नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में 40 दिन चली जिरह के बाद सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया। सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ अब दशकों पुराने इस मामले का फैसला सुनाएगी। उम्मीद जताई जा रही है कि इस मामले पर एक महीने के अंदर फैसला आ सकता है, हालांकि अदालत की ओर से फैसले की कोई तारीख निश्चित नहीं की गई है।
मोल्डिंग ऑफ रिलीफ
दोनों पक्षों की ओर से अपील के दौरान जो गुहार लगाई गई है क्या इससे भी इतर आगे-पीछे क्या कुछ गुंजाइश बनती है? पक्षकारों को लिखित रूप में यह बताने के लिए कहा गया है। हालांकि यह देखने वाली बात होगी कि इस मामले में मोल्डिंग ऑफ रिलीफ सिद्धांत किस हद तक लागू किया जा सकता है। इसके अलावा पीठ ने सभी पक्षों से तीन दिनों के भीतर मोल्डिंग ऑफ रिलीफ पर अपना-अपना लिखित पक्ष पेश करने का निर्देश दिया है। पीठ ने स्पष्ट कर दिया है कि अब कोई मौखिक बहस नहीं होगी।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने 17 नवंबर को सेवानिवृत्ति से पूर्व होने वाले अपने विदेश दौरे को रद्द कर दिया है। अयोध्या मामले की सुनवाई कर रही संविधान पीठ के अध्यक्ष सीजेआई गोगोई को दक्षिण अमेरिका के कुछ देशों, मध्यपूर्व सहित कुछ अन्य देशों की आधिकारिक यात्रा पर जाना था। सूत्रों ने बताया कि सीजेआई ने प्रस्तावित विदेश यात्राओं को अंतिम रूप मिलने से पहले इन्हें रद्द कर दिया। गोगोई ने पिछले साल तीन अक्तूबर को 46वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में शपथ ली थी।
40 दिनों तक चली अयोध्या मामले की सुनवाई इस मायने में भी महत्वपूर्ण है कि यह सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में केशवानंद भारती मामले के बाद दूसरी लंबी सुनवाई थी। केशवानंद मामले में 68 दिन चली जिरह के बाद सुप्रीम कोर्ट की 13 सदस्यीय पीठ ने 31 अक्तूबर, 1972 को फैसला सुनाया था।
संविधान पीठ अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित भूमि तीन पक्षकारों-सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर बांटने के आदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट आदेश के खिलाफ सुनवाई कर रही है। शीर्ष कोर्ट ने हाईकोर्ट के 30 सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ 14 अपीलों सुनवाई की।