एक तरफ सरकार ने बहुचर्चित तीन तलाक बिल लोकसभा में पेश कर दिया है तो वहीं समाजवादी पार्टी के सांसद आजम खान का कहना है कि वह कुरान की राय को ही मानेंगे।
सोमवार को लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान आजम खान ने साफ कहा कि यह व्यक्तिगत मामला है और इसमें कुरान से हटकर कोई बात स्वीकार नहीं की जाएगी।
दरअसल, अल्पसंख्यकों के हितों को लेकर सरकार पर निशाना साधते हुए रामपुर से SP सांसद ने तीन तलाक का भी जिक्र किया।
उन्होंने कहा, ‘कोई एक तलाक मानता है, माने। कोई दो मानता है, माने। कोई तीन तलाक मानता है, माने। नहीं मानता है मत माने। मैं कहता हूं कि यह हमारा व्यक्तिगत मामला है, इस पर कुरान जो फैसला देता है। उस राय से हटकर कोई बात कबूल नहीं की जाएगी, हरगिज नहीं की जाएगी।’ आजम खान के ऐसा कहने पर लोकसभा में काफी हंगामा हुआ।
सरकार पर निशाना साधते हुए रामपुर के सांसद ने कहा, ‘ये जो महिलाओं के बड़े हमदर्द बनते हैं, महिला हितों की बड़ी वकालत करते हैं, महिलाओं के दुख और दर्द के बारे में भी बताएं।’
आजम ने सवाल किया कि सबरीमाला मामले में एक पैमाना और मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं के लिए अलग पैमाना क्यों?
उन्होंने आगे कहा, ‘मुझे इस बात का भी अंदेशा है कि कही लोग शादी, निकाह और मंडप से डरने न लगें और शादी का रिवाज ही खत्म हो जाए और लिव-इन रिलेशन को ही लोग पसंद करने लगें।’
आपको बता दें कि संसद में पेश यह विधेयक एक ही बार में तीन तलाक कहने (तलाक-ए-बिद्दत) पर रोक लगाने के लिए है।
3 तलाक बिल पिछली लोकसभा में पारित हो चुका था, लेकिन सोलहवीं लोकसभा का कार्यकाल खत्म होने के कारण और राज्यसभा में लंबित रहने के कारण यह निष्प्रभावी हो गया। अब सरकार इसे फिर से सदन में लेकर आई है।
गौरतलब है कि शुक्रवार को बिल पेश किए जाने के दौरान संसद में भारी हंगामा हुआ था। कांग्रेस ने तीन तलाक बिल का विरोध किया था।
पार्टी सांसद शशि थरूर ने कहा, ‘मैं तीन तलाक का विरोध नहीं करता लेकिन इस बिल का विरोध कर रहा हूं। तीन तलाक को आपराधिक बनाने का विरोध करता हूं। मुस्लिम समुदाय ही क्यों, किसी भी समुदाय की महिला को अगर पति छोड़ता है तो उसे आपराधिक क्यों नहीं बनाया जाना चाहिए। सिर्फ मुस्लिम पतियों को सजा के दायरे में लाना गलत है।
यह समुदाय के आधार पर भेदभाव है जो संविधान के खिलाफ है।’ मोदी सरकार ने सितंबर 2018 और फरवरी 2019 में 2 बार तीन तलाक अध्यादेश जारी किया था क्योंकि यह राज्यसभा से पारित नहीं हो सका था।
लोकसभा में बिल को पेश करते हुए कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इसकी जरूरत को बताते हुए कहा था, ’70 साल बाद क्या संसद को नहीं सोचना चाहिए कि 3 तलाक से पीड़ित महिलाएं सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी न्याय की गुहार लगा रही हैं तो क्या उन्हें न्याय नहीं मिलना चाहिए। 2017 से 543 केस तीन तलाक के आए, 239 तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आए। अध्यादेश के बाद भी 31 मामले आए इसीलिए हमारी सरकार महिलाओं के सम्मान और गरिमा के साथ है।’