नई दिल्ली : नोटबंदी को लेकर मोदी सरकार बार-बार इसके फायदे गिनाती रहती है तो विपक्षी दल इसे आर्थिक आपदा बताकर सरकार को घेरते रहे हैं। वहीं, नोटबंदी के दो साल बाद भी इसको लेकर जारी बहस के बीच कृषि मंत्रालय ने स्वीकार किया है कि नकदी की कमी ने खेती को बहुत प्रभावित किया। कैश की कमी के कारण ग्रामीण इलाकों में किसान, खाद-बीज नहीं खरीद सके और किसानों को बहुत नुकसान झेलना पड़ा।
द हिंदू की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि मंत्रालय ने संसद की स्थायी समिति को भेजी रिपोर्ट में यह बात स्वीकार की है कि नोटबंदी के कारण किसानों को नुकसान पहुंचा। मंत्रालय ने ये भी स्वीकार किया है कि नोटबंदी के कारण ही 1 लाख 68 हजार क्विंटल गेंहूं के बीज नहीं बिक पाए। बिगड़ती स्थिति देखकर ही केंद्र सरकार ने बीज खरीदने के लिए पुराने नोटों के इस्तेमाल को मंजूरी दे दी थी लेकिन इसका कोई बड़ा लाभ किसानों को नहीं मिल पाया।
नोटबंदी को लेकर ये खुलासा पीएम मोदी की झाबुआ में हुई रैली के एक दिन बाद हुआ है जिसमें पीएम ने कहा था कि काले धन की बीमारी को खत्म करने के लिए उन्होंने नोटबंदी की कड़वी दवा दी थी। उन्होंने कहा था कि भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए इसकी जड़ पर चोट की। वहीं, श्रम मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी में कहा गया है कि नोटबंदी के बाद की तिमाही में रोजगार के आंकड़ों में तेजी आई थी।
मंगलवार को संसद की वित्त मामलों की स्थायी समिति के प्रमुख कांग्रेस सांसद वीरप्पा मोइली को श्रम, रोजगार और एमएसएमई मंत्रालय ने नोटबंदी के असर पर ब्रीफ किया था। समिति को सौंपी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में करीब 26 करोड़ किसान कैश इकोनॉमी पर निर्भर हैं। 8 नवंबर को नोटबंदी के बाद कैश की कमी पड़ गई जिस कारण किसानों के पास रबी की फसल के लिए बीज और खाद खरीदने का पैसा नहीं था।