नई दिल्ली: महाराष्ट्र की सत्ता में 50:50 की हिस्सेदारी पर अड़ी शिवसेना ने भाजपा के साथ गतिरोध दूर करने के लिए अब आरएसएस से दखल देने की गुजारिश की है। शिवसेना नेता किशोर तिवारी ने मोहन भागवत को खत लिखकर बीजेपी पर आरोप लगाया है कि वह गठबंधन धर्म का पालन नहीं कर रही है, जिसे दूर करने में उन्हें मदद करनी चाहिए। बता दें कि किशोर तिवारी को भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का करीबी माना जाता है। तिवारी की ओर से ये पहल उस वक्त की गई है, जब उनकी पार्टी बीजेपी के साथ सरकार बनाने को लेकर अपना स्टैंड और तेवर और सख्त कर चुकी है।
महाराष्ट्र चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही शिवसेना दावा कर रही है कि आम चुनाव से पहले ही भाजपा ने राज्य सरकार में 50:50 की भागीदारी का वादा किया था। शिवसेना के मुताबिक इसका मतलब राज्य में मुख्यमंत्री का पद दोनों दलों को बारी-बारी से मिलना चाहिए और कैबिनेट में भी दोनों पार्टियों की आधी-आधी हिस्सेदारी होनी चाहिए। लेकिन, बीजेपी ने उसके दावों को खारिज कर दिया है और उसके अड़ियल रवैये के सामने अबतक झुकने को तैयार नहीं दिख रही है। अब संघ प्रमुख मोहन भागवत को भेजे अपने खत में शिवसेना नेता किशोर तिवारी ने लिखा है कि राज्य की जनता ने बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के पक्ष में जनादेश दिया है। लेकिन, भाजपा राज्य में गठबंधन धर्म निभाने में नाकाम हो रही है, जिससे नई सरकार के गठन में देरी हो रही है। इसलिए, आरएएस को इसमें दखल देना चाहिए और इस मुद्दे का निपटारा करना चाहिए। यहां एक बात और महत्वपूर्ण है कि शिवसेना नेता किशोर तिवारी को केंद्रीय मंत्री और भाजपा के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी का करीबी माना जाता है।
दरअसल, 24 अक्टूबर को जबसे महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे आए हैं, शिवसेना ने अपने तेवर लगातार कड़े किए हुए हैं। बीजेपी पर दबाव बनाने के लिए पार्टी लीडरशिप ने राज्यसभा सांसद संजय राउत को खुला छोड़ दिया है। उन्होंने शिवसेना की मांगें हर हाल में मनवाने के लिए बीजेपी के प्रदेश से लेकर केंद्रीय नेतृत्व तक किसी को नहीं छोड़ा है। उन्होंने संघ को लपटने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रखी है। वे बार-बार कह रहे हैं कि इस बार मुख्यमंत्री शिवसेना का ही होगा। यानि वे साफ संकेत दे रहे हैं कि अगर भाजपा ने ठाकरे परिवार की बात नहीं मानी तो शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने के लिए भी तैयार बैठी है। पार्टी के मुखपत्र ‘सामना’ में लेख के जरिए भी पार्टी ये कह चुकी है कि यह 2014 नहीं है और अबकी बार बीजेपी को उसकी शर्तें माननी ही पड़ेगी।
शिवसेना के ठीक उलट बीजेपी अपने स्टैंड से टस से मस होने के लिए तैयार नहीं है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पार्टी चीफ अमित शाह से भी इस मसले पर मुलाकात कर चुके हैं, लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ भी संकेत नहीं दिया है, जिससे लगे कि पार्टी शिवसेना की मांगों के आगे झुकने के लिए किसी भी सूरत में तैयार है। इस बैठक के बाद फडणवीस ने सिर्फ इतना कहा है कि राज्य में जल्द सरकार के गठन की आवश्यकता है और जल्द ही सरकार बन जाएगी। लेकिन, शिवसेना से अंदरखाने चल रही किसी भी बातचीत की उन्होंने जरा भी भनक नहीं होने दी। दरअसल, दिक्कत ये है कि महाराष्ट्र विधानसभा का मौजूदा कार्यकाल 9 नवबंर को समाप्त हो रहा है। इसलिए, संवैधानिक तौर पर उससे पहले नए विधानसभा का गठन और वहां सरकार बनना जरूरी है, नहीं तो राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ सकता है। इस बार के चुनाव में 288 सीटों वाली विधानसभा में भाजपा-शिवसेना गठबंधन को 161 सीटें मिली हैं, जो कि बहुमत के आंकड़े से काफी ज्यादा है। लेकिन, दोनों के बीच विवाद के चलते अभी तक सरकार नहीं बन पाई है।