नई दिल्ली- नौकरी करने वाले हर व्यक्ति को एक चीज का बेसब्री से इंतजार रहता है, वो है उसकी सैलरी। हर व्यक्ति अपनी सैलरी को लेकर जितना उत्साहित रहता है उतना उत्साह अपनी सैलरी स्लिप को लेकर नहीं दिखाता है। जबकि ये जरूरी है कि सैलरी स्लिप में आपके पूरे वेतन की एक-एक पैसे की जानकारी दी जाती है। इसीलिए आपके लिए ये जनना जरूरी है कि सैलरी स्लिप में वेतन से किस बात के लिए कितनी राशि की कटौती की गई है।
क्या है सैलरी स्लिप
जब आप अपनी सेलरी स्लिप देखते हैं तो उसमें मुख्यत: दो या फिर तीन कॉलम बने रहते हैं। पहले कॉलम में आपके हाथ में आने वाली सैलरी यानि इनहैंड सैलरी होती है और दूरे कॉलम में वेतन से कटौती करने के बाद बची राशि का विवरण रहता है। कुछ सैलरी स्लिप में तीसरा कॉलम, कितनी राशि की कटौती किस लिए की गई यह दर्शाने के लिए किया गया रहता है। अब अगर आपके पास आपकी सेलरी स्लिप है तो उसे निकाल लें और हम जो स्टेप बता रहे हैं उसके हिसाब से अपनी सैलरी स्लिप देखें और समझने की कोशिश करें कि आखिर इनहैंड सेलरी और डिडक्शन पार्ट क्या हैं।
बेसिक सेलरी
किसी भी सेलरी स्लिप में बेसिक सैलरी का जिक्र सबसे पहले किया जाता है। बेसिक सैलरी कुल वेतन का 30 से 45 फीसदी तक होती है। बेसिक सैलरी पर ही आपको टैक्स देना होता है। यह 100 प्रतिशत टैक्सेबल होती है। आपकी बेसिक सैलरी जितनी ज्यादा होगी आपका टैक्स उतना ही कटेगा।
हाउस रेंट अलाउंस (HRA)
सैलरी स्लिप में HRA का भी जिक्र रहता है। HRA बेसिक सैलरी का 50 फीसदी तक हो सकता है। यह शहर-शहर पर निर्भर करता है कि आपका HRA कितना होगा। अगर आप दिल्ली, मुंबई, बैंगलोर या फिर हैदराबाद जैसे शहर में रह रहे हैं तो आपका HRA 50 फीसदी तक होगा और अगर आप जयपुर, भोपाल, लखनऊ, जैसे शहर में रह रहे हैं तो यह HRA 40 फीसदी तक रहेगा। आप किराए पर रहते हुए वर्ष में जितना किराया देते हैं, उसमें से बेसिक सैलरी का 10 फीसदी हिस्सा घटाने के बाद जो पैसा बचता है, वह भी हाउस रेंट अलाउंस हो सकता है। और कंपनी इन दोनों में वह हिस्सा जमा करती है जो कम होता है।
कन्विंस अलाउंस या ट्रैवेल अलाउंस (वाहन भत्ता/यात्रा भत्ता)
कन्विंस अलाउंस कंपनी आपको तब देती है जब आप कंपनी के काम से कहीं यात्रा करते हैं। इसमें मिलने वाला पैसे इनहैंड सैलरी में जुड़कर मिलता है। आपको बता दें कि अगर आपको 1600 रुपए तक कन्विंस अलाउंस मिलता है तो इस पर आपको टैक्स नहीं देना पड़ेगा।
मेडिकल अलाउंस
यह अलाउंस आपको मेडिकल कवर के रूप में दिया जाता है। इस सुविधा का इस्तेमाल कर्मचारी जरूरत पड़ने पर कर सकते हैं। जैसे 21000 रुपए तक की राशि पर ESIC के लिए कुछ पैसा कटता है इसे कर्मचारी की स्वास्थय जरूरतों के लिए काटा जाता है। पहले यह कटौती 15000 रुपए तक थी जिसे अब सरकार ने बढ़ाकर 21,000 रुपए कर दिया है। इस सुविधा का लाभ लेने के लिए आपको मेडिकल प्रमाणपत्र प्रस्तुत करना पड़ता है इसके बाद आपको इस सुविधा का लाभ मिलता है।
स्पेशल अलाउंस
यह एक तरह से रिवॉर्ड है, जो कर्मचारियों प्रोत्साहित करने के लिए दिया जाता है। हर कंपनी की परफॉर्मेंस पॉलिसी अलग-अलग होती है। यह पूरी तरह टैक्सेबल होता है। अगर आपकी कंपनी यह अलाउंस नहीं देती है तो आप इसके बारे में पूछ सकते हैं।
प्रोविडेंट फंड (PF)
कितना पीएफ कटता है भइया? ये सवाल हर नौकरीपेशा व्यक्ति से कभी ना कभी पूछ ही लिया जाता है। कई लोग यह तरीका आपकी एक्चुअल सैलरी जानने के लिए घुमा कर सवाल पूछते हैं। खैर.. सैलरी स्लिप में सबसे महत्वपूर्ण कॉलम होता है पीएफ का, पीएफ आपकी सैलरी का 12 फीसदी होता है। वेतन से पीएफ की कटौती आपके पीएफ अकाउंट में जमा हो जाती है जो बाद में आपको नौकरी छोड़ने या फिर जरूरत पड़ने पर ब्याज समेत वापस मिल जाती है। पीएफ में जितनी राशि आपकी सैलरी से कटती है उतनी ही राशि कंपनी अपनी तरफ से आपके पीएफ अकाउंट में जमा करती है।
प्रॉफिट टैक्स
यह टैक्स बहुत मामूली होता है साथ ही यह टैक्स देश के कुछ ही राज्यों में यह टैक्स कटता है। सिर्फ कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात, असम, छत्तीसगढ़, केरल, मेघालय, ओडिशा, त्रिपुरा, झारखंड, बिहार और मध्य प्रदेश में प्रॉफिट टैक्स लगता है।
आयकर (इनकम टैक्स)
इसका जिक्र आपकी मासिक सैलरी स्लिप में नहीं होता, लेकिन यह आयकर के रूप में लिया जाता है। यदि आप टैक्स भरते हैं, तो मई की सैलरी स्लिप में आप इसके ब्योरा देख सकते हैं। यह पैसा भारत सरकार के टैक्स स्लेब के अनुसार कटता है। हालांकि, यदि आप इससे बचना चाहते हैं तो 80 सी नियम के निवेश करके छूट पा सकते हैं।