ग्वालियर – इन्टॉलरेंस का मुद्दा एक बार फिर उठा है। रतन टाटा ने कहा कि देश में फिर से इन्टॉलरेंस बढ़ रही हैं। कहा,” यह हमारे लिए अभिशाप है। मैं सोचता हूं कि हर कोई जानता है कि इन्टॉलरेंस कहांं से आ रही है? यह क्या है? देश के हजारों-लाखों लोग चाहते हैं देश इससे मुक्त रहे।”
रतन टाटा ने कहा “हम चाहते हैं कि आप विजेता बनें। हम यह भी चाहते हैं कि आप विचारक बनें। बहस, विचार और असहमति एक बेहतर समाज की पहचान होती है।” इससे पहले चेन्नई के एक प्रोग्राम में रतन टाटा ने कहा था- “किसी को क्या करना है, उसका फैसला करने की आजादी उसे होनी चाहिए और लोग क्या करें या क्या न करें, यह बताने में सरकार का कोई रोल नहीं होनी चाहिए। इससे दुनिया में हमारे देश की छवि बेहतर होगी।” “अगर भारत को अभी और भविष्य में चमकना है, तो लोगों को फैसला करने की आजादी होनी चाहिए। सरकार निगरानी कर सकती है, लेकिन वह यह नहीं बता सकती कि लोग क्या करें।’’
यहाँ से शुरू हुआ था इन्टॉलरेंस पर विवाद…
– पिछले साल यूपी के दादरी में गोमांस रखने के शक में एक शख्स की हत्या हुई। इससे पहले कन्नड़ लेखक कलबुर्गी का मर्डर हुआ। इसी के बाद इन्टॉलरेंस का मुद्दा भड़का था।
– अवॉर्ड वापसी की शुरुआत हुई। 40 से ज्यादा लेखकों ने साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाए।
– 13 इतिहासकार और कुछ वैज्ञानिकों ने भी राष्ट्रीय पुरस्कार लौटाए। दिबाकर बनर्जी जैसे 10 फिल्मकारों ने नेशनल अवॉर्ड लौटाए।
– आमिर खान, शाहरुख खान, एआर रहमान और अरुंधति रॉय जैसी शख्सियतों ने इस मुद्दे पर बयान दिए, जो विवादों में रहे।
– बिहार असेंबली इलेक्शन में भी इस मुद्दे को नेताओं ने खूब भुनाया था।