इस शहर में क्या कभी कुछ बचेगा ? पहले यहाँ की विरासत उजाड़ी गई। कभी तालाब नीलाम हुए तो किसी ने नर्मदा का पानी ही बेच दिया गया… कभी सड़क के नाम पर सैकड़ों पेड़ों की निर्मम हत्याएं हुई और अब पार्किंग के नाम पर बगीचे ही उजाड़े जा रहे है। शुरुआत आई एस आई एस आतंकियों की तर्ज़ पर घंटाघर के कुछ पेड़ों की गर्दन उड़ाकर की गई फिर जवाहर चौक (बड़ाबम) के बगीचे में कत्लेआम हुआ और अब दाधीच पार्क कराह रहा है। कोई उसे मलहम-पट्टी करने वाला नहीं ,कोई उनका दर्द सुनने वाला तक नहीं। किशोर कुमार की आत्मा भी दुखी हो गई जब उनके बाल सखा बाबू रंगरेज को आश्रय देने वाले बरगद को भी नहीं बक्शा गया। किशोर दा रुंधे गले से गा रहे होंगे “मांझी जो नाव डुबोये उसे कौन बचाए… “
प्रशासन को हरे-भरे पेड़ों के कत्लेआम की इजाज़त आखिर किसने दी ? शहर के पर्यावरण का चीरहरण सरेआम हो रहा है और यहाँ के जनप्रतिनिधि धृतराष्ट्र की तरह मुंह झुकाए बैठे है। क्या इस शहर में एक भी कृष्ण नहीं बचा जो इसे रोक पाए ? लानत है…आखिर किन हाथो में हमने सोंप दिया खण्डवा और अफीम चाटकर सो गए। एक शहर पहले ही डूबा चुके है बांध के नाम पर अब हम डूबेंगे विकास के नाम पर ? दुखी हूँ मैं बहुत , क्या आप भी ? अब किसी कृष्ण की प्रतीक्षा मत करो हे अर्जुनों गांडीव उठाओ , रोको वृक्षों का संहार…
यह लेख वरिष्ट पत्रकार जय नागड़ा की फेसबुक वॉल से लिया गया है