अमेठी: एक के बाद एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक मसलों पर लगातार असफल होती जा रही। अमेठी पुलिस की कार्यशैली पर ही अब संदेह होने लगा है कि क्या वह वास्तव में ज़मीन पर काम करते समय अपनी उस ट्रेनिंग को याद भी रखती है। जिसे उसने सीखा होता है। क्योंकि अधिकतर मामलों में जब उसकी स्पष्ट और कड़ी कार्यवाही से मामला सुलझ सकता है। वहाँ पर उसके ढुलमुल रवैये के कारण ही मामला रोष और तनाव से भर जाता है और जब समझाने की ज़रुरत होती है तो वह डंडे फटकारती नज़र आती है?
आख़िर ऐसे वे कौन से कारण हैं जिनके बारे में अमेठी पुलिस केवल सतही स्तर पर ही सोच पाती है और उसके बाद की परिस्थितियों से निपटने में भी वह जिस नौसिखिये पन का प्रदर्शन करती है। वह भी अमेठी के सामजिक और धार्मिक माहौल को बिगाड़ने में बहुत बड़ा सहयोग करता है और सामान्य मामले भी पूरी तरह से अनियंत्रित होकर पूरे प्रदेश के लिए एक बड़ी समस्या बन जाते हैं। जिसका सीधा असर सामाजिक ताने बाने पर भी पड़ता है। जिससे लगता है कि यूपी में पूर्णतयः रामराज्य की स्थापना होने में एक रोड़ा आज भी है वह है पुलिस की ‘लचर कार्यशैली’ ।
यूपी पुलिस की कार्यशैली को देखते हुए समय समय पर इस देश की अदालतो ने भी लताड़ लगायी है। पुलिस को याद होना चाहिये कि कभी इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सख्त टिप्पणी में कहा था कि -‘‘लोगों को अपराधियों से अधिक पुलिस से लडऩा पड़ रहा है। नेता, अपराधी व पुलिस गठजोड़ आम लोगों को परेशान कर रहा है। पुलिस दुधारी हथियार जैसी खतरनाक हो गई है।
अमेठी में मकर संक्रांति के दिन एक बड़ी वारदात सामने आयी वो थी एक हिंदी दैनिक के पत्रकार के पुत्र की निर्मम हत्या इस मामले लभगभ पाँच दिन बीतने को है। लेकिन पुलिस के लम्बे हाथ आज भी अपराधियों के गिरेबां तक नही पहुँच पाए और न ही हाईटेक तमगा सम्पन्न यूपी पुलिस इस मामले को लेकर तकनीकी पेंच को सुलझा पाने में कामयाब रही है।
अमेठी पुलिस की यह नाकामी आमजन मानस सहित जिले के कलमकारों को तकलीफ और मानसिक उलझने पैदा कर रही है। परिणामस्वरूप जिले के पत्रकारों ने अमेठी पुलिस के व्हाट्सएप समूह और पुलिस की खबरों से किनारा कर रोष प्रकट किया। जो अमेठी पुलिस को स्वयं के आंकलन साथ बहुत सोचने की तरफ इशारा कर रही है। क्यो चौथे स्तम्भ के रोष को किसी भी प्रकार से जायज नही ठहराया जा सकता ।
रिपोर्ट@राम मिश्रा