नई दिल्ली – आम आदमी पार्टी की राजस्थान यूनिट के संस्थापक सदस्यों में से एक डॉ. राकेश पारेख ने 20 मार्च को लिखे अपने ब्लॉग में यह खुलासा किया कि मैंने कई बार राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में यह प्रस्ताव रखा कि संगठन में प्रमुख पदों पर बैठे लोगों को चुनाव नहीं लड़ना चाहिए, लेकिन देखिये राजनीति हमें कहां से कहां ले आई। चुनाव लड़ने की, मंत्री बनने की इच्छा रखना सही है, लेकिन सवाल पूछना गलत? डॉ. पारेख ने कड़े शब्दों में केजरीवाल के लिए लिखा है कि जानता हूं कि आपको आलोचना पसंद नहीं, लेकिन मुझे भी चापलूसी पसंद नहीं है।
उन्होंने अन्ना आंदोलन के दिनों को याद करते हुए उन्होंने कहा कि किस तरह उनकी पत्नी ने राजनीतिक विकल्प की घोषणा होने के बाद खुद को ठगा हुआ महसूस करके उन्हें आंदोलन छोड़ने और तलाक तक देने की धमकी दे डाली थी, लेकिन इसके बावजूद वह अलग नहीं हुए। उन्होंने लिखा कि अब तक तो मैं उसे समझाता रहा, लेकिन आज क्या जवाब दूं?
डॉ. पारेख ने मनीष सिसौदिया से पार्टी के कौशांबी दफ्तर में हुई इस मीटिंग का भी जिक्र किया, जिसमें मनीष ने भावुक तर्क देकर राजस्थान यूनिट के सचिव पद की जिम्मेदारी दी थी और उन्होंने उसी मुलाकात के दौरान कह दिया था कि मैं आजादी की लड़ाई का सिपाही हूं, गुलामी अपने सेनापति की भी नहीं करूंगा। डॉ. पारेख का कहना है कि अगर जी हुजूरी करनी होती, तो इतना संघर्ष क्यों करते? क्यों हमें जी हुजूरी करने वाले लोगों की आवश्यकता रह गई है, सवाल पूछने वालों की नहीं?
उन्होंने कहा कि एक वक्त था जब हम अपनी टोपी पर ‘मुझे चाहिए स्वराज’ का नारा लिखते थे और आज स्वराज की बात करने वालों को पार्टी विरोधी कहा जाता है। उन्होंने बताया कि 330 संस्थापक सदस्यों ने मिलकर पार्टी बनाई थी। देशभर के 300 से ज्यादा जिलों में हमारी इकाईयां हैं। आज पार्टी बने 3 साल हो गए, लेकिन स्थापना के बाद से अब तक पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की केवल एक बैठक हुई है और वह भी केवल एक दिन की। उन्होंने केजरीवाल को याद दिलाया है कि पिछली बैठक में उन्होंने वादा किया था कि अगली बैठक 3 दिनों की होगी। साथ ही लिखा है कि 29 मार्च की बैठक में बस औपचारिकताएं पूरी होंगी, 31 मार्च को इन सभी की सदस्यता समाप्त हो जाएगी और फिर उम्मीद है कि सवाल पूछने वाले उस परिषद के सदस्य नहीं होंगे।
डॉ. पारेख ने कड़े शब्दों में केजरीवाल के लिए लिखा है कि जानता हूं कि आपको आलोचना पसंद नहीं, लेकिन मुझे भी चापलूसी पसंद नहीं है। आपकी तारीफ करने वाले तो करोड़ों हैं। सौ दो सौ सवाल पूछने वाले भी तो हों? उन्होंने मांग की है कि 28 मार्च को होने वाली पार्टी की नैशनल काउंसिल की बैठक कम से कम 3 दिनों की रखी जाए, ताकि सभी सदस्य अपनी समस्याएं पार्टी नेतृत्व के सामने रख सकें। उन्होंने लिखा है कि आखिर हम चर्चा से इतने घबराने क्यों लगे हैं, जबकि आपके नेतृत्व पर किसी को कोई संदेह नहीं है।
उन्होंने पूछा है कि आखिर सवाल पूछने वालों को पार्टी विरोधी और केजरीवाल विरोधी क्यों कहा और माना जा रहा है। पारेख ने लिखा है कि व्यक्ति केंद्रित बदलाव दीर्घकालिक नहीं हो सकता। अंत में उन्होंने लिखा है कि वह अपने विचार पार्टी के अंदरूनी मंच यानी नैशनल काउंसिल में ही रखते, लेकिन दुर्भाग्य से उस मंच पर बोलने का मौका न तो पिछले 3 साल में कभी मिला और न ही आगे मिलने के आसार दिख रहे हैं।