उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई शिवपाल यादव ने अपनी नई पार्टी समाजवादी सेक्युलर मोर्चा के गठन की घोषणा कर दी है। उन्होंने दावा किया है कि उन्हें अपने बड़े भाई मुलायम सिंह यादव का आशीर्वाद प्राप्त है। उनकी इस घोषणा से किसी को कोई आश्चर्य नही हुआ है, क्योंकि वे समाजवादी पार्टी से पहले ही दूरियां बना चुके है। यद्यपि गत विधानसभा चुनाव में वे समाजवादी पार्टी के टिकट से ही निर्वाचित हुए, लेकिन अब उन्हें पार्टी के राष्ट्रीय अखिलेश यादव का वर्चस्व स्वीकार नही है। अखिलेश ने जब मुख्यमंत्री के रूप में प्रदेश की बागडौर संभाली थी तब उन्होंने वरिष्ठ मंत्री होते हुए भी शिवपाल यादव का कद इतना घटा दिया था कि तभी से वे पार्टी से नाता तोड़ने का मन बना चुके थे, परंतु अपने बड़े भाई मुलायम सिंह यादव से घनिष्टता के कारण वे मन मसोसकर ही पार्टी में बने रहे। अब जब मुलायम सिंह ही कहने लगे है कि पार्टी में अब कोई उनका सम्मान नही करता है तब शिवपाल भी अपनी उपेक्षा बर्दास्त नही कर पा रहे थे। ऐसी स्थिति में उनके पास अपनी अलग पार्टी बनाने के अलावा कोई और चारा नही बचा था।
अखिलेश यादव अपने चाचा की इस घोषणा से किंचित भी चिंतित नही है। उन्हें इसका अंदेशा पहले से ही था। अखिलेश यादव को ये भी भरोसा है कि चाचा शिवपाल यादव की पार्टी कभी इतनी ताकत नही जुटा सकती है कि उससे समाजवादी पार्टी की संभावनाओं पर कोई असर पड़ सके। वैसे शिवपाल यादव ने यह दावा किया है कि उनकी पार्टी उत्तरप्रदेश के आगामी लोकसभा चुनाव में 25 से 30 सीटों पर सफलता अर्जित कर सकती है। शिवपाल ने यह घोषणा भी की है कि उनकी पार्टी उत्तर प्रदेश की सभी 80 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी। हालांकि शिवपाल का यह दावा हास्यास्पद ही प्रतीत होता है कि उनकी पार्टी 25 से 30 लोकसभा सीटें जीतने की क्षमता रखती है।
गौरतलब है की पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान राज्य में समाजवादी पार्टी की सरकार होने के बाद भी पार्टी को 5 सीटों पर ही जीत नसीब हुई थी दरअसल शिवपाल यादव भी इस कड़वी हकीकत से अच्छी तरह वाकिफ है कि पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का आशीर्वाद भले ही उन्हें प्राप्त हो जाए लेकिन वे दिल से तो अपने बेटे अखिलेश साथ ही रहेंगे। जब समाजवादी पार्टी का बटवारा हुआ था एवं अखिलेश यादव उसके अध्यक्ष बन गए थे तब भी मुलायम चुनाव आयोग में साईकिल चुनाव चिन्ह पर दावा करने से पीछे हट गए थे। अन्तः साइकिल चुनाव चिन्ह पर अखिलेश यादव की अध्यक्षता ;वाली समाजवादी पार्टी का दावा ही चुनाव आयोग ने स्वीकार कर लिया था।
शिवपाल यादव की तो अब भी यही कोशिश है कि मुलायम सिंह यादव को अखिलेश से दूर करने के लिए उन्हें समाजवादी सेक्युलर मोर्चा का अध्यक्ष बनाने के लिए मना लिया जाए। उन्होंने मुलायम सिंह की राय जाने बगैर उन्हें अपनी पार्टी की और से मैनपुरी लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाने की घोषणा भी कर दी है। यद्यपि इसकी संभावना नहीं के बराबर है कि मुलायम सिंह यादव समाजवादी पार्टी के विरुद्ध लड़ने को तैयार हो जाएंगे। इधर शिवपाल यादव द्वारा सभी सीटों पर चुनाव लड़ने व 25 से 30 सीटें जीतने दावें पर उनके चचेरे भाई रामगोपाल यादव ने तंज करते हुए कहा कि कभी अमर सिंह ने भी समाजवादी पार्टी से बाहर जाकर ऐसा ही दावा किया था ,परन्तु उनकी पार्टी का जो हस्र हुआ वह सभी जानते है। मालूम हो कि रामगोपाल यादव इस समय अखिलेश के मुख्य राजनीतिक सलाहकार बने हुए है। शिवपाल सहित अमर सिंह एवं मुलायम सिंह यादव को भी यही लगता है कि समाजवादी पार्टी में विभाजन के पीछे रामगोपाल यादव का ही हाथ रहा है।
शिवपाल यादव ने अभी तक अपनी पार्टी की रणनीति के बारे में खुलकर कुछ नहीं कहा है ,लेकिन उन्होंने भाजपा के साथ जाने से इंकार किया है। उन्होंने इच्छा जताई है की उनकी पार्टी बसपा व सपा के संभावित गठबंधन में शामिल होने को तैयार है, परंतु यदि उन्हें इसमें शामिल नहीं किया गया तो उनकी पार्टी सभी लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारने से परहेज नहीं करेगी। आगामी लोकसभा चुनाव के लिए अभी 7 -8 माह का समय है। शिवपाल यादव इस दौरान सभी संभावनाओं पर विचार करते रहेंगे। इतना तो तय है कि शिवपाल की पार्टी को संभावित गठबंधन में शामिल कराने की दिलचस्पी न अखिलेश यादव लेंगे और न ही मायावती इसके लिए तैयार होगी। वैसे शिवपाल यादव की उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी मुलाकात हो चुकी है, लेकिन वे इसे केवल अनौपचारिक भेंट ही मानते है।
अब सवाल यह उठता है कि यदि अखलेश एवं मायावती दोनों ने ही शिवपाल की पार्टी को गठबंधन में शामिल कराने से मना कर दिया तब इस स्थिति में समाजवादी सेक्युलर मोर्चा के अकेले चुनाव लड़ने की स्थिति में किसका फायदा होगा। तो निश्चित रूप से यही कहा जा सकता है कि उनकी पार्टी समाजवादी पार्टी के हो वोट काटेगी, जिसका सीधा फायदा भाजपा को ही होगा। वैसे उनका असली मकसद अखलेश यादव की अध्यक्षता वाली समजवादी पार्टी की संभावनाओं पर ही पानी फेरना ही है। अब देखना है कि शिवपाल अपने इस खेल में कितने सफल हो पाते है। वैसे यदि मुलायम सिंह यादव ने एन वक्त पर उन्हें अपना आशीर्वाद देने से मना कर दिया तो उनका तो पूरा खेल ही बिगड़ जाएगा, क्योंकि मुलायम सिंह ऊपर से कितना भी कहे लेकिन उनकी दिली हमदर्दी तो उनके पुत्र अखिलेश यादव के साथ ही है । यदि ऐसा होता है तो फिर ऐसे में तो शिवपाल यादव तो कही के नही रह पाएंगे।
कृष्णमोहन झा
(लेखक IFWJ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और डिज़ियाना मीडिया समूह के राजनैतिक संपादक है))