अच्छा राजा-महाराज वह होता था जो प्रजा की तकलीफों दुखों को न केवल समझता था बल्कि दुखों में दुखी एवं सुखी में खुशी का भी इज़हार करता था इसलीलिए राजा महाराजाओं को पालनकर्ता भी कहा जाता था। फिर बात चाहे राजा रामचन्द्रजी की हो, सम्राट अशोक की हो या अकबर की हो। अब न राजा रहे न महाराजा, जमाना गुजर गया, ज़माना बदल गया।
अब लोकतंत्र में अनेकों राजा अर्थात् जनता हे बाकी के सभी सेवक फिर चाहे वह लोक सेवक हो या जनप्रतिनिधि मालिक तो भिखारी बना धूम रहा है, बेरोजगारी महंगाई, लूट, हत्या, बलात्कारी जैसी समस्याओं के ताप से झुलस रहा है, असुरक्षित मसहसू कर रहा है। वही सेवक राजा-महाराजाओं की तरह बड़ी-बड़ी अटटालिकाओं में बैठ मदहोश है। इसमें सबसे बड़ा दुखद पहलू यह है कि जनता के बीच का ही आदमी अपने को ‘‘विशेष’’ समझ रहा है और सरकार में अपने को एक राजा की तरह व्यवहार कर रहा है फिर बात चाहे अधिकारियों की हो या जनप्रतिनिधियों की हो।
इस बात पर भी अब तो बहस चल निकली है सरकार को रीति एवं नीतियों का निर्माण कर उन पर सतत् निगरानी रखें न कि खुद व्यापारी बन व्यापारियों के पाले में खड़ी नजर आये। दुर्भाग्य से आज कुछ ऐसे ही घटित हो रहा है जो नहीं होना चाहिए।
अपने दंभ और मगरूर के कारण ही 125 वर्षों पुरानी कांग्रेस को जनता ने तिनके की तरह उडा दिया। लोकतंत्र में प्रजा ही मालिक है इसमें कोई संदेह नही ंहै। मालिक धैर्य, गंभीर और अति सहनशील भी है। जो अपने सेवकों की प्रत्येक चाल पर नजर रखे हुए है। नई केन्द्र सरकार को भी प्रकृति एवं परिस्थितियों ऐसा साथ दिया कि विगत् 6 माह में अर्न्तराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में जबरदस्त गिरावट आई है। आज कच्चा तेल मूल से लगभग 50 से 55 प्रतिशत के आस-पास आ गया है। सुनहरा मौका था वर्तमान सरकार को इनके मूल्यों में इसी अनुपात में मुल्य कम महंगाई को न केवल नियंत्रित करने का बल्कि जनता से किये गये वायदों पर भी खरे उतरने का। लेकिन सरकार चूंकि और खुद एक व्यापारी की तरह कर पर कर बढ़ा अपने ही खजाने को भरने में जुट गई जो कि सन्देह जनता को न केवल नागवार गुजरा है बल्कि कहीं न कही अपने को ठगा सा महससू कर उसी महंगाई के थपेड़ों से जूझने में पुनः जुट सी गई हैं।
ऊपर से जले पर नमक छिड़़कने का कार्य पैट्रालियम मंत्री धमेन्द्र प्रधान ने ऐसा वक्तव्य देकर कर, कर डाला। जैसे वे पहले सरकार के मंत्री बने हो ‘‘क्या सरकार सभी कल्याणकारी योजनाओं को बंद कर दे आम आदमी एवं गरीब के प्रति केन्द्र सरकार की बड़ी जिम्मेदारी हैं, यह पैसा कल्याणकारी योजनाओं में जाएगा। लोगों को स्वच्छधारी, विजयी व घर जैसी सुविधाएं चाहिए।’’ मंत्री के वक्तव्य से ऐसा संदेश जाता है जैसे विगत् 68 वषों में सरकार ने ऐसा नहीं किया। तेल कंपनियां पहले भी फायदे में थी मसलन केन्द्र सरकार से सब्सिडी ले रही थी। अब, जब पैट्रोल-डीजल दोनों ही कन्ट्रोल हैं, की अपेक्षित कीमत न गिरा मोटा मुनाफा कमा रही है। यहां यक्ष प्रश्न उठता है ये कैसा डी. कन्ट्रोल? जब तेल महंगा था तब भार जनता के सिर अब, जब तेल की कीमत लगातार घट रही है तब सरकार के मन में लालच क्यों जागा? क्यों लगातार दो बार उत्पाद शुल्क में वृद्धि की गई? क्यांे जनता की जेब पर डाका डाला गया? क्यों सरकार अच्छे दिन का सब्जबाग दिखा बनियागिरी पर उतरी?
पेट्रोल की तुलना में डीजल सबसे ज्यादा आम लोगों को प्रभावित करता है क्योंकि 70 प्रतिशत डीजल ट्रांसपोर्ट्रेशन में खपता है, वही 12 प्रतिशत कृषियों एवं 18 प्रतिशत उद्योग एवं पावर जेनरेटर में लगता हैं। इस तरह आम आदमी एवं किसान सभी इससे प्रत्यक्ष रूप से प्रभवित होते हैं एवं अप्रत्यक्ष रूप से महंगाई। ऐसे में आम आदमी का मन दुखना स्वाभाविक ही है जिस सरकार को जनता का हिमायती होना चाहिए वह उद्योगपतियों के इशारे पर चलती नजर आ रही है।
निःसंदेह महंगाई एवं राजकोषीय घाटा कम करने का दबाव नई सरकार पर है। यदि सरकार को अपने खजाने की इतनी ही चिंता है एवं विकास के लिए धन की तो क्यों नहीं नशीले-मादक पदार्थों एवं लक्जरी उत्पादों पर टैक्स बढ़ाती? क्यों न ही सरकार के जनप्रतिनिधि सुख सुविधाओं, बैतहाशा अपने स्वयं की पगार बढ़ाने पर कटौती नहीं करते? क्यों बड़े-बड़े सरकारी आयोजनों एवं महंगे होटलों पर कटोैती नहीं करते? कैसे जनप्रतिनिधि अल्प समय में ही धन कुबेर बन जाते हैं? क्या वाकई में जनता केवल नेताओं की सत्ता प्राप्ति का ही निवाला ही बनती रहेगी?
सुशासन एवं जवाबदेही के लिए सरकारों को सोचना ही होगा।
:- डॉ.शशि तिवारी
लेखिका सूचना मंत्र की संपादक हेैं
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