इस साल सुप्रीम कोर्ट ने कई ऐसे फैसले लिए जिनकी चर्चा पूरे साल होती रही। इसमें सुप्रीम कोर्ट का सबसे ऐतिहासिक फैसला घरेलू हिंसा कानून में व्यस्क पुरुष शब्द को हटाकर इसका दायरा बढ़ाया था। teznews.com आपको कुछ ऐसे ही फैसलों के बारे में बताने जा रहा है जो पूरे साल चर्चा में रहे।
अब नाबालिगों पर भी चलेगा घरेलू हिंसा का केस
अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में ‘वयस्क पुरुष’ शब्द को हटाकर घरेलू हिंसा कानून का दायरा बढ़ा दिया। अब किसी महिला के साथ हिंसा या उत्पीड़न के मामले में महिलाओं तथा नाबालिगों पर भी मुकद्दमा चलाया जा सकेगा। जस्टिस कुरियन जोसेफ और जस्टिस आर.एफ. नरीमन की बेंच ने घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा के कानून 2005 की धारा 2 (क्यू) से दो शब्दों को हटाने का आदेश दिया, जो उन प्रतिवादियों से संबंधित है जिन पर ससुराल में किसी महिला को प्रताड़ित करने के लिए केस चलाया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट का यह बड़ा फैसला बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ एक अपील पर आया। हाई कोर्ट ने इस आधार पर घरेलू हिंसा के मामले से दो लड़कियों, एक महिला और एक नाबालिग लड़के सहित एक परिवार के चार लोगों को आरोपमुक्त कर दिया था कि वे ‘वयस्क पुरुष’ नहीं हैं और इसलिए उन पर घरेलू हिंसा कानून के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।
रेप पीड़िता को दी गर्भपात की इजाजत
सुप्रीम कोर्ट ने गर्भवती महिला को गर्भधारण के 24 हफ्ते बाद अबॉर्शन कराने की इजाजत दी। आमतौर पर कोई भी महिला अपने 20 हफ्ते के भ्रूण का ही गर्भपात करा सकती है। सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वाली इस महिला ने कहा था कि उसका बच्चा विकृत है।
इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक मेडिकल बोर्ड का गठन किया था। इस मेडिकल बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी थी कि भ्रूण की वजह से मां की जिंदगी खतरे में पड़ सकती है। इसी को आधार मानते हुए कोर्ट ने अबॉर्शन की इजाजत दी है। दरअसल, मेडिकल टेर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 के मुताबिक 20 हफ़्ते से ज़्यादा गर्भवती महिला का गर्भपात नहीं हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में मुंबई की रेप पीड़ित महिला ने इस एक्ट को अंसवैधानिक बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी और गर्भपात कराने की इजाजत मांगी थी। महिला ने अपनी याचिका में कहा था कि वह बेहद ही गरीब परिवार से है उसके मंगेतर ने शादी का झांसा देकर उसके साथ बलात्कार किया और उसे धोखा देकर दूसरी लड़की से शादी कर ली, जिसके बाद उसने मंगेतर के खिलाफ बलात्कार का केस दर्ज कराया। महिला को जब पता चला वह प्रेग्नेंट है तो उसने कई मेडिकल टेस्ट कराए, जिससे पता चला कि अगर वह गर्भपात नहीं कराती तो उसकी जान जा सकती है।
सिनेमा हॉल में बजेगा राष्ट्रगान
राष्ट्रगान के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक आदेश दिया। सिनेमा हॉल और मल्टीप्लेक्स में अब फिल्मों को दिखाने से पहले राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य होगा। इसके अलावा राष्ट्रगान बजाने के दौरान स्क्रीन पर तिरंगा भी दिखाना जरूरी होगा और राष्ट्रगान को सम्मान देने के लिए दर्शकों को अपनी जगह पर खड़ा भी होना पड़ेगा। इसके साथ ही कोर्ट राष्ट्रगान के फायदे के लिए इस्तेमाल ना करने का भी निर्देश दिया है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक और आदेश में कहा कि दिव्यांग को इस फैसले से बाहर रखा गया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि दिव्यांग को सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान बजने पर खड़े न होने की छूट है।
पति को मां-बाप से अलग करने को मजबूर करना तलाक का आधार
तलाक के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि पत्नी अपने ही पति को मां-बाप और परिजनों से अलग करने को मजबूर करें तो वह तलाक ले सकता है। ऐसा अपराध क्रूरता की श्रेणी में आता है। सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए बड़ा आदेश दिया है। पहले कर्नाटक हाईकोर्ट ने निचली कोर्ट का फैसला पलटते हुए कहा था कि पत्नी की ख्वाहिश सही है। वह पति की इनकम फैमिली मेंबर्स पर खर्च करने के बजाय खुद इस्तेमाल करना चाहती है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, ‘पत्नी द्वारा पति के खिलाफ झूठे आरोप, एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर, आत्महत्या करने की धमकी देना भी ‘मानसिक क्रूरता’ है। यह भी तलाक का आधार हो सकता है।’ कोर्ट का यह फैसला नरेंद्र वर्सेज कुमारी मीरा के मामले में आया है। इसमें पति ने कोर्ट से अपनी 24 साल की शादी को रद्द करने की अनुमति मांगी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट का सोचना सही था कि पत्नी का बार-बार सुसाइड की कोशिश करना क्रूरता है।
MBBS के लिए देशभर में होगा एक एग्जाम
सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल महीने में ऐतिहासिक फैसले में साल 2015 से ही देशभर के कॉलेजों में MBBS और BDS पाठ्यक्रमों में दाखिले के लिए एक ही कॉमन टेस्ट NEET को हरी झंडी दे दी, यानी अब देशभर के सरकारी और प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में दाखिले इसी के आधार पर होंगे। इससे अलग-अलग कॉलेजों और राज्यों के टेस्ट पर रोक लग गई है।
हाईवे के किनारे नहीं होगी शराब की बिक्री
राष्ट्रीय राजमार्गों और स्टेट हाईवे से 500 मीटर तक अब शराब की दुकानें नहीं होंगी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि नेशनल हाईवे पर शराब की बिक्री नहीं होगी। कोर्ट ने इस फैसले में साफ कर दिया है कि जिनके पास लाइसेंस हैं वो खत्म होने तक या 31 मार्च 2017 तक जो पहले हो, तक इस तरह की दुकानें चल सकेंगे। यानी एक अप्रैल 2017 से हाईवे पर इस तरह की दुकानें नहीं होंगी। शराब की दुकानों के लाइसेंसों का नवीनीकरण नहीं होगा। नए लाइसेंस जारी नहीं होंगे। सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में यह फैसला लागू होगा। इसके साथ ही राजमार्गों के किनारे लगे शराब के सारे विज्ञापन और साइन बोर्ड हटाए जाएंगे। राज्यों के चीफ सेकेट्री और डीजीपी सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन कराने की निगरानी करेंगे।