नई दिल्ली – अजमेर ब्लास्ट केस में नेशनल इन्वेस्टिगेटिंग एजेंसी (एनआईए) को एक और बड़ा झटका लगा है। मामले में अभियोजन पक्ष के 13 महत्वपूर्ण गवाह अपने बयान से मुकर गए हैं। अक्टूबर 2007 में अजमेर शरीफ में हुए बम धमाके में तीन लोगों की मौत हो गई थी और एक दर्जन से अधिक लोग घायल हो गए थे।
राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने अप्रैल 2011 से अक्टूबर 2013 के बीच कुल 12 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। ये सभी लोग मौजूदा या पूर्व में आरएसएस के सदस्य थे या उनका किसी अन्य हिन्दूवादी संगठन से संबंध था। वर्ष 2007 से ही अजमेर दरगाह में धमाके के बाद से इसी ग्रुप को ‘भगवा आतंक’ के रूप में भी पहचान मिली, जिसने मुस्लिम बाहुल इलाकों मालेगांव और हैदराबाद की मक्का मस्जिद में धमाकों को अंजाम दिया।
अजमेर धमाके में सहायक लोक अभियोजक अश्विनी शर्मा ने बताया कि अभियोजन पक्ष की ओर से पूरा मामला उनके गवाहों के बयानों पर ही टिका था। सभी ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने बयान देते हुए कहा था कि वे बिना किसी दबाव में ये बयान दे रहे हैं।
मगर, नवंबर 2014 से अचानक गवाहों ने अपने बयान बदलने शुरू कर दिए और एनआईए पर जबरदस्ती बयान दिलाने का आरोप लगाया। इस तरह आखिरी गवाह मई 2015 में अपने बयान से मुकर गया।
अश्विनी ने बताया कि जब गवाहों से पूछा गया कि उन्होंने इसकी शिकायत पहले क्यों नहीं की थी कि वह एटीएस के दबाव में बयान दे रहे थे। इस पर गवाहों ने कहा कि उन्हें कभी भी इस तरह का मौका ही नहीं मिला। खास बात ये भी है कि बयान से मुकरने वाला एक प्रमुख गवाह रणधीर सिंह अब झारखंड की भाजपा सरकार में मंत्री हैं।
रणधीर सिंह ने कहा था कि उन्होंने दो आरएसएस के कार्यकर्ताओं को बंदूक चलाते या बंदूक की ट्रेनिंग लेते देखा था। मगर, सरकारी वकील के मुताबिक इस साल मई में वो अपने बयान से मुकर गए।