नई दिल्ली : अयोध्या के रामजन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद पर 70 सालों बाद ‘सुप्रीम’ फैसला आ गया है। शीर्ष अदालत ने 2.77 एकड़ विवादित भूमि को रामलला विराजमान को सौंपने का आदेश दिया है। इसके साथ ही सुन्नी वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ भूमि दूसरी जगह पर मुहैया कराने का आदेश दिया है। शीर्ष अदालत की 5 जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाते हुए कहा कि हिंदुओं की राम जन्मभूमि की आस्था सबूतों के तहत साबित हुई है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला यूं तो अंतिम कहा जा सकता है, लेकिन इसके बाद भी कानूनी विकल्प बचे होंगे। असंतुष्ट पक्ष फैसले के 30 दिन के भीतर पुनर्विचार याचिका यानी रिव्यू पिटिशन दाखिल कर सकेगा।
यही नहीं यदि इस पर आए फैसले पर भी किसी पक्ष को असहमति होती है तो फिर शीर्ष अदालत में क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल की जा सकती है। क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल करने के लिए भी 30 दिन का ही वक्त मिलता है। फैसले पर पुनर्विचार की याचिका दाखिल करने वाली पार्टी को शीर्ष अदालत में यह साबित करना होता है कि उसके फैसले में क्या त्रुटि है। बता दें कि रिव्यू पिटिशन के दौरान वकीलों की ओर से जिरह नहीं की जाती। पहले दिए गए फैसले की फाइलों और रेकॉर्ड्स पर ही विचार किया जाता है।
क्यूरेटिव पिटिशन में क्या होता है?
यदि मामले से संबंधित किसी पक्ष को रिव्यू पिटिशन के फैसले पर ऐतराज होता है तो फिर उनकी ओर से क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल की जा सकती है। इसकी सुनवाई के दौरान केस के किसी तथ्य पर विचार नहीं होता बल्कि कानूनी पहलुओं पर ही विचार किया जाता है।
क्यूरेटिव पिटिशन पर सुनवाई का नियम
कानून के जानकारों के मुताबिक क्यूरेटिव पिटिशन से अर्थ बड़ी पीठ में सुनवाई से है। क्यूरेटिव पिटिशन के मामले में तीन वरिष्ठतम जज सुनवाई करते हैं और बाकी फैसला देने वाले जज शामिल होते हैं। इस तरह से इस मामले में यदि क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल होती है तो फिर तीन सीनियर जज और तीन मौजूदा जजों को मिलाकर कुछ 6 जज सुनवाई कर सकते हैं।