चंद्रग्रहण (Penumbral Lunar Eclipse) होगा। 21 जून को सूर्यग्रहण भी लग रहा है। उसके बाद 5 जुलाई को फिर से उपच्छाया चंद्रग्रहण लगेगा। एक महीने के भीतर तीन ग्रहण आखिर बार 58 साल पहले जुलाई-अगस्त में पड़े थे। ये योग अब 2020 में जून-जुलाई में बन रहा है। इस साल कुल छह ग्रहण लगने हैं जिनमें से दो सूर्यग्रहण, बाकी चंद्रग्रहण हैं।
नई दिल्ली: इस साल का दूसरा चंद्रग्रहण 5 जून की रात 11.16 बजे से लग रहा है। इसकी अवधि करीब सवा तीन घंटे होगी। इस ग्रहण को एशिया, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका, साउथ अमेरिका, अटलांटिक में देखा जा सकेगा। यह उपच्छाया चंद्रग्रहण (Penumbral Lunar Eclipse) होगा। 21 जून को सूर्यग्रहण भी लग रहा है। उसके बाद 5 जुलाई को फिर से उपच्छाया चंद्रग्रहण लगेगा। एक महीने के भीतर तीन ग्रहण आखिर बार 58 साल पहले जुलाई-अगस्त में पड़े थे। ये योग अब 2020 में जून-जुलाई में बन रहा है। इस साल कुल छह ग्रहण लगने हैं जिनमें से दो सूर्यग्रहण, बाकी चंद्रग्रहण हैं।
क्या होता है उपच्छाया चंद्रग्रहण?
ज्योतिषियों के मुताबिक, उपच्छाया चंद्रग्रहण, छाया की छाया वाला माना जाता है जिसमें चंद्रमा के आकार पर कोई प्रभाव नही पड़ता। इसमें चंद्रमा की चांदनी में धुंधलापन आ जाता है। यानी चांदनी थोड़ी फीकी जरूर होगी मगर उसमें फर्क कर पाना मुश्किल होगा। रंग थोड़ा मटमैला हो सकता है। साइंस के मुताबिक, ऐसा ग्रहण तब लगता है जब सूरज, धरती और चांद एक सीध में नहीं आ पाते। सूरज की रोशन का कुछ हिस्सा चांद की सतह तक पहुंचने से धरती रोक लेती है। तब चांद की बाहरी की बाहरी सतह के पूरे हिस्से को धरती कवर कर लेती है जिसे उपच्छाया (penumbra) कहते हैं। ऐसे चांद को पूर्णिमा के चांद से अलग बता पाना मुश्किल होता है।
उपच्छाया चंद्रग्रहण की दो शर्तें
एक उपच्छाया चंद्रग्रहण तभी लगता है जब ये दो घटनाएं एक साथ हों।
1. चांद पूर्णिमा की तरफ बढ़ रहा होना चाहिए यानी शुक्ल पक्ष चल रहा हो।
2. सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सीध में हों मगर उतने नहीं जितने आंशिक चंद्रग्रहण के दौरान होते हैं।
तीन तरह के होते हैं चंद्रग्रहण
उपच्छाया के अलावा दो प्रकार के ग्रहण और होते हैं। पूर्ण चंद्रग्रहण जिसमें धरती पूरी तरह से चांद को ढंक देती है। आंशिक चंद्रग्रहण में चांद की सतह का कुछ हिस्सा दिखता रहता है। चांद की अपनी कोई रोशनी नहीं है, वह सूरज की रोशनी को ही रात में परावर्तित करता है। इसलिए जब सूरज और चांद के बीच में धरती आती है तो उसकी रोशन चांद तक नहीं पहुंचती और हमें उतना चांद नजर नहीं आता।