जन्म दिनांक- पौष शुक्ल सप्तमी, 26 दिसंबर, 1666
दिव्य ज्योति- 7 अक्टूबर, 1708
भिन्न-भिन्न सबहु कर जाना
एक ज्योत किनहु पहचाना।
गुरु गोविंदसिंहजी का जन्म 26 दिसंबर सन् 1666 में पुण्य माता श्री गुजरी की गोद में पटना साहिब में हुआ था। आप बचपन में ही बड़े साहसी और गुणों से भरपूर थे। आनंदपुर साहिब में ही आपकी शिक्षा का प्रबंध किया गया। उन्हें फारसी, हिन्दी, संस्कृत और ब्रज भाषा पढ़ाई गई। जब गुरु तेगबहादुरजी बलिदान देने दिल्ली गए थे, तब गुरुजी की उम्र केवल 9 वर्ष की थी। गुरु गद्दी संभाल लेने के बाद आपने जनता में जोश भरना शुरू कर दिया।
आपने अपने दरबार में 52 कवि रखकर लोगों में वीर रस की कविताओं का प्रचलन किया। आपने अत्याचारों के विरुद्ध कई युद्ध किए, इसमें सबसे प्रसिद्ध ‘भंगानी का युद्ध’ हुआ था। यह युद्ध भीमचंद नामक पहाड़ी राजा से हुआ था। यह भीमचंद वही था जिसको गुरु हरगोविंदसिंह ने ग्वालियर की कैद से छुड़ाया था। इस युद्ध में पहाड़ी राजाओं की करारी हार हुई। इस युद्ध में पीरबुद्ध, शाह अपने 800 मुरीदों सहित गुरुजी की सहायता के लिए आया था।
सन् 1688 में नदौन का युद्ध हुआ जो जम्मू के नवाब अलफ खाँ के साथ हुआ था। सन् 1689 में पहाड़ी नवाब हुसैन खाँ ने गुरुजी से युद्ध छेड़ दिया, जिसमें गुरुजी की जीत हुई। सन् 1699 को वैशाखी वाले दिन गुरुजी ने केशगढ़ साहिब में पंच पियारों द्वारा तैयार किया हुआ अमृत सबको पिलाकर खालसा पंथ की नींव रखी। खालसा का मतलब है वह सिक्ख जो गुरु से जुड़ा है। वह किसी का गुलाम नहीं है, वह पूर्ण स्वतंत्र है। सन् 1700 से 1703 तक आपने पहाड़ी राजाओं से आनंदपुर साहिब में चार बड़े युद्ध किए व हर युद्ध में विजय प्राप्त की। पहाड़ी राजाओं की प्रार्थना पर गुरुजी को पकड़ने के लिए औरंगजेब ने सहायता भेजी।
मई सन् 1704 की आनंदपुर की आखिरी लड़ाई में मुगल फौज ने आनंदपुर साहिब को 6 महीने तक घेरे रखा। अंत में गुरुजी सिक्खों के बहुत मिन्नातें करने पर अपने कुछ सिक्खों के साथ आनंदपुर साहिब छोड़कर चले गए। सिरसा नदी के किनारे एक भयंकर युद्ध हुआ, इसमें दो छोटे साहिबजादे माता रूजरी बिछुड़ गए। 22 दिसंबर सन् 1704 में ‘चमकौर का युद्ध’ नामक ऐतिहासिक युद्ध हुआ, जिसमें 40 सिक्खों ने 10 लाख फौज का सामना किया। इस युद्ध में बड़े साहिबजादे अजीतसिंह और जुझारसिंहजी शहीद हुए।
guru gobind singh ji