दलित नेता रामनाथ कोविंद को बीजेपी ने राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी घोषित कर दिया। अब उनके बारे में जानकारियां जुटाई जा रहीं हैं। कहा जा रहा है कि वो शुद्ध दलित नेता नहीं हैं बल्कि एक कट्टर सोच वाले नेता भी हैं। रिश्वत मामले में पकड़े गए बंगारू लक्ष्मण को उन्होंने ईमानदार आदमी बताया था। नोटबंदी के समर्थन में आम नेताओं की तरह बयान दे रहे थे। धर्मांतरण के खिलाफ बने कानून का भी पुरजोर विरोध किया था। इसके अलावा वो मुसलमानों एवं ईसाईयों को मिली अल्पसंख्यक श्रेणी के भी पक्षधर नहीं थे। उनके 4 प्रमुख बयान विचारधारा विशेष से जुड़े हुए नजर आ रहे हैं। विपक्ष के विरोध मेें यह मुख्य मुद्दा हो सकते हैं।
नोटबंदी का किया था समर्थन
पीएम मोदी के नोटबंदी के फैसले का रामनाथ कोविंद ने पूरी तरह से समर्थन किया था। नोटबंदी को मोदी सरकार का बड़ा आर्थिक सुधार माना जाता है, एक तरफ जहां रामनाथ कोविंद ने नोटबंदी का समर्थन किया तो राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने सरकार को नोटबंदी के परिणाम के बारे में चेताया था, उन्होंने कहा था कि इस फैसले का देश की अर्थव्यवस्था और गरीबों पर असर पड़ेगा। हालांकि राष्ट्रपति ने शुरुआत में इस फैसले का स्वागत किया था। पिछले साल दिसंबर माह में रामनाथ कोविंद ने पटना में बिहार चैंबर एंड कॉमर्स के कार्यक्रम में बोलते हुए कहा था कि समाज को कालाधन और भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने के लिए नोटबंदी एक सकारात्मक कदम है। नोटबंदी के बाद गरीब और कमजोर लोगों को बड़ी राहत मिलेगी, इसके साथ ही आर्थिक स्तर पर देश को काफी मदद मिलेगी, इस फैसले से पारदर्शिता बढ़ेगी।
नोटबंदी से हुआ नुकसान
लेकिन कोविंद के बयान के इतर नोटबंदी के परिणाम कुछ और रहे, नोटबंदी के फैसले ने देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाया और जनवरी-मार्च के बीच जीडीपी में गिरावट दर्ज की गई और यह 6.1 फीसदी रहा, जोकि पहले आठ फीसदी था। इसके अलावा नोटबंदी का गरीबों पर काफी बुरा असर पड़ा और कई लोगों की नौकरी चली गई। छोटे शहरों में काम करने वाले गरीबों की नौकरी चली गई और उनका धंधा चौपट हो गया। लेबर ब्यूरो के आंकड़े पर नजर डालें तो 1.52 लाख लोगों की नौकरी इस दौरान चली गई जो अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़े थे, जिसमें आईटी, बीपीओ सेक्टर भी शामिल हैं, इन लोगों की 2016 में अक्टूबर से दिसंबर के बीच नौकरी चली गई।
रिश्वतखोर बंगारू लक्ष्मण को ईमानदार बताया था
रामनाथ कोविंद ने पूर्व भाजपा अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण का समर्थन किया था, उन्होंने कहा था कि मैं लक्ष्मण को 20 साल से जानता हूं, वह सीधे, सरल और ईमानदार व्यक्ति हैं। जिसके बाद बंगारू लक्ष्मण पार्टी के अध्यक्ष बने थे लेकिन इसके बाद तहलका ने जो स्टिंग किया था, उसमें वह भ्रष्टाचार के आरोपों में घिर गए थे, इस स्टिंग में वह पैसे लेते देखे गए, जिसके बाद उन्हें पार्टी के अध्यक्ष पद से हटा दिया गया था। लक्ष्मण के खिलाफ बाद में मुकदमा दर्ज किया गया जिसमें वह दोषी पाए गए,जिसके बाद पार्टी ने लक्ष्मण से किनारा कर लिया था। जिस तरह से मोदी सरकार लगातार भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने की बात करती है, 16 साल पहले कोविंद के इस बयान को लेकर एक बार फिर से विपक्षी दल उनपर निशाना साध सकते हैं।
धर्मांतरण के खिलाफ कानून का किया था विरोध
दलितों के लिए अपनी लड़ाई में कोविंद ने अपना समर्थन ना सिर्फ अपनी पार्टी बल्कि बाहर भी लोगों के बीच बढ़ाया, उन्होंने खुद को दलितों के लिए लड़ने वाले के तौर पर स्थापित किया। वर्ष 2003 में जब कोविंद को राज्यसभा सांसद बनाया गया तो उन्होंने कहा था कि दलितों के खिलाफ हो रहे अत्याचार के लिए सख्त कानून बनाने चाहिए, लेकिन वह धर्मांतरण के खिलाफ के खिलाफ कानून के विरोध में थे। उन्होंने उस वक्त कहा था कि यह संविधान की मूल भावना का उल्लंघन होगा, जोकि लोगों को अपने पसंद के धर्म को मानने का अधिकार देता है।
ईसाई और मुसलमान को अल्पसंख्यक श्रेणी का विरोध किया था
कोविंद ने 2010 में सरकारी नौकरी में धार्मिक अल्पसंख्यकों को आरक्षण देने का विरोध किया था, उस वक्त वह भाजपा के प्रवक्ता था। लेकिन रंगनाथ मिश्रा कमीशन की रिपोर्ट ने कहा था कि भाषा के आधार पर पिछड़े और आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को सरकारी नौकरी में 15 फीसदी का आरक्षण देना चाहिए। कोविंद ने इस रिपोर्ट का भी विरोध किया था। उन्होने कहा था कि इस्लाम और ईसाई धर्म को अल्पसंख्यकों में रखने से संविधान का उल्लंघन होगा। उन्होंने कहा था कि भारत के लिए ईसाई और मुसलमान विदेशी हैं।