एक स्वतंत्र लेखक की कलम से-
लोकतंत्र की किरणें फ़ैल रही थीं
नये भारत का उदय हो रहा था
नवाबों की नवाबी दम तोड़ रही थी
ब्याज़ और सूद के जाल मे नये हल्कट नवाब जन्म ले रहे थे !
जी हां सूदखोर ब्याज़खोर जो कि सामाजिक ढांचे मे दीमक का काम करते हैं। इनके द्वारा संपत्तियो को हड़पने के लिये बड़े मंहगे कानूनी जानकार इनके सलाहकार होते रहे हैं। किसान मजदुर नौकरी पेशा, दिहाड़ी कामगार, मील मज़दूर जैसे कमज़ोर तबके के या बहुत ऊँचे तबके के लेकिन हालात से मजबुर किन्ही राज परिवार की बेटियों की शादी या परिवार के सदस्यो की मौत इनके धंधे का आकर्षण होता हैं।
जिन अवसरो पर इनके लोग मजबूर गरीब के घर स्वयं जाकर आर्थिक मदद के देने के बहाने सादे स्टाम्प कागज़ पर अंगुठा व गवाह का अंगुठा लगवा कर खिसक लेते हैं। अब ये दीमक रुपी भेड़िये लम्बी खामोशी अख्तियार करने के बाद देखते हैं कि इस परिवार कि पुश्तैनी संपत्ती के साधन क्या हैं ?
फिर अगर मजदूर होता है तो चक्रवर्ती ब्याज़ के चक्रव्यूह मे तो ये साहुकार उसके बर्तन घर सामान यहाँ तक कि मजदूर की बेटी का दहेज़ बीवी का मंगलसूत्र तक बिकवा देता या खुद हड़प लेताहै।
इसी तरह ये संभ्रात खानदानो को अपने जाल मे फांस कर उनके लिये ऐसे मौकों का इन्तेज़ार करते हैं जब उनकी ईज़्ज़त पर दांव लगाकर ईज़्ज़त की चिन्दी बिखेरने की डरावनी चाल से छलकपट कर बहुत कुछ छीन लेते हैं। जब ईन साहुकारो के पास लोगो से छीना हुअा अथाह दौलत व माल आ जाता है तो ये भले लोगो की नाराज़गी सामाजिक दबाव व आक्रोष को संतुलित करने के लिय चेरिटि नुमा कभी पानी के प्याऊ, कभी कुछ छोटा मोटा भला काम भी करते हैं या सियासी लोगो को भारी चंदा देते हैं।
लेकिन आज हम देख रहे हैं ईन साहुकारो के पास इकठ्ठा हुई बेशुमार चल अचल संपत्ती का ये दुरूपयोग करते करते इतना आगे निकल जाते हैं कि फिर ये उन कार्पोरेट मीडिया जगहों पर घुसपेठ कर कब्ज़ा जमा बेठे हैं जहां से इन पर कार्यवाही करने हेतु हाथ डालना किसी छोटे मोटे समूह की हिम्मत नही कर पाता। फिर वह छोटा मोटा समूह समाज का पीड़ित तब्का या तो आत्महत्या करता या अपराधबोध अख्तेयार करता है।
ये साहुकार सूदखोर रुपी दीमक दोनो के लिय बराबर के जिम्मेदार तो हैं। लेकिन चांदी के सिक्को मे ईमान बेचने वाले रक्षक इन भक्षको के हिमायती बनकर इनके तथाकथित बांउसर या इनके पक्षकार होते हैं। शहर की पुरानी हवेलियां बड़े खूबसूरत महल इस लिय ढाह दिये जायेंगे कि ये सूदखोेर उस पर नये शापिंग माल की आड़ मे सूदखोरी के ठिकाने बना कर हाईटेक हो कर धंधा बदल कर पहचान मुक्त हो भी जायेंगे। जिन ईमारतो को पुरात्वविभाग लापरवाही मे छोड़ रखे हुये हैं वो भी जनाब इन निर्जीव को आत्महत्या के लिये छोड़ रखे गयें हैं।
आपने सुना होगा कि इन्सान व अन्य जीव आत्महत्या करते हें लेकिन असरार की कलम रुबरु करा रही है कला ओर संस्कृती कमजोर पिछड़ो को केसे आत्महत्या के लिये मजबूर किया जाता है ? मेरे नवाब मित्रो व मज़दूरो के बिखरे सपनो के दर्द की कुछ बाते सुनकर मैनें कुछ लिखा है इन पीड़ितो का कहना है। शहर से शराब जुआ सट्टा अपराध व वक्फ भुमियो कब्रस्तानो के अतिक्रमण को मुक्त करना है।
तो तत्काल सूदखोरो कि पहचान की जाना व इनकी धरपकड़ कर समाज की भलाई के लिये प्रतिबंधात्मक कदम उठाना अतिआव्यश्यक है। अब खड़ा होना होगा समाज मे फेली गंदगी के विरुद्ध स्वच्छता अभियान मे शोषितो के अधिकार व सम्मान मे जागो ! जागो ! जागो !
अपने मौलिक अधिकारो की रक्षा के लिय अब तो वैचारिक द्वंद है।