लखनऊ- समाजवादी पार्टी में कौमी एकता दल के विलय और उसके नेता मुख्तार अंसारी के आने से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव नाराज हो गए. इसकी गाज मीडिएटर बलराम सिंह यादव पर गिरी और यूपी सरकार से उनका पत्ता कट गया. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बिना वजह बताए कैबिनेट मंत्री के पद से उनकी छुट्टी कर दी।
जौनपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में अखिलेश ने इस बारे में कहा कि सपा कार्यकर्ता अगर ठीक काम करें तो दूसरी पार्टी की कोई जरूरत नहीं. जब यूपी में सपा के कई धड़े कौमी एकता दल का पार्टी में विलय होने पर जश्न मना रहे थे, उस समय सीएम अखिलेश यादव की इस सियासी उठापटक से नाखुशी ने पार्टी में हलचल मचा दी।
विलय के कुछ ही घंटों में अखिलेश ने सख्त कदम उठाते हुए बलराम यादव की कैबिनेट से छुट्टी कर दी. माना जा रहा है कि बलराम की छुट्टी इसीलिए हुई कि इस विलय में अहम भूमिका उनकी ही थी. बाद में अखिलेश ने कहा कि अगर समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता मेहनत करें तो चुनाव जीतने के लिए किसी दूसरी पार्टी की जरूरत नहीं है।
इससे पहले सपा में मुख्तार अंसारी की कौमी एकता दल के विलय की खबर ने यूपी की सियासत में बड़ी हलचल मचा दी. जगह-जगह सपा और कौमी एकता दल के कार्यकर्ता जश्न मनाते हुए दिखने लगे. कौमी एकता दल के नेताओं का कहना है कि सांप्रदायिक ताकतों को रोकने के लिए उन्होंने एसपी में विलय का फैसला किया है।
मुख्यमंत्री ने बलराम यादव को माध्यमिक शिक्षा मंत्री के पद से बर्खास्त कर दिया है. वह अखिलेश सरकार के 12वें ऐसे मंत्री हैं, जिन्हें बर्खास्त किया गया है. बर्खास्तगी के पीछे कारण कई गिनाए जा रहे हैं, मगर प्रमुख वजह कौमी एकता दल का सपा में विलय माना जा रहा है।
मंगलवार को लखनऊ में जिस समय कौमी एकता दल के समाजवादी पार्टी में विलय की घोषणा की जा रही थी, तकरीबन उसी समय मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जौनपुर में कहा कि ‘समाजवादी पार्टी को किसी दल की जरूरत नहीं, वह अपने बूते जीतकर सत्ता में लौटेगी।
जौनपुर से वापस लौटते ही मुख्यमंत्री ने कौमी एकता दल का सपा में विलय कराने में अहम किरदार निभाने वालों में शुमार मंत्री बलराम यादव को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया. ऐसे में माना जा रहा है कि इस कार्रवाई के पीछे यह भी एक कारण हो सकता है।
गौरतलब है कि पार्टी के अंदर पहले से ही इस बात की चर्चा चल रही थी कि मंत्रिमंडल के विस्तार में बलराम यादव को हटाकर उनके बेटे संग्राम यादव को राज्यमंत्री बनाया जाएगा. मगर कार्रवाई के तरीके से उसे विलय से जोड़कर देखा जा रहा है।
अखिलेश यादव पहले भी अपने कई मंत्रियों को बर्खास्त कर चुके हैं. अप्रैल 2013 में तत्कालीन खादी एवं ग्रामोद्योग मंत्री (स्वर्गीय) राजाराम पांडेय की बर्खास्तगी से की थी. उन पर महिला आइएएस पर अशोभनीय टिप्पणी का इल्जाम लगा था. मार्च 2014 में मनोज पारस और आनंद सिंह मंत्री पद से बर्खास्त किए गए।
लोकसभा चुनाव के बाद राज्यमंत्री पवन पांडेय को बर्खास्त किया गया था. बाद में उनकी मंत्रिमंडल में वापसी हो गई थी. इसके बाद अक्टूबर 2015 में मुख्यमंत्री ने एक साथ आठ मंत्रियों को बर्खास्त किया, जिसमें राजा महेंद्र अरिदमन सिंह, अंबिका चौधरी, शिव कुमार बेरिया, नारद राय, शिवाकांत ओझा, आलोक कुमार शाक्य, योगेश प्रताप और भगवत शरण गंगवार शामिल थे।