आगरा- सूर जयंती की पूर्व संध्या पर सूर स्मारक मंडल के तत्वावधान में सोमवार को सूर जयंती समारोह का आयोजन किया गया। दयालबाग के एलोरा एंक्लेव में आयोजित कार्यक्रम की शुरुआत सूरदास और सूर स्मारक मंडल के संस्थापक डॉ. सिद्धेश्वर नाथ श्रीवास्तव का स्मारण कर की गई।
कार्यक्रम में सेवानिवृत्त पीसीएस अधिकारी बाबा हरदेव सिंह ने सूरदास को याद किया। उन्होंने कहा कि कृष्ण तो भगवान थे, लेकिन उन्हें जन-जन तक पहुंचाने का काम महान संत सूरदास ने किया। वह शरीर से उपस्थित नहीं है, लेकिन यश रूप काया से मौजूदगी महसूस करते हैं। जो भजन दिया और छंद रचे वह अद्भुत थे।
इस दौरान डॉ. पुष्पा श्रीवास्तव ने सूरदार के ज्ञानात्मक और भावात्मक पक्ष पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि सूरदास जब तक वे गुरु से नहीं मिले थे तब गरीबी और अंधापन से परेशान थे। लेकिन गऊघाट पर गुरु ने उनसे प्रभु लीला गाने को कहा, तब से उनका व्यक्तित्व बदल गया। उनमें भक्ति और ज्ञान का भाव निकला।
डॉ. श्रीवास्तव ने कहा कि डॉ. सिद्धेश्वर नाथ श्रीवास्तव डीआईओएस के पद से अवकाश पाने के बाद मित्रों के सहयोगसे सूरकुटी, गऊघाट (रुनकता) स्थित सूरकुटी परिसर का जीर्णोद्धार और विकास के लिए सूर स्मारक मंडल की स्थापना की।
कार्यक्रम में शैलेंद्र वशिष्ठ ने कहा कि सूर, तुलसी को गहराई से समझने में बच्चों में भाषा बाधा आ रही है। उन्होंने कहा कि सूरदास ने भक्ति, प्रेम व वात्सल्य को रचा।
डॉ. राजेंद्र मिलन ने कविता सुनाई, ‘नेत्रहीन ते भले सूर, दृष्टि दे गए, ग्रंथ रच गए’। देवाशीष चक्रवर्ती ने पद सुनाकर सूरदास को याद किया। आरती सरीन और वंदना ने भजन सुनाया। उन्होंने ‘म्याही म्हाने दीयो री गोविंदो मोल’ कविता सुनाई।
कार्यक्रम का संचालन सुशील सरित ने किया। उन्होंने गीत ‘हे गोविंद, गोपाल, हरे मुरारी’ सहित कई कविताएं सुनाईं। कार्यक्रम में बचन सिंह सिकरवार सहित कई गण्यमान्य लोग मौजूद थे। #आगरा
@अज़हर उमरी