नई दिल्ली: अयोध्या में विवादित भूमि पर मालिकाना हक भगवान रामलला विराजमान का है या किसी और का, यह अब सुप्रीम कोर्ट तय करेगा। आखिरकार सात साल बाद सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई का नंबर आ गया है।
शुक्रवार को तीन जजों की विशेष पीठ अयोध्या मामले में लंबित अपीलों और अर्जियों पर सुनवाई करेगी।इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सात साल पहले विवादित 2.77 एकड़ भूमि का बंटवारा तीन बराबर हिस्सों में करने का आदेश दिया था। लेकिन किसी भी पक्ष को यह बंटवारा स्वीकार नहीं है और सभी ने जमीन पर दावा पेश करते हुए हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट के तीन जजों की पीठ ने 30 सितंबर, 2010 को दो-एक के बहुमत से फैसला सुनाते हुए विवादित स्थल को तीन बराबर हिस्सों में रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में बांटने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने9 मई, 2011 को अपीलें विचारार्थ स्वीकार करते हुए हाई कोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी थी और सभी पक्षों को यथास्थिति कायम रखने के आदेश दिए थे जो फिलहाल लागू हैं।
जस्टिस दीपक मिश्रा, अशोक भूषण व अब्दुल नजीर की पीठ शुक्रवार दो बजे मामले की सुनवाई करेगी। पीठ के समक्ष कुल 21 याचिकाएं सुनवाई के लिए लगी हैं। जिसमें रामलला विराजमान की ओर से उनके “निकट मित्र” त्रिलोकी पांडेय मुकदमे की पैरवी करेंगे।
हालांकि, हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ रामलला की ओर से सुप्रीम कोर्ट में अपील देवकी नंदन अग्रवाल ने “निकट मित्र” की हैसियत से दाखिल की थी, लेकिन उनकी मृत्यु हो गई और अब उनकी जगह त्रिलोकी पांडेय पक्षकार बन गए हैं। शुक्रवार से मामले की नियमित सुनवाई होगी या फिर नियमित सुनवाई की रूपरेखा तय होगी, ये सुनवाई के बाद ही पता चलेगा।
हालांकि, मुख्य अपीलों के अलावा कई अर्जियां भी लंबित हैं, जिनमें कोर्ट से मामला निपटने तक अंतरिम आदेश मांगा गया है। उन्हीं में से एक अर्जी भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी की है, जिसमें स्वामी ने पूजा अर्चना का हक और अपनी अर्जी पर स्वयं बहस करने की इजाजत मांगी है।