अमेठी- सरकारी पैसे के बर्बादी की तस्वीर देखनी हो तो आप अमेठी जनपद के मुसाफिरखाना आइए। यहां विकास कार्यों की तस्वीर तो चमक रही है, मगर उसके पीछे की हकीकत उतनी ही धुंधली है। क्रिटिकल गैप्स योज़ना के तहत कस्तूरबा गाँधी आवासीय बालिका विद्यालय मुसाफिरखाना में उप्र आवास परिषद द्वारा लिंक मार्ग निर्माण में लोगो ने गुणवत्ताविहीन निर्माण सामग्री,भारीकमीशनखोरी,धांधली और भ्रष्टाचार के आरोप लगाये है ।
क्या है पूरा मामला-
सड़क निर्माण की कार्यदायीं संस्था उप्र ग्रामीण आवास परिषद द्वारा क्रिटिकल गैप्स योजना के तहत हाल में ही बनाये गए मुसाफिरखाना नगर पंचायत अन्तर्गत कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय के इंटरलॉकिंग लिंक मार्ग जो कि लगभग सवा सौ मीटर की ही लंबाई में है। महज सवा सौ मीटर लम्बाई के सम्पर्क मार्ग की लागत 9 लाख 49 हजार 7 सौ रुपये दिखाकर शिलापट्ट तो लगा दिया गया लेकिन सिला पट्ट में सड़क की लम्बाई न दिखा कर एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया जो आज भी लोगो के गले नही उतर रहा है।
स्थानीय लोगो ने बताया कि कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय को मुसाफिरखाना से राजीव गांधी स्टेडियम की तरफ जाने वाली सड़क से जोड़ने के लिए इन्टर लॉकिंग लिंक मार्ग निर्माण किया गया इस लिंक मार्ग की लंबाई गेट से सड़क तक महज पचास मीटर तथा केजीेबीवी परिसर के भीतर भी लगभग इतनी लम्बाई ही होगी ।
सड़क निर्माण में पसरा भ्रष्टाचार-
सड़क निर्माण को शायद सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार वाले क्षेत्र के तौर पर देखा जाता है। यही वजह है कि सड़क निर्माण में गुणवत्ता को लेकर हमेशा संशय बना रहता है यह आम है कि भारी राशि खर्च करके कोई सड़क तैयार की जाती है और बारिश या वाहनों के दबाव से कुछ ही समय बाद उसके टूटने की खबर आ जाती है छिपी बात नहीं है कि सड़क निर्माण की निविदा निकलने से लेकर सामग्री की खरीद, निर्माण और रख-रखाव तक भारी पैमाने पर भ्रष्टाचार पसरा हुआ है ।
स्थानीय लोगो ने जिलाधिकारी से की जाँच की माँग-
लोगो ने बताया कि शिला पट्ट पर अंकित आधी अधूरी चीजो से साफ प्रतीत होता है कि इस लिंक मार्ग के निर्माण में सरकारी धन के दुरूपयोग की सम्भावनाओ से पूरी तरह इंकार नही किया जा सकता जिसको लेकर हम लोग आपके माध्यम से जनपद के तेज तर्रार जिलाधिकारी डॉ योगेश कुमार से इस लिंक मार्ग को लेकर सभी प्रकार के मानकों की जाँच की मांग कर रहे है ।
मामला चाहे जो भी हो लेकिन ये तो तय है कि किसी खास दूरी में सड़क निर्माण के लिए सब कुछ नाप-तौल कर बजट बनाया जाता है, मानक तय किए जाते हैं और राशि जारी की जाती है लेकिन संबंधित महकमे के अधिकारियों से लेकर निचले स्तर के ठेकेदार तक भ्रष्ट तरीके से इसी राशि में से हिस्सा बंटाने के फेर में इस बात का खयाल रखना जरूरी नहीं समझते कि इसका सड़क की गुणवत्ता पर क्या असर पड़ेगा और शेष बचे हुए पैसे में काम पूरा करने की कोशिश का नतीजा यह होता है कि जिस सड़क को बनाने में जितनी और जिस स्तर की सामग्री का उपयोग होना चाहिए उसमें कभी मामूली तो कभी ज्यादा कटौती कर दी जाती है।
रिपोर्ट- @राम मिश्रा