प्रदेश कांग्रेस के बड़े चेहरे,पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व पीसीसी चीफ के पद पर रह चुके अरूण यादव ने स्वर्गीय नंदकुमार सिंह चौहान के निधन से खाली हुई लोकसभा सीट से अचानक अपना नाम वापिस लेकर सभी को चौका दिया।अरूण यादव 2009 में खंडवा से सांसद रह चुके है और इस बार भी वे यहां से सबसे बड़े दावेदार थे। छह महिनें से उनकी टीम खंडवा में चुनावी तैयारियों में लगी हुई थी,लेकिन उन्होंने एक मौके पर पारिवारिक कारणों का हवाला देकर नाम वापिस ले लिया।माना जा रहा है प्रदेश नेतृत्व उनके नाम का विरोध कर रहा था,खासकर प्रदेश कांग्रेस के मुखिया कमलनाथ किसी उनकी जगह किसी अन्य नए नाम पर विचार कर रहे थे।ऐसे में अगर वे अपना नाम आगे बढ़ाते और किसी अन्य को टिकट मिलता तो भारी किरकिरी हो सकती थी।
अरूण यादव दो बार संसद के सदस्य रह चुके है लेकिन 2014, 2019 में खंडवा सीट से लोकसभा चुनाव और 2018 विधानसभा चुनाव में बुधनी से शिवराज सिंह चौहान के विरूद्ध चुनाव हार चुके है। यादव को चुनाव में उनका अपना पूरा राजनैतिक कॅरियर दांव पर लगाकर लड़ना पड़ता। और अगर वे हार जाते तो यह उनकी चौथी हार होती, यहां से राजनीति में उनके सारे रास्ते बंद हो जाते।
वैसे भी अब अगले आम चुनावों को लगभग दो साल का ही समय है,जो क्षेत्र में काम करने के लिहाज से बेहद कम है। चुनाव ना लड़कर भी वे अब प्रदेशा कांग्रेस अध्यक्ष की दावेदारी कर सकते है।वर्तमान को देखते हुए उन्होंने चुनाव ना लड़कर संगठन की राजनीति करना उचित समझाा है। टिकट के लिए मना करके उन्होंने पार्टी में अपने विरोधियों को भी चुप कर दिया और अपने लिए आगे की राह भी बना ली। उम्र के लिहाज वे बेहद युवा है,ज्योतिरादित्य सिंधिंया के बीजेपी में जाने के बाद इस उम्र में उनके कद का कोई अन्य नेता नहीं है।कमलनाथ भी काफी सिनियर हो गए है।
कमलनाथ के सीएम रहते हुए बड़ी संख्या में विधायक टूटकर भाजपा में चले गए और सरकार गिर गई। यदि कांग्रेस खंडवा लोकसभा चुनाव हारती है तो कमलनाथ को ही जिम्मेदारी लेनी होगी। ऐसे में हो सकता है, कांग्रेस अगला विधानसभा चुनाव जो कि बेहद करीब है अरूण यादव के नेतृत्व में लड़े। भले ही अभी उनके प्रशंसकों और पार्टी के नेताओं को यह फैसला अजीब लगे लेकिन अरूण यादव को करीब से जानने वालों के लिए यह एक तीर से कई शिकार करने जैसा है।
:हर्ष उपाध्याय