अमेठी- अखिलेश सरकार स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने के नाम पर अरबों का बजट खर्च कर रही है। नए-नए उपकरण खरीदे जा रहे हैं रोज विज्ञापनों के जरिए प्रदेश में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने के दावे किए जा रहे हैं। लेकिन जनपद अमेठी में हकीकत बिलकुल अलग है जनपद में डाक्टरों-फार्मासिस्टटों की भारी कमी,भ्रष्टाचार, लूट के खेल ने जनपद की स्वासथ्यसेवाओं को वेंटिलेटर पर ठेल दिया है। सेवा की बजाय चिकित्सा प्रणाली के धंधा बन जाने के चलते चारो तरफ लूट मची हुई है ।
भगवान से उधारी माँग चलायी जा रही स्वास्थ्य सरकारी सेवा-
अमेठी जनपद के मुसाफिरखाना विकास खंड में स्थित कस्थुनी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र एक मंदिर परिसर में चलाया जा रहा है करीब दो दशक पहले प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में कस्थुनी स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के निर्माण की रूपरेखा तय की गई दस वर्ष तक कस्थुनी कस्बे में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र एक किराए के भवन में चलाया गया पर, भवन स्वामी को उचित किराया ही नहीं मिल सका नतीजतन किराए के भवन से भी महरूम हो गया प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र आठ साल से ये स्वास्थ्य केंद्र कस्थुनी से दो किमी दूर नाथूपुर के हनुमान मंदिर परिसर में चलाया जा रहा है ।
स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही के चलते महिला नसबंदी के बाद भी गभर्वती –
जनपद के स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही के चलते की महिला नसबंदी के बाद भी फिर से गभर्वती हो गई अब फंसने की नौबत आई तो अस्पताल प्रशासन ने डिलीवरी के बाद इस मामले की शिकायत उच्च अधिकारियों से नहीं करने की हिदायत भी दे डाली अधिक बच्चों के भार से उसने नसबंदी करायी थी, अब बच्चा पैदा होने से उनकी आर्थिक स्थिति खराब हो रही है और वह नवजात बच्चे का भरण पोषण करने में भी सक्षम नहीं उक्त महिला ने मुख्यमंत्री, प्रबंधक स्वास्थ्य और चिकित्सा और जिला अधिकारी अमेठी से न्याय की गुहार लगाई है और महिला का आरोप है कि वर्तमान मुख्यचिकित्साधिकारी अमेठी ने ही नशबंदी की थी।
लिखी जा रही महंगी और बाहर की दवाएं-
लोगो का मानना है कि जहाँ एक तरफ देश की औसत आयु बढ़ती जा रही है तो दूसरी तरफ जनपद में महंगी होती दवाइयां, महंगी होती जांचों ने गरीबों के जीवन की औसत आयु घटा दी है जनपद के अधिकांश सरकारी अस्पताल में ना तो मरीज के साथ आने वाले तीमारदारों की सुविधा का ख्याल रखा जाता है और ना ही इस तरह की योजना बनाई जाती है जिला एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केद्रों के डाक्टरों को मरीजों को चिकित्सा देने से पहले रेफर करने की जल्दी रहती है।
इसके चलते भी जनपद की स्वास्थ्य सुविधाएं बदहाल हैं। आर्थिक रूप से सम्पन्न लोग तो प्राइवेट अस्पतालों की तरफ भागते हैं, लेकिन गरीब मरीज मजबूरी में सरकारी अस्पतालों में ही अपनी जान देने की तैयारी करता है।
अमीरों के लिए इन सरकारी अस्पतालों के भले कोई मायने ना हों,लेकिन गरीब आज भी डाक्टर को धरती का भगवान और सरकारी अस्पतालों को अपना मंदिर समझ कर किसी भी परेशानी में भागा दौड़ा चला आता है इस उम्मीद में कि उसके दुखों का अंत इस मंदिर में भगवान कराएंगे पर, भगवान अब शैतान बनते जा रहे हैं और मंदिर मौत के आलय। काश! विज्ञापनों से बताने की बजाय सरकार जमीन पर कुछ कर दिखाती और मुख्यमंत्री एकाध बार गरीबों के मंदिर का औचक निरीक्षण कर आते बिना किसी अधिकारी को बताए, फिर किसी प्रचार या विज्ञापन की जरूरत नहीं पड़ती।
रिपोर्ट- @राम मिश्रा