपनी सबसे चहेती चीज़ क़ुर्बान करो, आपने अपनी बीवी से बेटे ईस्माइल को तैयार करने को कहा व ख़्वाब के बारे में बताया। अपने लख्ते जिगर अपने बेटे को तैयार कर आप सफा-मरवा पहाड़ी की और ले जा रहे थे तो रास्ते में शैतान ने बेटे को बहकाना शुरू किया, कहा तुम्हारा बाप तुम्हें क़ुर्बान करने के लिए ले जा रहे है |
तब हजरत ईस्माइल अलैहिस्सल्लाम ने कहा की कोई बाप अपने बेटे को यूँ ही क़ुर्बान करने के लिए नहीं ले जाता, मैं बहुत खुशनसीब हूँ जो अल्लाह ने मेरी क़ुर्बानी चाही, आपने अपने वालिद हजरत इब्राहिम से कहा की आप छुरी चलाते वक़्त मेरी आँखों पर पट्टी बाँध दें ताकि आपको रहम न आए, आपने ऐसा ही किया, व आपकी गर्दन पर छुरी चलाई तो उसी वक़्त अर्श- ए -मुअल्लाह हिल गया आपने देखा की एक दुंबा (भेड़) ज़िबह हुआ पड़ा है ! एक तरफ उनका बेटा सिर झुकाकर खामोश खड़ें हैं और दूसरी तरफ जिब्रील(ख़ुदा के दूत) खड़े मुस्कुरा रहें हैं।
हजरत जिब्रील ने कहा – अल्लाह ने फ़रमाया है कि आपने तो अपने मालिक की मु्हब्बत और हुक़्म का इम्तिहान दे दिया और हमने अपनी तरफ से ये क़ुर्बानी क़ुबूल कर ली। खुदा ने तो बस अपने बन्दों का इम्तिहान लिया था, जब अल्लाह ने दोनों की नीयत देख ली तो हजरत ईस्माइल अलै. को बचा लिया हजरत इब्राहिम अलै. द्वारा अपने बेटे की इसी क़ुर्बानी की याद को हमेशा दोहराया जाता है ताकि उनकी क़ुर्बानी जिंदा रहे।
बकरीद या ईदुल अजहा के पीछे पेगंम्बर हज़रत इब्राहिम अलै. का वह जज़्बा है जो अल्लाह की मर्ज़ी से अपने बेटे की क़ुर्बानी देने तक से नहीं हिचकता। बकरीद के जरिये अल्लाह मुसलमानों को न्याय, क़ुर्बानी. त्याग व हमदर्दी के साथ सच्चाई के सहारे तरक़्क़ी के रास्ते पर चलने का हुक़्म देता है। ईदुल अज़हा हज़रत इब्राहिम अलै. की ख़ुदा के साथ मुहब्बत व वफादारी की शान में मनाई जाती है, जिसका नमूना हज़रत इब्राहिम खलीलुल्लाह ने अपनी पूरी ज़िन्दगी में पेश किया।
क़ुर्बानी केवल जानवर के गले पर छुरी फेरने का नाम नहीं है, बल्कि दिल से अल्लाह के प्रति समर्पण की भावना है, अगर कोई व्यक्ति केवल जानवर के गले पर छुरी फेरता है तो वह नाहक एक बेक़सूर जानवर का खून बहाता है, अर्थात अल्लाह को उसके खून व गोश्त की कोई ज़रूरत नहीं, उसको तो सिर्फ “ईमान ” की मज़बूती चाहिए कोई तमास्सुब, कोई दिलचस्पी, कोई निजी फायदा, कोई लालच, कोई डर, कोई अंदर की कमज़ोरी, व बाहर की ताक़त उसको हक़ व सच्चाई के रास्ते से डिगा न सके, इसी जज्बात का नाम है क़ुर्बानी।
अल्लाह के लिए हर संबंध को क़ुर्बान कर देना ही क़ुर्बानी है, किसी भी संबंध से मोह न होना ही क़ुर्बानी का जज्बा है।
ईदुल अज़हा मुबारक हो!
लेखक-तस्लीम शब्बीर ,खंडवा #Eid al-Adha