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Wednesday, December 18, 2024

अब होगी अमित शाह के रणनीतिक कौशल की परीक्षा

हाल में सम्पन्न हुई भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में यह तय किया गया है कि 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में भी पार्टी की बागडौर अमित शाह के पास ही रहने दी जाए। पार्टी का यह फैसला पहले से ही अपेक्षित था। शाह को पार्टी का अध्यक्ष तब चुना गया था ,जब राजनाथ सिंह को केंद्र सरकार में ग्रह मंत्री बनाया गया था। उस वक्त राजनाथ सिंह के स्थान पर शाह को शेष कार्यकाल के लिए अध्यक्ष बनाया गया था। उसके बाद फरवरी 2017 में उन्हें पुनः तीन वर्ष के पूर्णकाल के लिए अध्यक्ष पद पर निर्वाचित किया गया । यू तो अमित शाह को जनवरी 2019 में पुनः अध्यक्ष पद पर निर्वाचित किया जा सकता था ,परंतु पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने उनके वर्तमान कार्यकाल में वृद्धि करने का फैसला शायद इसलिए लिया है कि पार्टी कार्यकर्ताओं एवं नेताओं को संगठनात्मक चुनाव की प्रक्रिया में व्यस्त नही होना पड़े।

जनवरी 2019 में ही अध्यक्ष के चुनाव कराए जाते तो इस साल होने वाले चार राज्यों के विधानसभा एवं अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारी पर प्रतिकूल असर पड़ सकता था। इसीलिए पार्टी ने यह फैसल खुब सोच समझकर लिया है। इस तरह अब चार राज्यों के विधानसभा एवं लोकसभा के चुनाव में शानदार जीत दिलाने की जिम्मेदारी अब अमित शाह के कंधों पर आ गई है। पार्टी का यह फैसला अमित शाह की संगठनात्मक क्षमता एवं रणनीतिक कौशल को ही देखकर लिया जा रहा है। गौरतलब है कि अमित शाह के रणनीतिक कौशल की बदौलत भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तरप्रदेश की 80 में से 71 सीटें जीतकर ऐतिहासिक विजय प्राप्त की थी। उत्तरप्रदेश के प्रभारी के रूप में मिली इस जीत ने ही उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुचाया औऱ उसके बाद तो उन्होंने पीछे मुड़कर नही देखा। शाह पार्टी के अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबसे विश्वस्त सिपसलाहकर बन चुके है। पार्टी में उनका कद इतना बढ़ा हो गया है कि उनकी मर्जी के बिना पत्ता भी नही हिलता ।

अमित शाह के अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी ने कई उपलब्धियां हासिल की है। उनके अध्यक्षीय कार्यकाल में पार्टी ने विश्व की सबसे बड़ी पार्टी होने का गौरव प्राप्त किया है। अपने रणनीतिक कौशल और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपार लोकप्रियता के बल पर उन्होंने पार्टी को ऐसे राज्यों में भी सत्ता दिलाई है जहाँ भाजपा कभी नही जीती थी। आज देश के 20 से अधिक राज्यों में सत्ता की बागडौर भाजपा के हाथों में है या वह उनमे भागीदार है। अगर दिल्ली पंजाब व बिहार को छोड़कर अन्य राज्यों की बात की जाए तो अमित शाह का प्रदर्शन इतना उत्कृष्ट रहा है कि भाजपा विरोधी दलों को अपनी जमीन खिसकने का खतरा महसूस होने लगा। हालांकि जम्मूकश्मीर में पीडीपी के साथ मिलकर सरकार बनाने पर पार्टी को घोर आलोचना का भी शिकार होना पड़ा। इतना ही नही गोवा एवं मेघालय में भी जोड़तोड़ के बल पर भाजपा ने जो सरकार बनाई है उसकी आलोचना का शिकार भी उन्हें ही बनना पड़ा।

आगामी लोकसभा चुनाव तक पार्टी ने जो भरोसा उनपर दिखाया है, उस भरोसे को कायम रखने की जिम्मेदारी अब उन्ही के कंधों पर है। पार्टी के इस फैसले को सही साबित करने की चुनौती आसान भी नही है। चार वर्ष पहले जब अमित शाह के हाथों में पार्टी की बागडोर आई थी तब औऱ अब के राजनीतिक हालातों में काफी अंतर आ गया है। पार्टी को इन चार सालों में उत्तरप्रदेश सहित अन्य राज्यों के लोकसभा उपचुनावों में हार का सामना करना पड़ा है। कर्नाटक में सत्ता हाथ मे आते आते फिसल गई। महाराष्ट्र में शिवसेना भाजपा का सिरदर्द बढ़ाने में कोई कसर नही छोड़ रही है। बिहार में भाजपा ने नीतीश कुमार के साथ मिलकर पुनः सत्ता में भागीदारी हासिल कर ली है ,लेकिन यह विश्वासपूर्वक नही कहा जा सकता है कि नीतीश कुमार भाजपा के सीटों के बटवारे के फार्मूले को सहर्ष स्वीकार कर लेंगे। इतना ही नही भाजपा तो इस साल होने वाले राजस्थान, मप्र व छत्तीसगढ़ के चुनावों में अपनी पहले जैसी शानदार जीत के प्रति भी आश्वस्त नही दिख रही है।

अमित शाह यद्यपि दावा कर रहे है कि पार्टी 2019 में 2014 से बड़ी जीत दर्ज करेगी औऱ अगले पचास साल तक सत्ता की बागडोर उसी के हाथों में रहेगी। अमित शाह का यह ख्वाब तभी पूरा हो सकता है जब वे विपक्षी पार्टीयों की एकता में सेंध लगा सके। पेट्रोल डीजल के दाम जिस तरह बढ़ रहे है ,उससे विपक्ष को एक बड़ा मौका मिल गया है। जनता का आक्रोश भी इससे बढ़ रहा है। सरकार इस मामले में पूरी तरह बचाव की मुद्रा में है। सरकार मूल्य वृद्धि को लेकर जो तर्क दे रही है वह जनता के गले नही उतर रही है। राफेल सौदे को लेकर कांग्रेस पहले से ही हमलावर है वही पार्टी के ही दो वरिष्ठ नेता यशवन्त सिंह एवं अरुण शौरी भी इस मामले में कांग्रेस के साथ खड़े दिखाई दे रहे है। यह भाजपा के लिए किसी चिंता से कम नही। इधर एससी एसटी एक्ट के मामले में सवर्णों का गुस्सा इसी तरह बढ़ता रहा तो सरकार के लिए राह मुश्किल हो जाएगी। कुल मिलाकर अमित शाह के लिए चुनोतियाँ पहले से कही अधिक कठिन है। उनके रणनीतिक कौशल को जिस अग्नि परीक्षा से गुजरना है ,उसकी सफलता से ही तय होगा कि भाजपा अगले कितने सालों तक विपक्ष पर हावी रहेगी।

:-कृष्णमोहन झा

 

(लेखक IFWJ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और डिज़ियाना मीडिया समूह के राजनैतिक संपादक है)

 

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