इस्लामाबाद: पाकिस्तान में सैन्य प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के सेवा विस्तार से जुड़ी अधिसूचना पर सुप्रीम कोर्ट की रोक के बाद पीएम इमरान खान ने मंगलवार को कैबिनेट की आपात बैठक बुलाई। मंगलवार को दूसरी बार बुलाई गई मीटिंग में बाजवा के सेवा विस्तार को लेकर कैबिनेट की मंजूरी ली जाएगी। उधर, खबर है कि कैबिनेट की पहली बैठक में इमरान ने कानून मंत्री को जमकर लताड़ लगाई। उल्लेखनीय है कि बाजवा 29 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं।
उधर, बाजवा पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कानून मंत्री को इमरान की नाराजगी झेलनी पड़ी है। मंगलवार को कैबिनेट की पहली बैठक में इमरान अपने कानून मंत्री पर जमकर बरसे। जियो न्यूज के मुताबिक, इमरान इस बात से नाराज थे कि आखिर इस मामले में कानून मंत्रालय कर क्या रहा था, उसने पहले से सभी औपचारिकताएं पूरी क्यों नहीं कीं। रिपोर्ट में कहा गया है कि कैबिनेट की बैठक का जो अजेंडा था, उस पर बात होने के बजाए बाजवा के सेवा विस्तार को सर्वोच्च अदालत द्वारा रोके जाने का मुद्दा छा गया।
सूत्रों ने कहा कि बाजवा के सेवा विस्तार की अधिसूचना को रोके जाने पर प्रधानमंत्री खान बेहद गुस्से में दिखे और वह कानून मंत्री फरोग नसीम पर बरस पड़े। सूत्रों ने कहा कि इमरान ने कहा कि जब सेवा विस्तार का मामला तय हो चुका था तो फिर तमाम औपचारिकताएं पूरी क्यों नहीं की गईं, कानून मंत्रालय ने कोताही क्यों बरती और तमाम कानूनी पहलुओं पर काम क्यों नहीं किया गया। सूत्रों ने बताया कि इमरान के बरसने पर कैबिनेट की बैठक में सन्नाटा छा गया। नतीजा यह रहा कि बैठक के मूल अजेंडे को कुछ देर तक विचार के लिए नहीं उठाया गया।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान अधिसूचना पर रोक लगाते हुए चीफ जस्टिस खोसा ने इमरान सरकार की जमकर खिंचाई की। चीफ जस्टिस ने खोसा ने कहा, ‘पीएम को आर्मी चीफ के सेवा विस्तार की मंजूरी देने का अधिकार नहीं है। आर्मी चीफ के सेवा विस्तार की मंजूरी राष्ट्रपति देते हैं। अगर राष्ट्रपति ने 19 अगस्त की समरी को मंजूरी दे दी थी, तब पीएम ने फिर 21 अगस्त को समरी को मंजूरी क्यों दी?’
अटॉर्नी जनरल ने कोर्ट को बताया, ‘पीएम ने कैबिनेट की मंजूरी के बाद समरी पर हस्तक्षर किया था।’ इस पर कोर्ट ने पूछा, ‘ क्या पीएम और कैबिनेट की मंजूरी के बाद राष्ट्रपति ने फिर मंजूरी दी थी। शुरुआती मंजूरी राष्ट्रपति की तरफ से आती है। कैबिनेट मीटिंग से पहले राष्ट्रपति की मंजूरी कानून के मुताबिक नहीं है।’ जब अटॉर्नी ने कहा कि हम राष्ट्रपति की मंजूरी लेने की कोशिश करेंगे तो कोर्ट ने कहा, ‘कैबिनेट के सिर्फ 11 सदस्यों ने मंजूरी दी थी, हम यह नहीं कह सकते कि इसको बहुमत की मंजूरी थी।’