नई दिल्ली – 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के बाद अब 4जी स्पेक्ट्रम भी सवालों के घेरे में आ गया है। पैन इंडिया 4जी सेवा शुरू करने जा रही रिलायंस जियो पर अनियमितता का आरोप लगाते हुए गैर सरकारी संगठन सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। इसमें कंपनी को ब्रॉडबैंड स्पेक्ट्रम पर वाइ स सर्विस की अनुमति रद्द करने और मामले की जांच सीबीआई को सौंपने की मांग की गई है। याचिका पर कोर्ट ने केंद्र सरकार, दूरसंचार नियामक ट्राई व रिलायंस जियो इन्फ ोकॉम को नोटिस जारी कर दिया है।
सीएजी (कैग) की ड्रॉफ्ट ऑडिट नोट के मुताबिक वर्ष 2010 में हुई नीलामी में इन्फोटेल ब्रॉडबैंड सर्विस लिमिटेड ने पैन इंडिया 4जी लाइसेंस हासिल किया था। लाइसेंस हासिल करने के कुछ ही समय बाद मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस जियो ने इस कंपनी का अधिग्रहण कर लिया और पैन इंडिया 4जी लाइसेंस हासिल करने वाली देश की एकमात्र कंपनी बन गई।
मार्च 2013 में रिलायंस जियो ने मात्र 1658 करोड़ रूपए का शुल्क अदाकर समान डाटा बैंड पर वाइस सेवा शुरू करने की भी अनुमति हासिल कर ली। सीपीआईएल के अधिवक्ता प्रशांत भूषण के मुताबिक रिलायंस जियो को वर्ष 2001 में तय शुल्क (1658 करोड़ रूपए) के बदले में वाइस सेवा में बैकडोर एंट्री दे दी गई, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने 2 फरवरी 2012 के फैसले में इस मूल्य को ही खारिज कर दिया था। याचिका में अपील की गई कि रिलायंस जियो को ब्रॉडबैंड के स्पेक्ट्रम पर वाइस सेवा शुरू करने के लिए मिली सरकार की अनुमति रद्द की जाए, साथ ही कथित रूप से 40 हजार करोड़ के इस घोटाले की जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में सीबीआई से करवाई जाए।
सुप्रीम कोर्ट पहुंचा रिलायंस जियो का मामला
-सीपीआईएल ने कैग की ड्रॉफ्ट ऑडिट नोट के आधार पर दायर की याचिका
-1658 करोड़ रू. के बदले में वाइस सेवा की अनुमति देने पर उठाया सवाल
-रिलायंस जियो पर लगाया 22842 करोड़ के अनुचित लाभ कमाने का आरोप
ब्रॉडबैंड के स्पेक्ट्रम पर वाइस सेवा शुरू करने की अनुमति देने से रिलायंस जियो को 22,842 करोड़ रूपए का अनुचित लाभ पहुंचा और सरकारी खजाने को नुकसान हुआ।
-प्रशांत भूषण, अधिवक्ता, सीपीआईएल
यह देश को नेक्स्ट जेनरेशन की दूरसंचार सेवा देने के रिलायंस के प्रयासों को विवादित करने की कोशिश का हिस्सा लग रहा है।
-प्रवक्ता, रिलायंस जियो
3जी व 4जी लाइसेंस की नीलामी में ऎसा नियम नहीं था, जो 4जी हासिल करने वाली कंपनी को वाइस सेवा प्रदान करने से रोके। 1658 करोड़ में वाइस सेवा अनुमति नियमसंगत है।
-दूरसंचार मंत्रालय